भगवान शिव का शरभ अवतार-Bhagwan Shiv ka Sharabh Avatar

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भगवान शिव का शरभ अवतार 
(Bhagwan Shiv ka Sharabh Avatar)

भगवान शिव समय-समय पर सृष्टि के कल्याण हेतू अवतरित हुए तीनों लोकों की रक्षा के लिए उन्होंने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था। कभी गंगा मैया के वेग को अपनी जटा में लपेट लेते है। इसलिए जब-जब ऐसी स्थिति आती है तो भगवान शिव अपने कई रूपों में अवतरित हुए। पक्षीराज शरभवतार का भक्ति से परम शक्तिशाली शत्रु को नष्ट करने की क्षमता रखता है। ब्रहाण्ड की सभी तांत्रिक शक्तियों का समावेश होने के कारण यह सर्वाधिक प्रभावशाली माना जाता है। अत्यंत गूढ और भयानक स्वरुप होने के कारण प्राणों पर संकट आने की स्थिति में ही इनका अनुष्ठान किया जाता है। पक्षीराज के कंठ से भयानक ध्वनि भैरव के बिना नही निकल सकती। इसलिए इनके कंठ में भैरव विराजमान रहते है। चतुर्भुजी पक्षीराज के बाएं हाथ में सर्प और दाएँ हाथ में शक्ति है। अँगुलियों के स्थान उनके गरुड जैसे पंजे है। अति भयंकर और महाक्रोधी पक्षीराज का एक ओर स्वरूप भी है वे कवच बनकर साधक की रक्षा भी करते है। 

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शरभ अवतार में नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि का उद्धार 

शिव पुराण के अनुसार दिति के गर्भ से हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप जुड़वां पुत्रों ने जन्म लिया इसके जन्म से पृथ्वी कांप उठी। आकाश में नक्षत्र और दूसरे लोक इधर से उधर दौड़ने लगे। समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें पैदा हो उठीं और प्रलयंकारी हवा चलने लगी। ऐसा ज्ञात हुआ मानो प्रलय आ गई हो। हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप दोनों पैदा होते ही बड़े हो गए। दैत्यों के बालक पैदा होते ही बड़े हो जाते है और अपने अत्याचारों से धरती को कपांने लगते हैं। यद्यपि हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप दोनों ही बलवान थे। वह संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे। एक दिन  हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद की हत्या करनी चाही तो भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर उसका वध किया। इसके बाद भी भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ और वे सम्पूर्ण सृष्टि भस्म करने पर उतारु हो गए। भगवान का प्रचंड रुप देकर देवता भी कांपने लगे। भक्त प्रहलाद को  नृसिंह भगवान के पास भेजकर शांत करने को कहा लेकिन प्रहलाद को देखकर नृसिंह भगवान ज्यादा क्रोधित हो उठे। देवताओं ने भगवान शिवजी की शरण लेकर प्रभु विष्णु को शांत करने में सहायता मांगी। देवताओं ने कहा आपने पहले भी भगवान विष्णु के क्रोध को आपने वीरभद्र के जरिए शांत किया था। इस पर भगवान शिवजी ने अपने गण वीरभद्र को याद किया तो वह तुरंत हाथ जोड़कर हाजिर हो गए। भगवान ने गण से कहा कि नरहरि क्रोधित है। उन्हें विनम्रता से क्रोध शांत का प्रयास करना। 

भागवान शिव का आदेश सुनकर वीरभद्र नरहरि के पास पहुँचे और उनसे प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु आपने नरहरि का अवतार संसार की रक्षा के लिए लिया है। कृप्या इस प्रलय को रोक ले भगवान शिव यही आज्ञा है पर नरहरि नही माने और वीरभद्र को वहाँ से चले जाने को कहा। वे नही गए तो नरहरि और क्रोधित हो गए। इस पर वीरभद्र ने आग्रह करते हुए कहा कि भगवान शिवजी का अनुरोध ठुकराना उचित नही है। जिस समय आपने कमठ का अवतार लिया था उस समय उन्होंने तुन्हारे सिर को जलाकर अपने हार में पिरो लिया था। जब तुमने वाराह अवतार लिया तब भगवान शिवजी ने ही आप पर काबू पाया और इस सृष्टि को प्रलय से बचाया। नरहरि ने यह सुना तो वे ओर क्रोधित हो उठे और वीरभद्र को पकडने का प्रयास किया। इस पर वीरभद्र ने अपना शरीर आकाश में छिपा लिया। वीरभद्र की स्थिति देखकर भगवान शिव अपने अद्भुद रुप में प्रकट हो गए। उनका आधा शरीर सिंह का था जिसमें दो पंख व चोंच, सहस्त्र भुजाएं, शीश पर जटाएं, मस्तक पर चन्द्रमा और मुंह में भयंकर दांत थे। उनका यह रुप देखकर देवता भी कांपने लगे और क्रोधित नरहरि भी निस्तेज हो गए। 

शरभ अवतार धारण किए हुए भगवान ने बलपूर्वक अपनी भुजाओं में नरहरि को पकड़ लिया और आकाश में उडने लगे। तब नरहरि ने अपना रुप त्याग दिया और वे लोप हो गए। देवताओं ने शरभ अवतार शिवजी की पूजा अर्चना की। तब शिवजी ने कहा कि मेरे और भगवान विष्णु में कोई भेद नही है। दोनों का रुप एक ही है। शिवजी ने रुप त्यागने के बाद नरहरि का सिर और चर्म उठा लिया। सिर तो अपनी माला का सुमेरु बनाया और भक्ति के साथ उनका चर्म ओढ़ लिया। फिर अंर्तध्यान हो गए। 

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