मत्स्य अवतार को भगवान विष्णु का प्रथम अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु ने मछली के रूप में अवतार लेकर एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा। जब पृथ्वी जल में डूब रही थी तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात् ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया। राजा सत्यव्रत एक पुण्यात्मा के साथ-साथ बड़े उदार हृदय का भी था। प्रभात का समय था। सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। स्नान करने के पश्चात् जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया तब अंजलि में जल के साथ एक छोटी सी मछली भी आ गई।
सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया। मछली बोली- राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए। सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडल में डाल लिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडल उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली हे राजन! मुझे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान दीजिए क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है।सत्यव्रत ने मछली को कमंडल से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। यहाँ भी मछली का शरीर रात भर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया। दूसरे दिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- मेरे रहने के लिए कोई अन्य स्थान दीजिए। तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया। इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया। आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया।
अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- राजन! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और जगह कीजिए। राजा सत्यव्रत संदेह में पड़ गया उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। उसने प्रार्थना कि कृपया आप अपना परिचय दीजिए। आपका शरीर जिस गति से प्रतिदिन बढ़ता है उसे दृष्टि में रखते हुए बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि आप अवश्य परमात्मा हैं। मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया हे राजन! आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्र उमड़ उठेगा। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। आपके पास एक नाव पहुँचेगी। आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुनः दिखाई पड़ूँगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूँगा।
सत्यव्रत उसी दिन से हरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो उठा। समुद्र भी उमड़कर अपनी सीमाओं से बाहर बहने लगा। थोड़ी ही देर में सारी पृथ्वी पर जल ही जल हो गया। संपूर्ण पृथ्वी जल में समा गई। उसी समय एक नाव दिखाई पड़ी। सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ उस नाव पर बैठ गए। उन्होंने नाव के ऊपर श्रीहदि के अनुसार संपूर्ण अनाजों और औषधियाँ भी रख दी। इस भयंकर प्रलय में नाव तैरने लगी। मत्स्य रूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्त ऋषिगण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे हे प्रभो! आप ही सृष्टि के आदि हैं आप ही पालक है और आप ही रक्षक ही हैं। दया करके हमें अपनी शरण में लीजिए हमारी रक्षा कीजिए। सत्यव्रत और सप्त ऋषियों की प्रार्थना पर मत्स्य रूपी भगवान प्रसन्न हो उठे। उन्होंने अपने वचन के अनुसार सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया। बताया सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ। न कोई ऊँच है और न नीच। सभी प्राणी एक समान है। जगत् नश्वर है। नश्वर जगत् में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नही है।