मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस।।
धनवान बनने के लिए माँ लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम का जाप करें
To become rich, chant the name of the 18 sons of Maa Lakshmi
धनवान बनने के लिए माँ लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम का जाप करें
To become rich, chant the name of the 18 sons of Maa Lakshmi
ऊँ बलाय नमः। om balay namah।
ऊँ तेजसे नमः। om tejase namah।
ऊँ मदाय नमः। om maday namah।
ऊँ हर्षाय नमः। om harshay namah।
ऊँ सलिलाय नमः। om salilay namah।
ऊँ विजयाय नमः। om vijayay namah।
ऊँ दमकाय नमः। om damakay namah।
ऊँ कर्दमाय नमः। om kardamay namah।
ऊँ गुग्गुलाय नमः। om guggulay namah।
ऊँ वल्लभाय नमः। om vallabhay namah।
ऊँ आनन्दाय नमः। om anandaya namah।
ऊँ श्रीप्रदाय नमः। om shreepraday namah।
ऊँ जातवेदाय नमः। om jataveday namah।
ऊँ अनुरागाय नमः। om anuragay namah।
ऊँ सम्वादाय नमः। om samvaday namah।
ऊँ देवसखाय नमः। om devasakhay namah।
ऊँ चिक्लीताय नमः। om chikleetay namah।
ऊँ कुरूण्टकाय नमः। om kuroontakay namah।
माँ लक्ष्मी के आठ रूप
(Eight forms of Maa Lakshmi)
माँ लक्ष्मी के आठ रूप
(Eight forms of Maa Lakshmi)
सबसे पहला लक्ष्मी अवतार है जो कि ऋषि भृगुु की बेटी के रूप में है।
The first Lakshmi incarnation is as the daughter of Rishi Bhrigu
धन लक्ष्मी (Dhan Lakshmi)
धन्य लक्ष्मी (Dhany Lakshmi)
गज लक्ष्मी (Gaj Lakshmi)
सनातना लक्ष्मी (Sanatana Lakshmi )
वीरा लक्ष्मी (Veera Lakshmi)
विजया लक्ष्मी (Vijaya Lakshmi)
विद्या लक्ष्मी (Vidya Lakshmi)
माँ लक्ष्मी चालीसा
(Maa Lakshmi Chalisa)
जय जय जगत जननि जगदम्बा, सबकी तुम ही हो अवलम्बा।
तुम ही हो सब घट घट वासी, विनती यही हमारी खासी।।
जगजननी जय सिन्धु कुमारी, दीनन की तुम हो हितकारी।
विननौ नित्य तुमहि महारानी, कृपा करो जग जननि भवानी।।
केहि विधि स्तुति करो तिहारी, सुधि अपराध बिसार।
कृपा दृष्टि चित वो मम ओरी, जगजननी विनती सुन मोरी।।
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता, संकट हरौ हमारी माता।
क्षीर सिन्धु जब विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिन्धु में पायो।।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु बनि दासी।
जब-जब जन्म प्रभु जहां लीन्हा, रूप बदल वही सेवा कीन्हा।।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा, लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।
जब तुम प्रगट जनकपुर माहीं, सेवा कियो हृदय पुलकाहिं।।
अपनाया तोहि अन्तर्यामी, विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी।
तुम सम प्रबल शक्ति नही आनी, कहं तक महिमा कहौं बखानी।।
मन कर्म वचन करै सेवकाई, मन इच्छित वांछित फल पाई।
तजि छल कपट और चतुराई, पूजहिं विविध विधि मन लाई।।
और हाल मैं कहौ बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाई।
ताको कोई कष्ट न होई, मन इच्छित पावै फल सोई।।
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणी त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी।
जो यह चालीसा पढ़ै पढ़ावै, ध्यान लगाकर सुने सुनावै।।
ताकौ कोई न रोग सतावै, पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।
पुत्रहीन और संपत्ति हीना, अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना।।
विप्र बोलाय कै पाठ करावै, शंका दिल में कभी न लावै।
पाठ करावै दिन चालीसा, ता पर कृपा करै गौरीसा।।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै, कमी नहीं काहू की आवै।
बारह मास करै जो पूजा, तेहि सम धन्य और नाहिं दूजा।।
प्रतिदिन पाठ करै मन माही, उन सम कोई जग में कहुुं नाहीं।
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई, लेह परीक्षा ध्यान लगाई।।
करि विश्वास करै व्रत नेमा, होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा।
जय जय जय लक्ष्मी भवानी, सब में व्यापिक हो गुण खानी।।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहि, तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं।
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहि दीजै।।
भूल चूक करि क्षमा हमारी, दर्शन दजै दशा निहारी।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी, तुमहि अछत दुःख सहते भारी।।
नाहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में, सब जानत हो अपने मन में।
रूप चतुभुर्ज करके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण।।
केहि प्रकार में करौं बड़ाई, ज्ञान बुद्धि मोहि नाहिं अधिकाई।।
त्राहि त्राहि दुःख हरिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु का नाश।।
जय जय जगत जननि जगदम्बा, सबकी तुम ही हो अवलम्बा।
तुम ही हो सब घट घट वासी, विनती यही हमारी खासी।।
जगजननी जय सिन्धु कुमारी, दीनन की तुम हो हितकारी।
विननौ नित्य तुमहि महारानी, कृपा करो जग जननि भवानी।।
केहि विधि स्तुति करो तिहारी, सुधि अपराध बिसार।
कृपा दृष्टि चित वो मम ओरी, जगजननी विनती सुन मोरी।।
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता, संकट हरौ हमारी माता।
क्षीर सिन्धु जब विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिन्धु में पायो।।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु बनि दासी।
जब-जब जन्म प्रभु जहां लीन्हा, रूप बदल वही सेवा कीन्हा।।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा, लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।
जब तुम प्रगट जनकपुर माहीं, सेवा कियो हृदय पुलकाहिं।।
अपनाया तोहि अन्तर्यामी, विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी।
तुम सम प्रबल शक्ति नही आनी, कहं तक महिमा कहौं बखानी।।
मन कर्म वचन करै सेवकाई, मन इच्छित वांछित फल पाई।
तजि छल कपट और चतुराई, पूजहिं विविध विधि मन लाई।।
और हाल मैं कहौ बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाई।
ताको कोई कष्ट न होई, मन इच्छित पावै फल सोई।।
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणी त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी।
जो यह चालीसा पढ़ै पढ़ावै, ध्यान लगाकर सुने सुनावै।।
ताकौ कोई न रोग सतावै, पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।
पुत्रहीन और संपत्ति हीना, अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना।।
विप्र बोलाय कै पाठ करावै, शंका दिल में कभी न लावै।
पाठ करावै दिन चालीसा, ता पर कृपा करै गौरीसा।।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै, कमी नहीं काहू की आवै।
बारह मास करै जो पूजा, तेहि सम धन्य और नाहिं दूजा।।
प्रतिदिन पाठ करै मन माही, उन सम कोई जग में कहुुं नाहीं।
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई, लेह परीक्षा ध्यान लगाई।।
करि विश्वास करै व्रत नेमा, होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा।
जय जय जय लक्ष्मी भवानी, सब में व्यापिक हो गुण खानी।।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहि, तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं।
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहि दीजै।।
भूल चूक करि क्षमा हमारी, दर्शन दजै दशा निहारी।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी, तुमहि अछत दुःख सहते भारी।।
नाहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में, सब जानत हो अपने मन में।
रूप चतुभुर्ज करके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण।।
केहि प्रकार में करौं बड़ाई, ज्ञान बुद्धि मोहि नाहिं अधिकाई।।
त्राहि त्राहि दुःख हरिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु का नाश।।
शुकवार का दिन माँ लक्ष्मी पूजा के लिए अति शुभ होता है। शुक्रवार को माँ लक्ष्मी के इन सभी रूपों की गुण-गान करने असीम कृपा की प्राप्ति होती है। माँ लक्ष्मी के आठ रूप माने गये है इन रूपों का अपना अलग-अलग महत्व है। Friday is very auspicious for Maa Lakshmi Pooja. By worshiping all these forms of Maa Lakshmi on Friday infinite grace is attained. There are eight forms of Goddess Lakshmi. These forms have their own different significance.