भगवान वेदव्यास-Bhagwan Vedvyas

Share:


भगवान वेदव्यास 

भगवान वेदव्यास श्री विष्णु के अवतार माने जाते हैं। वेदव्यास की माता का नाम सत्यवती था, जो कि एक निषाद (मछुआरे) की बेटी थी। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर था जो वाल्मिकी (भगवान श्री राम के गुरु) के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि वेदव्यास त्रिकालज्ञ थे। तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म क्षीण हो जायेगा। धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु होगेेे। एक विशाल वेद का सांगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ से बाहर हो जायेगा। इसीलिये महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरणशक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये। 

भगवान वेदव्यास-Bhagwan Vedvyas ki story in hindi, ved vyas kaun the in hindi, ved vyas ka janm kab hua tha in hindi, maharishi veda vyasa jeevan parichay in hindi, ved vyas birth story in hindi, vedvyas ji ka janm ka rahasy in hindi,  maharishi ved vyas biography in hindi,  maharishi ved vyas janam katha in hindi, vedvyas ka janm kab aur kaha hua tha in hindi, vishnu ke avatar vedvyas hindi, vishnu ke avatar vedvyas ke barein mein hindi, vishnu ke avatar vedvyas ki kahani hindi, vishnu ke avatar vedvyas ki jankari hindi, vishnu ke avatar vedvyas ki katha hindi, Maharshi Vedvyas aur Bhagwan Shiv Ki Katha in hindi, Ganeshji wrote Mahabharata in hindi, father of ved vyas in hindi, what is the real name of veda vyasa in hindi, sakshambano, sakshambano ka uddeshya, latest viral post of sakshambano website, sakshambano pdf hindi,

Bhagwan Vedvyas 

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया। वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है। पुराणों को उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्यों ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बनायी।  Click Here » पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान् वेदव्यास एक अलौकिक शक्तिसम्पन्न महापुरुष थे। इनका जन्म एक द्वीप के अन्दर हुआ था और वर्ण श्याम था, अत इनका एक नाम कृष्णीद्वैपायन भी है। वेदों का विस्तार करने के कारण ये वेदव्यास तथा बदरीवन में निवास करने कारण बादरायण भी कहे जाते हैं। इन्होंने वेदों के विस्तार के साथ महाभारत, अठारह महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। 

शास्त्रों की ऐसी मान्यता है कि भगवान् ने स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया। अतरू व्यासजी की गणना भगवान् के चैबीस अवतारों में की जाती है। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। महर्षि व्यास त्रिकालदर्शी थे। जब पाण्डव एकचक्रा नगरी में निवास कर रहे थे तब व्यासजी उनसे मिलने आये। उन्होंने पाण्डवों को द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनाकर कहा कि यह कन्या विधाता के द्वारा तुम्हीं लोगों के लिये बनायी गयी है इसलिए तुम लोगों को द्रौपदी-स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिये अब पांचाल नगरी की ओर जाना चाहिये। महाराज द्रुपद को भी इन्होंने द्रौपदी के पूर्वजन्म की बात बताकर उन्हें द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों से विवाह करने की प्रेरणा दी थी। 

महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर व्यासजी अपने शिष्यों के साथ इन्द्रप्रस्थ पधारे। वहाँ इन्होंने युधिष्ठिर को बताया कि आज से तेरह वर्ष बाद क्षत्रियों का महासंहार होगा उसमें दुर्योधन के विनाश में तुम्हीं निमित्त बनोगे। पाण्डवों के वनवासकाल में भी जब दुर्योधन दुशासन तथा शकुनि की सलाह से उन्हें मार डालने की योजना बना रहा था तब व्यासजी ने अपनी दिव्य दृष्टि से उसे जान लिया। इन्होंने तत्काल पहुँचकर कौरवों को इस दुष्कृत्य से अवगत किया। इन्होंने धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहा-तुमने जुए में पाण्डवों का सर्वस्व छीनकर और उन्हें वन भेजकर अच्छा नहीं किया। दुरात्मा दुर्योधन पाण्डवों को मार डालना चाहता है। तुम अपने लाडले बेटे को इस काम से रोका, अन्यथा इसे पाण्डवों के हाथ से मरने से कोई नहीं बचा पायेगा । 

भगवान व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की जिससे युद्ध-दर्शन के साथ उनमें भगवान् के विश्वरूप एवं दिव्य चतुर्भुजरूप के दर्शन की भी योग्यता आ गयी। उन्होंने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से श्रीमद्भगवद्गीता का श्रवण किया जिसे अर्जुन के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं सुन पाया। जब धृतराष्ट्र वनमें रहते थे तब महाराज युधिष्ठिर अपने परिवार सहित उनसे मिलने गये। व्यासजी भी वहाँ आये। धृतराष्ट्र ने उनसे जानना चाहा कि महाभारत के युद्ध में मारे गये वीरों की क्या गति हुई? उन्होंने व्यासजी से एक बार अपने मरे हुए सम्बन्धियों का दर्शन कराने की प्रार्थना की। धृतराष्ट्र के प्रार्थना करने पर व्यासजी ने अपनी अलौकिक शक्ति के प्रभाव से गंगाजी में खड़े होकर युद्ध में मरे हुए वीरों का आवाहन किया तब जल में युद्धकाल-जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। 

देखते-ही-देखते भीष्म और द्रोण के साथ दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबकी वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योंदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने दिव्य लोकों को चले गये। भगवान व्यास के इस चमत्कारिक प्रभाव को देखकर धृतराष्ट्र आदि आश्चर्यचकित रह गये। युधिष्ठिर, कुन्ती तथा धृतराष्ट्र के सभी सम्बन्धियों का दर्शन कराया। इस अद्भुत वृत्तान्त को सुनकर राजा जनमेजय के मन में भी अपने पिता महाराज परीक्षित का दर्शन करने की लालसा पैदा हुई। व्यासजी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने महाराज परीक्षित को वहाँ बुला दिया। जनमेजय ने यज्ञान्त स्त्रान के समय अपने पिता को भी स्नान कराया। तदनन्तर महाराज परीक्षित वहाँ से चले गये। अलौकिक शक्ति से सम्पन्न तथा महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास के चरणों में शत-शत नमन है।

भगवान विष्णु के अवतार-Bhagwan Vishnu ke Avatars