शुक्रवार व्रत पूजा-विधि-Shukravar Vrat Pooj-Vidhi
3) कथा समाप्त होते ही हाथ का गुड़ चना गाय को खिलाए।
4) कथा और आरती समाप्त होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगह छिडकें और बचा हुआ जल तुलसी में डाले। नियमित रूप से 16 शुक्रवार के व्रत करने चाहिए।
5) कलश में रखा गुड़ चना सबको प्रसाद रूप में बाँट दें।
6) व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा, मोमनदार पुड़ी, खीर,चने का शाक, नैवेद्य रखें।
7) घी का दीपक जला माँ संतोषी की जय जयकारा बोल नारियल फोड़े।
8) अंतिम शुक्रवार के दिन माँ संतोषी की पूजा के लिए पूरी और केले के प्रसाद का दान दें।
9) इस दिन 8 लड़कों को भोजन कराये, पहले घर के लड़कों को दें।
10) यथाशक्ति दक्षिणा भी दें।
माँ संतोषी व्रत के दिन विशेष सावधानी रखनी चाहिए (Maa Santoshi Vrat ke din vishesh savdhani rakhni chahiye)
देवी संतोषी व्रत करने वाले पुरुषों और महिलाओं को खट्टा सामान छूना या खाना नही चाहिए। गुड़ और चने का प्रसाद खाया जाना चाहिए। भोजन में कोई खट्टी चीज, खट्टे खाने योग्य फल, अचार या खट्टे फल नही खाएं जाना चाहिए। इसके अलावा व्रत रखने वाले व्यक्ति के परिवार के सदस्यों के द्वारा भी किसी भी तरह का खट्टा आइटम नही खाना चाहिए।माँ संतोषी की कृपा की प्राप्ति (Maa Santoshi ki kirpa ki prapti)
शुक्रवार-व्रत-कथा (Shukravar Vrat-Katha)
एक बुढिय़ा थी उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढिय़ा 6 बेटों के लिए खाना बनाती भोजन कराती और उनसे जो कुछ झूठन बचता वह सातवें बेटे को देती। सातवां बेटा एक दिन अपनी पत्नी से बोला- देखो! मेरी माँ मुझसे कितना प्रेम करती है? उसकी पत्नी बोली- क्यों नहीं? इसी लिए तो तुम्हें सबका झूठा खिलाती है। वह बोला- ऐसा नही हो सकता है मैं जब तक आँखों से न देख लूँ मान नहीं सकता। बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे।
सच्चाई के लिए तत्पर (Sachchai ke liye tatpar in hindi): कुछ दिन बाद त्यौहार आया घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमें के लड्डू बनें माँ की परीक्षा लेने के लिए वह सिर दर्द का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा थोड़ी देर बाद सभी भाई भोजन करने आए उसने देखा की माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछाकर विभिन्न प्रकार के पकवान परोसे और आग्रह करके उन्हें खूब खिलाया। सातवां बेटा देखता रहा 6 बेटों जब भोजन करके उठे। तब माँ ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया। जूठन साफ कर बुढिय़ा माँ ने उसे पुकारा- बेटा, सभी भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा।
एक-दूसरे की आवश्यकता से सहमत (Ek doosre ki avashyakta se sahmat in hindi): चलते-चलते दूर पहुँचा वहाँ पर एक साहूकार की दुकान थी। वहाँ जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा। लड़के ने पूछा- तनख्वाह क्या दोगे? साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी करने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देंन-हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के 7-8 नौकर थे वे सब चक्कर खाने लगे कि यह तो बहुत होशियार बन गया है। सेठ ने भी काम देखा और 3 महीने में उसे आधे मुनाफे का साझीदार बना लिया।
करोबार में उन्नति पर पत्नी दयनीय की स्थिति (Karobar mein unnati par pati ki dayaniya sthiti mein in hindi): वह 12 वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उस पर छो़ड़कर बाहर चला गया। अब बहू पर क्या बीती? सास-ससुर उसे दुःख देनें लगे सारी गृहस्थी का काम करवाकर उसे लकड़ी लेने के लिए जंगल में भेजते घर की रोटियों के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर उसे खाने के लिए दिया जाता तथा पीने के लिए फूटे नारियल के खपर में पानी दिया जाता।
माँ संतोषी तक पहुँचने का रास्ता मिलने लगा (Maa Santoshi tak pahuchane ka rasta milne laga in hindi): एक दिन सातवीं बहू लकड़ी लेने जा रही थी रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी वह वहाँ खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों! तुम किस देवता का व्रत करती हो? और उसके करने से क्या फल मिलता है? यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगी तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूँगी। तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनों? यह संतोषी माता का व्रत ह इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है। सातवीं बहू ने उससे व्रत की विधि पूछी वह बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का, जो भी सहूलियत हो उसे लेना। बिना किसी परेशानी के पूरी श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो घी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना।
अपनों की कमी मन से (Apno ki kami man se in hindi): यह देख जेठ-जेठानी ताने देंने लगे अरे भाई अब तो काकी के पास पत्र आने लगे हैं। रुपया आने लगा ह. अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी बेचारी बहू अति सरलता से कहती! भैया कागज आवे, रुपया आवे, हम सब के लिए अच्छा है ऐसा कह कर आँखों में आंसू भरकर माँ संतोषी के मंदिर में माँ के चरणों में गिरकर रोने लगी। माँ मैंने तुमसे पैसा कब माँगा है? मुझे पैसे से क्या काम है? मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन माँगती हूँ तब माँ ने प्रसन्न होकर कहा! जा बेटी, तेरा स्वामी आवेगा। बहू यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी।
खुशियों की आहट (Khushiyon ki aahat in hindi): उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है लौटते वक्त वह रोज की भांति माताजी के मंदिर में विश्राम करती है। कुछ देर बाद धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है हे माता! यह धूल कैसे उड़ रही है? माता कहती है हे पुत्री तेरा पति आ रहा है अब तू ऐसा कर लकडिय़ों के तीन बोझ बना ले। एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर। तेरे पति को लकडिय़ों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा। वह यहाँ रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर मां से मिलने जाएगा। तब तू लकडिय़ों का बोझ उठाकर जाना और चैक में गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना। लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खपर में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकडिय़ों के तीन गठ्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा। इतने में मुसाफिर आ पहुँचा सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गांव को गया। सबसे प्रेम से मिला उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए बहू उतावली आती है। लकडिय़ों का भारी बाझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, आज मेहमान कौन आया है। यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है। बहू ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहन, उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है माँ से पूछता है माँ यह कौन है? माँ बोली- बेटा यह तेरी बहू है जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। वह बोला- ठीक है माँ मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूँगा माँ बोली- ठीक है, जैसी तेरी इच्छा तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया अब क्या था? बहू सुख भोगने लगी।
अपनों ने शत्रु जैसा प्रहार किया (Apno ne shatru jaisa prahar kiya in hindi): जब शुक्रवार आया उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है पति बोला- खुशी से कर लो वह उद्यापन की तैयारी करने लगी जेठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जेठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो भोजन के समय खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के खीर खाने आए पेट भर खीर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, खीर देखकर अरूचि होती है। वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी यह तो संतोषी माता का प्रसाद है लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहू कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए लड़के उसी समय हठ करके इमली की खटाई लेकर खाने लगे।
ध्यान रहे ऐसा नहीं होना चाहिए (Dhyan rahe aisa nahin hona chahiye in hindi): यह देखकर बहू पर माताजी ने कोप किया राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए जेठ-जेठानी मन-माने वचन कहने लगे लूट-लूट कर धन इकठ्ठा कर लाया है अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा। बहू से यह सहन नहीं हुआ रोती हुई माताजी के मंदिर गई कहने लगी- हे माता! तुमने यह क्या किया? हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है वह कहने लगी- माता मैंने जो कुछ अपराध किया है मुझे क्षमा करें. मैंने तो भूलवश लड़कों को पैसे दे दिए थे। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करुँगी माँ बोली- अब भूल मत करना वह कहती है- अब भूल नहीं होगी अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे? माँ बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा वह निकली राह में पति आता मिला वह पूछी- कहाँ गए थे? वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चला। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है पति ने कहा ठीक हैै बहू फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी तुम सब लोग पहले ही खटाई माँगना लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ नही तो वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया संतोषी माता प्रसन्न हुई।
माँ की ममता (Maa ki mamta in hindi): माँ संतोषी की कृपा होते ही 9वें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी माँ ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलू यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी। उसके देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहू रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पागल होकर चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई हैं। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है इतने में सास का क्रोध फट पड़ा। वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया इतने में माँ के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे वह बोली- माँ मैं जिसका व्रत करती हूँ यह संतोषी माता है सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, हे माँ आप हमारे अपराध को क्षमा कीजये। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई बहू को प्रसन्न होने का आशीर्वाद दिया।
समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)