बैकुण्ठ चतुर्दशी से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति- Baikunth Chaturdashi

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बैकुण्ठ चतुर्दशी से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति 

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस शुभ दिन को भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है। इसके साथ-साथ ही व्रत किया जाता है। प्राचीन मान्यता है कि इस दिन हरिहर मिलन होता है। यानी इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है। मान्यता है कि संसार के समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते है लेकिन चार महीने भगवान विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते है। 

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जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते है तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुनः कार्यभार सौंपते है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूम कर बैकुंठ धाम पहुँचते हैं। भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते है और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते है। नारद जी कहते है- हे प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है। इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं। लेकिन जो सामान्य नर-नारी है वह वंचित रह जाते हैं। इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएँ, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें।

नारद जी के शब्द सुनकर श्री हरि विष्णु जी कहते है -हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो भी मनुष्य व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा करते है मैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल देता हूँ इसलिए भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते है। भगवान विष्णु कहते है कि इस दिन जो भी भक्त मेरी पूजा करता है उसे बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत् रुप से पूजा-पाठ किया जाता है। धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान की पूजा और आरती की जाती है। भगवत् गीता व श्री सुक्त का पाठ किया जाता है तथा भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा की जाती है। भगवान विष्णु की कृपा से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। 

बैकुंठ चौदस का महत्व प्राचीन मतानुसार एक बार भगवान विष्णु शिव की भक्ति करने के लिए काशी पहुंचे। वहाँ उन्होंने शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढ़ाने का संकल्प लिया। जब अनुष्ठान का समय आया तो शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया। पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपनी एक आंख निकालकर शिव को अर्पित करने लगे। कमल पुष्प के बदले अपनी आँख अर्पित करने के कारण भगवान विष्णु कमल नयन कहलाएं। भगवान शिव उनकी भक्ति देखकर प्रकट हुए और उन्हें उनकी आँख लौटाते हुए सुदर्शन चक्र भेंट किया।

Baikunth Chaturdashi Se Baikunth Dham Ki Prapti

1) बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का विभिन्न् पदार्थों से अभिषेक करने का बड़ा महत्व है। उनका विशेष श्रृंगार करके भांग, धतूरा, बेलपत्र अर्पित करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
2) बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके उनका भी श्रृंगार करना चाहिए।
3) विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
4) इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान-पुण्य करना चाहिए। इससे समस्त पापों का प्रायश्चित होता है।
5) नदियों में दीपदान करने से विष्णु-लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
6) राधा-दामोदर का पूजन सुहागिन स्त्रियों के लिए चिर सौभाग्यदायक होता है। पूजन के बाद गाय को प्रसाद खिला दें।
7) तुलसी-शालिग्राम का पूजन परिवार में सुख, शांति, समृद्धि के लिए किया जाता है।
8) बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में तालाब, नदी के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए। वहीं बैठकर भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से पूजा अर्चना करें। उन्हें तुलसी पत्ते डालकर भोग लगाएं। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करें। शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वे बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम पाते हैं।  

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