भगवान श्रीगणेश ने महाभारत कथा को लिखित रूप दिया
(Lord Shri Ganesh wrote the Mahabharata Katha in hindi)
ब्रह्मा जी ने कहा तुम गणेश जी से ही विनती करो वे विद्या बुद्धि के देवता है वे ही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। वेदव्यास जी ने गणेश जी का ध्यान किया गणेश जी ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए। वेदव्यास जी ने कहा कि हे प्रभु मैं आपके दर्शन पाकर धन्य हुआ। गणेश जी बोले मैं तुम्हारी भक्ति भाव से अति प्रसन्न हूँ कहो अपनी इच्छा, वेदव्यास जी ने कहा कि भगवान मेरे मन और मस्तिष्क में एक कथा ने जन्म लिया है जिसे मैं महाभारत का नाम देना चाहता हूँ और मैं इसे लिखित रूप देने में समर्थ नहीं हूँ, आप महाभारत कथा लिखकर मेरी समस्या को दूर कीजिए। भगवान श्री गणेश जी ने कुछ समय सोचा और कहा कि ठीक है मैं महाभारत कथा लिखने के लिए तैयार हूँं परंतु मेरी एक शर्त है कि आपको एक पल भी बिना रुके बोलना होगा। वेदव्यास जी ने कहा कि ठीक है प्रभु लेकिन आपको भी मेरे बोले हुए सभी श्लोक को भी ध्यान से समझ कर लिखना होगा। तब श्री गणेश जी ने कहा ठीक है।
जब महर्षि परशुराम कैलाश में महादेव से कुछ आवश्यक विषय के बारे में चर्चा करने गए थे तो उनका मार्ग श्री गणेश ने रोका था। उनके माता-पिता अर्थात माता पार्वती और महादेव यज्ञ में व्यस्त थे इसलिए उन्होंने श्री गणेश को द्वारपाल बनाया था। कोई भी उनके यज्ञ में विघ्न न डाल सके। महर्षि परशुराम जो अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे उन्होंने अपने गुरु महादेव के दिये हुए परशु से श्री गणेश पर प्रहार किया। श्री गणेश ने उस परशु से अपना बचाव इसलिए नहीं किया क्योंकि वह उनके पिता ने अपने शिष्य को दी थी। उस परशु का प्रहार उनके दंत पड़ हुआ और उसका आधा अंश टूट गया था। जब महर्षि परशुराम का क्रोध शांत हुआ तो उन्हें अपनी भूल का आभास हुआ और उन्हें वरदान दिया कि उनका आधा टूटा हुआ दांत एक शुभ कार्य के लिए प्रयोग किया जाएगा। इसी तरह महाभारत लिखते समय भगवान श्री गणेश जी को मिला। वरदान फलित हुआ। भगवान श्री गणेश जब महाभारत को लिख रहे थे तो बार-बार उनकी कलम टूट जाती थी। इस समस्या से निकलने के लिए उन्होंने अपना आधा टूटा हुआ दांत निकाला और उसी से बाकी के भाग को लिखा। इस घटना के बाद उनका नाम एकदंत पड़ गया।
महर्षि वेदव्यास जी और श्री गणेश जी ने महाभारत कथा बोलना व लिखना प्रारंभ किया। वेदव्यास जी जो श्लोक बोल रहे थे गणेश जी उन्हें जल्दी-जल्दी समझ कर लिख रहे थे। तब वेदव्यास जी ने सोचा की गणेश जी श्लोक को जल्दी-जल्दी समझ कर लिख रहे हैं। तब वेदव्यास जी ने कठिन श्लोक बोलना प्रारंभ किया जिन्हें गणेश जी को समझने में कुछ समय लगता है फिर वह लिखते हैं, जिससे वेद व्यास जी को कुछ समय मिल जाता दूसरे श्लोक बोलने के लिए। महाभारत काव्य इतना बड़ा था कि महर्षि वेदव्यास जी और गणेश जी ने 10 दिन तक बिना कुछ खाए और बिना रुके निरंतर लिखते रहे।
आधे टूटे दांत का रहस्य
10 दिन विना रूके, विना थके, महाभारत कथा की सत्यता
10वें दिन जब महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत कथा पूर्ण होने के बाद आंखें खोली तो गणेश जी के शरीर का ताप बहुत अधिक बढ़ गया यह देख महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी को गीली मिट्टी का लेप लगाया लेप लगाने के बाद भी गणेश जी के शरीर का ताप कम नहीं हुआ तो उन्होंने एक जल से भरे बड़े पात्र में गणेश जी को बैठाया तब श्री गणेश जी के शरीर का ताप कम हुआ। जिस दिन वेद व्यास जी गणेश जी को लेने गए थे उस दिन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी और जिस दिन महाभारत कथा को पूर्ण किया उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी। अतः तब से हम भगवान श्री गणेश जी को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक बिठाते हैं । इस बीच गणेश जी की पूजा पाठ करते हैं और हम चतुर्दशी के दिन भगवान श्री गणेश जी को जल में प्रवाहित करते हैं।