महाभारत समाप्ति के बाद वेदव्यास जी ने महाभारत कथा की रचना करने की सोची महाभारत कथा उनके मस्तिष्क में थी परंतु वह उसे लिखने में असमर्थ थे। ग्रंथों में लिखा गया है कि महर्षि व्यास महाभारत की रचना महाकाव्य के रूप में करना चाहते थे। किंतु अधिक उत्सुकता के कारण वह अपने बनाए हुए छंद लिखते समय भूल जाते थे और इसी तरह बार बार महाभारत को लिखने में विघ्न पड़ रहा था। तब महर्षि वेदव्यास जी ने परम पिता ब्रह्मा जी का ध्यान किया और ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए। वेदव्यास जी ने ब्रह्मा जी को कहा की हे परमपिता मैं महाभारत कथा रचना चाहता हूँ लेकिन मैं इसको लिखने में असमर्थ हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिये।
ब्रह्मा जी ने कहा तुम गणेश जी से ही विनती करो वे विद्या बुद्धि के देवता है वे ही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। वेदव्यास जी ने गणेश जी का ध्यान किया गणेश जी ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए। वेदव्यास जी ने कहा कि हे प्रभु मैं आपके दर्शन पाकर धन्य हुआ। गणेश जी बोले मैं तुम्हारी भक्ति भाव से अति प्रसन्न हूँ कहो अपनी इच्छा, वेदव्यास जी ने कहा कि भगवान मेरे मन और मस्तिष्क में एक कथा ने जन्म लिया है जिसे मैं महाभारत का नाम देना चाहता हूँ और मैं इसे लिखित रूप देने में समर्थ नहीं हूँ, आप महाभारत कथा लिखकर मेरी समस्या को दूर कीजिए। भगवान श्री गणेश जी ने कुछ समय सोचा और कहा कि ठीक है मैं महाभारत कथा लिखने के लिए तैयार हूँं परंतु मेरी एक शर्त है कि आपको एक पल भी बिना रुके बोलना होगा। वेदव्यास जी ने कहा कि ठीक है प्रभु लेकिन आपको भी मेरे बोले हुए सभी श्लोक को भी ध्यान से समझ कर लिखना होगा। तब श्री गणेश जी ने कहा ठीक है।
आधे टूटे दांत का रहस्य
10 दिन विना रूके, विना थके, महाभारत कथा की सत्यता
महर्षि वेदव्यास जी और श्री गणेश जी ने महाभारत कथा बोलना व लिखना प्रारंभ किया। वेदव्यास जी जो श्लोक बोल रहे थे गणेश जी उन्हें जल्दी-जल्दी समझ कर लिख रहे थे। तब वेदव्यास जी ने सोचा की गणेश जी श्लोक को जल्दी-जल्दी समझ कर लिख रहे हैं। तब वेदव्यास जी ने कठिन श्लोक बोलना प्रारंभ किया जिन्हें गणेश जी को समझने में कुछ समय लगता है फिर वह लिखते हैं, जिससे वेद व्यास जी को कुछ समय मिल जाता दूसरे श्लोक बोलने के लिए। महाभारत काव्य इतना बड़ा था कि महर्षि वेदव्यास जी और गणेश जी ने 10 दिन तक बिना कुछ खाए और बिना रुके निरंतर लिखते रहे।
10वें दिन जब महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत कथा पूर्ण होने के बाद आंखें खोली तो गणेश जी के शरीर का ताप बहुत अधिक बढ़ गया यह देख महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी को गीली मिट्टी का लेप लगाया लेप लगाने के बाद भी गणेश जी के शरीर का ताप कम नहीं हुआ तो उन्होंने एक जल से भरे बड़े पात्र में गणेश जी को बैठाया तब श्री गणेश जी के शरीर का ताप कम हुआ। जिस दिन वेद व्यास जी गणेश जी को लेने गए थे उस दिन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी और जिस दिन महाभारत कथा को पूर्ण किया उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी। अतः तब से हम भगवान श्री गणेश जी को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक बिठाते हैं । इस बीच गणेश जी की पूजा पाठ करते हैं और हम चतुर्दशी के दिन भगवान श्री गणेश जी को जल में प्रवाहित करते हैं।