भगवान शिव का कृष्णदर्शन अवतार
(Bhagwan Shiv ka Krishandershan Avatar)
- इस अवतार में भगवान शिव ने यज्ञ आदि धार्मिक कार्य के महत्व को बताया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार कृष्णदर्शन अवतार वर्तमान मन्वन्तर के मनु का नाम वैवस्वत मनु है। इन्हें श्राद्धदेव भी कहा जाता है। इनके इक्ष्वाकु आदि नौ पुत्र थे इन्हीं मे से एक पुत्र का नाम नभग था। नवमी पीढ़ी में इक्ष्वाकुवंशीय में श्राद्धदेव राजा नभग का जन्म हुआ। श्राद्धदेव नामक मनु के सबसे छोटे पुत्र का नाम नभग था। भगवान शिव ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया। मनु पुत्र नभग बड़े ही बुद्धिमान थे। जिस समय नभग गुरुकुल में निवास कर रहे थे उसी बीच उनके इक्ष्वाकु आदि भाईयों ने नभग लिए कोई भाग न देकर पिता की सारी संपत्ति आपस में बांट ली और अपना-अपना भाग लेकर राज्य का संचालन करने लगे। कुछ समय के बाद ब्रह्मचारी नभग गुरुकुल से वेदों का अध्ययन करके आए। उन्होंने देखा कि सब भाई सारी संपत्ति का बँटवारा करके अपना अपना भाग ले चुके हैं। नभग ने अपने भाइयों से कहा कि आप लोगों ने मेरे लिए हिस्सा दिए बिना आपस में पिता की सारी संपत्ति का बँटवारा कर लिया। इसलिए अब प्रसन्नतापूर्वक मुझे भी हिस्सा दीजिए। मैं अपना भाग प्राप्त करने के लिए यहाँ आया हूँ। नभग के भाइयों ने कहा कि जब संपत्ति का बंँटवारा हो रहा था उस समय हम तुम्हारे लिए हिस्सा देना भूल गए। अब हम पिताजी को ही तुम्हारे हिस्से में देते हैं। भाइयों का यह वचन सुनकर नभग को बड़ा विस्मय हुआ। वे पिता के पास गए और उन्हें भाइयों के साथ हुई सारी बातों की जानकारी दी। श्राद्धदेव ने कहा बेटा तुम्हारे भाइयों ने यह बातें तुम्हें शांत करनेे लिए कही है।
- मैं तुम्हारी जीविका का एक उपाय बताता हूँ। इस समय गोत्रीय ब्राह्मण एक बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे है। प्रत्येक छठे दिन के यज्ञ में उनसे भूल हो जाती है। तुम वहाँ जाओ और उन ब्राह्मणों को विश्वेदेव संबंधी दो सुक्त बतओ। यज्ञ समाप्त होने पर जब वे ब्राह्मण स्वर्ग जाने लगेंगे तब तुम्हें यज्ञ से बचा हुआ सारा धन दे देंगे। पिता के आदेश से सत्यवादी नभग बड़ी प्रसन्नता के साथ उस उत्तम यज्ञ में गए और छठे दिन के यज्ञ कर्म में उन्होंने विश्वेदेव संबंधी दोनों सुक्तों का स्पष्ट रूप से उच्चारण किया। यज्ञकर्म समाप्त होने पर वे ब्राह्मण यज्ञ से अवशेष अपना-अपना धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। यज्ञ शिष्ट धन को जब नभग ग्रहण करने लगे उस समय सुंदर लीला करने वाले भगवान शिव कृष्णदर्शन रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने नभग से पूछा तुम इस धन को क्यों ले रहे हो? यह तो मेरी संपत्ति है। नभग ने कहा यह यज्ञशेष धन मुझे ऋषियों ने दिया है तुम रोकने वाले कौन होते हो? कृष्णदर्शन भगवान शिव ने कहा बेटा ! हम दोनों के इस झगड़े के तुम्हारे पिता ही फैसला करेंगे वहीं बताएंगे कि यह संपत्ति किसकी है। जाकर उनसे पूछो और जो निर्णय दें वैसा करेंगे। नभग ने जब अपने पिता से पूछा तो उन्होंने कहा पुत्र वे साक्षात् भगवान शिव है। संसार की सभी वस्तुएं ही उनकी है किंतु यज्ञशेष धन पर केवल भगवान रुद्र का ही अधिकार है। वे तुम पर विशेष कृपा करने के लिए वहाँ आए है। तुम उनकी स्तुति करके उन्हें प्रसन्न करो और अपने अपराध के लिए उनसे क्षमा याचना करो। नभग पिता की आज्ञा से वहाँ गए और हाथ जोड़कर बोले हे प्रभु! यह सब आपका है। फिर यज्ञ से बचे हुए धन के लिए तो कहना ही क्या है। निश्चय ही इस पर आपका अधिकार है। मेरे पिता श्री ने यही निर्णय दिया है। मैंने अनजाने में यह सब कहा है इसके लिए कृपया मुझे क्षमा करें। भगवान कृष्णदर्शन बोले नभग तुम्हारे पिता के धर्मानुकूल निर्णय एवं तुम्हारी सत्यवादिता से मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें सनातन ब्रह्मतत्त्व के उपदेश के साथ इस यज्ञ का सारा धन देता हूँ। ऐसा कहकर भगवान रुद्र अंतर्धान हो गए।