द्वतीय भाव: जब मंगल दूसरे भाव में होता है तो इसका सम्बन्ध सक्रिय और नकारात्मक से होता है इसलिए यह विवाह और विवाहित जीवन को नुकसान पहुंचाता है जिससे कारण तलाक और दूसरा विवाह संयोग से होता है।
चतुर्थ भाव: जब मंगल चैथे भाव में होता है तो इसका सम्बन्ध पेशेवर व्यक्तियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और यह उसे अपनी नौकरी से असंतुष्ट रखता है। इसके कारण बार-बार अपनी नौकरी बदलता रहता है।
सप्तम भाव: जब मंगल सांतवे भाव में होता है तब इसका सम्बन्ध क्रोध से होता है इसलिए अनावश्यक झगड़ों की स्थिति बनी रहती है।
अष्टम भाव: जब मंगल आठवे भाव में होता है तो इसका सम्बन्ध आलस से होता है और यह व्यक्ति को आलसी बनाता है। इस वजह से व्यक्ति कुछ समय के लिए अनियमित और अचानक क्रोधवश हो जाता है जिससे घर के अन्य सदस्यों को परेशानी हो सकती है। मंगल के इस भाव में होने से व्यक्ति दुर्घटनाओं का शिकार भी हो सकता है।
• अगर सप्तम भाव में स्थित मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो कुण्डली में मांगलिक का बुरा प्रभाव नही पड़ता है।
• मंगल गुरू की राशि धनु अथवा मीन में हो अथवा राहु के साथ मंगल की उपस्थिति हो व्यक्ति चाहे अपनी पंसद के अनुसार किसी से भी विवाह कर सकता है क्योंकि वह मांगलिक दोष से मुक्त होता है।
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