शिलाद ऋषि का कठोर तप- पुराणों के अनुसार शिलाद ऋषि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की इससे भगवान शिव प्रसन्न होकर शिलाद को नंदी के रूप में पुत्र का वरदान दिया। भगवान शिव स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट हुये कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा उसको बड़ा होते देख भगवान शिव ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तब वह मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया और भगवान शिव की आराधना करने लगा। भगवान शिव नंदी के तप से अति प्रसन्न होकर वरदान दिया वत्स नंदी! तुम मृत्यु के भय से मुक्त हो, अजर-अमर हो।
नंदी-नंदीश्वर- भगवान शिव ने आदि शक्ति की सहमति से संपूर्ण गणों-गणेशों और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर ने वरदान दिया जहाँ पर नंदी का निवास होगा वहाँ उनका भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में भगवान शिव के सामने नंदी की स्थापना की जाती है।
शिव-वाहन नंदी पुरुषार्थ का प्रतीक- भगवान शिव का वाहन नंदी पुरुषार्थ अर्थात् परिश्रम का प्रतीक है। जिस प्रकार नंदी की दृष्टि शिव की ओर होती है उसी प्रकार हमारी दृष्टि भी आत्मा की ओर होनी चाहिये। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी यही संदेश देता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति का चरित्र-आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है।
नंदी के प्रकोप से रावण का सर्वनाश- नंदी ने रावण की सर्वनाश की घोषणा उसी समय कर दी थी जब उसने शिव अवतार नंदी का अपमान किया। रावण संहिता के अनुसार कुबेर पर विजय प्राप्त कर जब रावण लौट रहा था तो वह थोड़ी देर कैलाश पर्वत पर रुका था। वहाँ नंदी के कुरूप स्वरूप को देखकर रावण ने उसका उपहास किया। नंदी ने क्रोध में आकर रावण को यह श्राप दिया कि मेरे जिस पशु स्वरूप को देखकर तू इतना हँस रहा है। उसी पशु स्वरूप के जीव तेरे विनाश का कारण बनेंगे।
भगवान पर ब्रह्महत्या का प्रकोप- नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है जिसमें नंदी नही है। जब ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पांचवां निंदा करता था। उस निंदा वाले मुख को शिवजी ने काट डाला। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे लेकिन उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला।
नंदी बने भगवान शिव के मार्गदर्शन- भगवान शिव जब सोमेश्वर में बैठे थे तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। कथा में बताया गया है कि यह बछड़ा नंदी था। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुण्ड तक गया और कुण्ड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होे गये। नंदी के कारण ही भगवान शिव ब्रह्महत्या से मुक्त हुए। भगवान शिव ने इसलिए नंदी को गुरू माना और अपने सामने बैठने को मना किया।
सागर मंथन- भगवान शिव को नंदी का साथ प्राप्त होने के बाद ही असुरों और देवताओं के बीच क्षीर सागर में समुद्र मंथन हुआ। इस मंथन में सबसे पहले हलाहल नाम का अत्याधिक घातक विषय निकला जिसकी एक बूंद भी सर्वनाश कर सकती थी। इस विष का गलत प्रयोग ना हो इसलिए स्वयं शिव ने उसका पान कर लिया।
नंदी के समक्ष की गयी प्रार्थना स्वतः ही भगवान शिव तक पहुंच जाती है- शिव और नंदी के बीच इसी संबंध की वजह से शिव की मूर्ति के साथ नंदी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। ऐसा माना जाता है कि शिव तो हमेशा ध्यान में लीन होते हैं इसलिए भक्तों की आवाज उन तक नंदी ही पहुंचाते है।
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