सूर्य बीज मंत्र (Surya Beej Mantras)
सूर्य गायत्री मंत्र (Surya Gayatri Mantra)
सूर्य गायत्री मंत्र के लाभ (Benefits of Surya Gayatri Mantra)
सूर्य नमस्कार मंत्र (Surya Namskar Mantras)
पूजा-पाठ
श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले। सबके हृदय में रमन करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो! वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पाओगे। इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है आदित्यहृदय। यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है। भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं। यह नित्य उदय होने वाले देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं। तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो। संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं। यह तेज राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। यह अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं।यह ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं। इनके नाम हैं आदित्य, सविता, खग, पूषा, गभस्तिमान, सुवर्णसदृश्य, भानु, हिरण्यरेता, दिवाकर, हरिदश्व, सहस्रार्चि, सप्तसप्ति, मरीचिमान, तिमिरोमंथन, शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक, अंशुमान, हिरण्यगर्भ, तपन, अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन, व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र, विंध्यवीथिप्लवंगम, आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल, सर्वतापन, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव, नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन, तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्ध सूर्यदेव! आपको नमस्कार है। पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है। आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बार-बार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है। उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है। कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है। आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं। आपका स्वरुप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है। आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाश स्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है। रघुनन्दन! भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं। सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं। देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में भी पूर्ण समर्थ हैं। राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता। इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो। आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे। महाबाहो! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए। उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की तरफ देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की तरफ देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया। उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की तरफ देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा रघुनन्दन! अब जल्दी करो। इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित है।
समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)