भगवान विष्णु का यज्ञ अवतार - Yagya Avatar

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भगवान विष्णु का यज्ञ अवतार
(Yagya Avatar)

यज्ञ अवतार भगवान विष्णु के सातवें अवतार है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। आकूति और प्रजापति रूचि के जुड़वाँ संतानें हुईं। पुत्र यज्ञ जो भगवान विष्णु के यज्ञ नाम से अवतरित हुए। और कन्या हुईं दक्षिणा। मनु जी ने विवाह से पहले ही यह वचन लिया था कि प्रथम पुत्र उन्हें गोद दे दिया जाएगा क्योंकि वे जानते थे कि पुत्र नारायण का अवतार होंगे। इस वचन के अनुसार मनु ने यज्ञ को अपने पुत्र के रूप में गोद ले लिया। यज्ञ विष्णु रूप एवं दक्षिणा लक्ष्मी रूपा थी। इन दोनों का आपस में विवाह हुआ। इन्हीं के कारण से सृष्टि में सर्वप्रथम यज्ञों की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इन यज्ञों के कारण देवताओं की शक्ति बढ़ने लगी साथ-साथ देवताओं की शक्ति बढ़ने से सारी सृष्टि शक्शिाली हो गयी। एक समय आया जब स्वायम्भुव मनु को धीरे-धीरे समस्त सांसारिक विषय-भोगों से सर्वथा अरूचि होने लगी। संसार से विरक्त हो जाने के कारण उन्होंने पृथ्वी का राज्य त्याग दिया और अपनी महिमामयी पत्नी शतरूपा के साथ तपस्या करने लिए वन चले गये। 

यज्ञ अवतार भगवान विष्णु के सातवें अवतार है। यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था।वचन के अनुसार मनु ने यज्ञ को अपने पुत्र के रूप में गोद लिया। vishnu ke naam hindi, vishnu ke avtar hindi, 10th avatar of vishnu hindi, 20th avatar of vishnu hindi bhagwan vishnu ke roop hindi, vishnu ne kahi roop dharan kiye hindi, lakshmi-narayan hindi, lakshmi-narayan ke barein mein hindi,  lakshmi-narayan ki jankari hindi,  lakshmi-narayan se sambandhit gyan hindi, lakshmi-narayan se sambandhit katha hindi, lakshmi-narayan se sambandhit pooja hindi, bhagwan vishnu ke avatar hindi, shri hari ke avatar hindi,

पवित्र सुनन्दा नदी के तट पर एक पैर पर खड़े होकर मंत्रों का जप करने लगे। इस प्राकर स्तुति एवं जप करते हुए सौ वर्ष तक अत्यन्त कठोर तप किया। उसी समय भूख से पीड़ित राक्षसों का दल वहाँ एकत्रित हो गया और उन्होंने ध्यानमग्न तपस्वी मनु और शतरूपा को खाने के लिए दौड़े। मनु और शतरूपा के पौत्र आकूतिनन्दन भगवान यज्ञ ने अपनी शक्तियों से दोनों को रक्षा घेरे में लिया और शीघ्र अपने याम पुत्रों के साथ वहाँ पहुँचे। उनका राक्षसों से भयानक संग्राम हुआ समस्त राक्षसों अपने प्राण बचाकर वहाँ से भाग निकले। भगवान यज्ञ को देखकर देवताओं में अत्यन्त प्रसन्न हुए उन्होंने उनसे देवेन्द्र पद स्वीकार करने की प्रार्थना की। भगवान यज्ञ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करके इन्द्रासन पर विराजित हुए। भगवान यज्ञ और उनकी धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारह पुत्र उत्पन्न हुए। वे ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम नामक बारह देवता कहलाये।

दक्षिणा की उत्पत्ति: गोलोक में भगवान कृष्ण को सुशीला नामक गोपी बहुत पसंद थी। वह उसकी विद्या, रुप और गुणों से प्रभावित थे। सुशीला राधाजी की ही सखी थी इसलिए श्रीकृष्ण द्वारा सुशीला को पसंद करने की बात राधा को पसंद नही थी। एक दिन उन्होंने सुशीला को गोलोक से बाहर कर दिया। इस बात से सुशीला को बहुत दुख हुआ और वो कठिन तप करने लगी इस तप से वो विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गईं।

दक्षिणा के बिना यज्ञ पूरा नहीं होता: इसके बाद से विष्णु जी द्वारा देवताओं को यज्ञ का फल मिलना रुक गया इस समस्या का निवारण के लिए सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी जी ने भगवान विष्णु जी का ध्यान किया। विष्णु जी ने सभी देवताओं की बात मानकर इसका एक हल निकाला। उन्होंने अपनी प्रिय महालक्ष्मी के अंश से एक मर्त्यलक्ष्मी को बनाया जिसे नाम दिया दक्षिणा और इसे ब्रह्माजी को सौंप दिया। ब्रह्माजी ने दक्षिणा का विवाह यज्ञपुरुष के साथ कर दिया बाद में इन दोनों का पुत्र हुआ जिसे नाम दिया फल इस प्रकार भगवान यज्ञ अपनी पत्नी दक्षिणा और पुत्र फल से सम्पन्न होने पर सभी को कर्मों का फल देने लगे। इससे देवताओं को भी यज्ञ का फल मिलने लगा। इसी वजह से शास्त्रों में दक्षिणा के बिना यज्ञ पूरा नहीं होता और कोई फल नहीं मिलता। इसीलिए ऐसा माना गया कि यज्ञ करने वाले को तभी फल मिलता है जब वह दक्षिणा देगा। 

दक्ष की 84 पुत्रियों और उनके पतियों के नाम: पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे जो उनके दाहिने पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियाँ थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चैबीस कन्याएँ थीं और वीरणी से साठ कन्याएँ। 

प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियाँ और उनके पति: 1 श्रद्धा (धर्म) 2 लक्ष्मी (धर्म) 3 धृति (धर्म) 4 तुष्टि (धर्म) 5 पुष्टि (धर्म) 6 मेधा (धर्म) 7 क्रिया धर्म) 8 बुद्धि (धर्म) 9 लज्जा (धर्म) 10 वपु (धर्म) 11 शांति (धर्म) 12 सिद्धि (धर्म) 13 कीर्ति धर्म) 14 ख्याति (महर्षि भृगु) 15 सती (रूद्र) 16 सम्भूति (महर्षि मरीचि) 17 स्मृति (महर्षि गिरस) 18 प्रीति (महर्षि पुलस्त्य) 19 क्षमा (महर्षि पुलह) 20 सन्नति (कृतु) 21 अनुसूया (महर्षि अत्रि) 2 उर्जा (महर्षि वशिष्ठ) 23 स्वाहा (अग्नि) 24 स्वधा (पितृस)

वीरणी से दक्ष की 60 पुत्रियाँ और उनके पति: 1 मरुवती (धर्म) 2 वसु (धर्म) 3 जामी (धर्म) 4 लंबा (धर्म) 5 भानु (धर्म) 6 अरुंधती (धर्म) 7 संकल्प (धर्म) 8 महूर्त (धर्म) 9 संध्या (धर्म) 10 विश्वा (धर्म) 11 अदिति (महर्षि कश्यप) 12 दिति (महर्षि कश्यप) 13 दनु (महर्षि कश्यप) 14 काष्ठा (महर्षि कश्यप) 15 अरिष्टा (महर्षि कश्यप) 16 सुरसा (महर्षि कश्यप) 17 इला (महर्षि कश्यप) 18 मुनि (महर्षि कश्यप) 19 क्रोधवषा (महर्षि कश्यप) 20 तामरा (महर्षि कश्यप) 21 सुरभि (महर्षि कश्यप) 22 सरमा (महर्षि कश्यप) 23 तिमि (महर्षि कश्यप) 24 कृतिका (चंद्रमा) 25 रोहिणी (चंद्रमा) 26 मृगशिरा (चंद्रमा) 27 आद्रा (चंद्रमा) 28 पुनर्वसु (चंद्रमा) 29 सुन्रिता (चंद्रमा) 30 पुष्य (चंद्रमा) 31 अश्लेषा (चंद्रमा) 32 मेघा (चंद्रमा) 33 स्वाति (चंद्रमा) 34 चित्रा (चंद्रमा) 35 फाल्गुनी (चंद्रमा) 36 हस्ता (चंद्रमा) 37 राधा (चंद्रमा) 38 विशाखा (चंद्रमा) 39 अनुराधा (चंद्रमा) 40 ज्येष्ठा (चंद्रमा) 41 मुला (चंद्रमा) 42 अषाढ़ (चंद्रमा) 43 अभिजीत (चंद्रमा) 44 श्रावण (चंद्रमा) 45 सर्विष्ठ (चंद्रमा) 46 सताभिषक (चंद्रमा) 47 प्रोष्ठपदस (चंद्रमा) 48 रेवती (चंद्रमा) 49 अश्वयुज (चंद्रमा) 50 भरणी (चंद्रमा) 51 रति (कामदेव) 52 स्वरूपा (भूत) 53 भूता (भूत) 54 स्वधा (अंगिरा) 55 अर्चि (कृशाश्वा) 56 दिशाना (कृशाश्वा) 57 विनीता (तार्क्ष्य कश्यप) 58 कद्रू (तार्क्ष्य कश्यप) 59 पतंगी (तार्क्ष्य कश्यप) 60 यामिनी (तार्क्ष्य कश्यप)