भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की अनंत रूप में पूजा की जाती है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान के अनंत के लिए व्रत की मान्यता है। अनंत चतुर्दशी का अपना बहुत विशेष महत्व हैै इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है। स्त्रियां दाएँ हाथ और पुरुष बाएँ हाथ में अनंत सूत्र धारण करते है। यह सूत्र रेशम या सूत का होता है इस सूत्र में 14 गांठें लगाई जाती है और साथ-साथ इस मंत्र का उच्चारण करना किया जाता है।
भगवान विष्णु ने 14 लोक बनाएँ जिनमें सत्य, तप, जन, मह, स्वर्ग, भुवः, भू, अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल शामिल है। कहा जाता है कि अपने बनाए इन लोकों की रक्षा करने के लिए श्री हरि विष्णु ने अलग-अलग 14 अवतार लिए। ऐसी मान्यता इस अनंत सूत्र धारण करने से सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती है। इस दिन व्रत करने के अलावा भगवान विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए इससे कभी भी धन की कमी नही रहती, हर प्रकार की उन्नति होती है, घर में खुशहाली बनी रहती है, संतान का सौभाग्य प्राप्त होता है, हर दुखों से मुक्ति मिलती है। कहते है जब पाण्डव जुए में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव को अपनों दुखों से मुक्ति मिल गई।
Har prakar ke dukhon se mukti deti hai-anant chaturdashi
प्राचीन काल में सुमन्त नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण अपनी पत्नी दीक्षाथा के साथ रहता था। उनकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमन्त ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह उस ब्राह्मण ने कौडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांधकर दे दिए। कौडिन्य ऋषि दुःखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर प्रस्थान किया। परन्तु रास्ते में ही रात हो गई। सन्ध्या के समय सुशीला ने देखा वहाँ पर बहुत-सी स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा कर रही थी। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनन्त व्रत की पूजा-विधि बताई। सुशीला ने वही उस व्रत का अनुष्ठान किया और चैदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांधकर ऋषि कौडिन्य के पास आ गई। जब कौडिन्य ऋषि ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़कर अग्नि में डाल दिया इससे भगवान अनन्त जी का अपमान हुआ। परिणामतः कौडिन्य ऋषि दुःखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनन्त भगवान का डोरा जलाने की बात कही। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौडिन्य अनन्त डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब अनन्त भगवान प्रकट होकर बोले- हे कौडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनन्त व्रत करो। 14 वर्ष पर्यन्त व्रत करने से तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से सम्पन्न हो जाओगे। कौडिन्य ऋषि ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनन्त भगवान का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पाण्डव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।
समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)