(Bhagwan Vishnu Ka Hans Avatar)
भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को कहा की मैंने ही कृत युग में हंस के रुप में अवतार लेकर प्रजापति ब्रम्हा के मानस पुत्र सनाकादिक को ज्ञान दिया और उनका उद्धार किया। एक बार लोकपितामह ब्रह्माजी अपनी दिव्य सभा में बैठे थे। तभी उनके मानस पुत्र सनकादि चारों कुमार दिगम्बर वेष में वहां आए और पिता को प्रणाम कर उनकी आज्ञा लेकर आसनों पर बैठ गए। उन अत्यंत तेजस्वी चारों कुमारों को देखकर सभा में उपस्थित जन मौन हो गए। सनकादि कुमारों ने अपने पिता ब्रह्माजी से प्रश्न किया- पिताजी! शब्द, स्पर्श आदि विषय (सांसारिक भोग) मन में प्रवेश करते हैं या मन विषयों में प्रवेश करता है, इनका परस्पर आकर्षण है। इस मन को विषयों से अलग कैसे करें? मोक्ष चाहने वाला अपना मन विषयों (सांसारिक भोग-विलास) से कैसे हटा सकता है, क्योंकि मनुष्य जीवन प्राप्त कर यदि मोक्ष की सिद्धि नहीं की गयी तो सम्पूर्ण जीवन ही व्यर्थ हो जाएगा।
उस अलौकिक हंस को देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग खड़े होकर उन्हें प्रणाम करने लगे। ब्रह्माजी ने महाहंस की पाद्य-अर्घ्य आदि से पूजा कर सुन्दर आसन पर बिठाया। सनकादि कुमारों ने उस परम तेजस्वी महाहंस से पूछा-श्आप कौन हैं? भगवान हंस ने विचित्र उत्तर देते हुए कहा- मैं इसका क्या उत्तर दूँ? इसका निर्णय तो आप लोग ही कर सकते हैं। यदि इस पांचभौतिक शरीर को आप लोग आप कहते हैं तो सबके शरीर पंचभूतों से ही बने हुए हैं। जैसे सारे आभूषण एक सोने से बने होते हैं और सारे बर्तन एक ही मिट्टी से बने होते हैं। पंचभूत-पृथ्वी, वायु, जल, तेज और आकाश से रस, रक्त, मेदा, मज्जा, अस्थि और शुक्र बनता है जिससे शरीर का निर्माण होता है, तो देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी के शरीर पांचभौतिक होने के कारण एकरूप हैं।
जीव तो मेरा स्वरूप है, यह मन विषयों का चिन्तन करते-करते विषयाकार (सांसारिक भोगों में लिप्त) हो जाता है और विषय मन में प्रवेश कर जाते हैं, यह बात सत्य है किन्तु आत्मा का मन और विषय के साथ कोई सम्बन्ध ही नहीं है। भगवान हंसनारायण ने उपदेश किया कि पहले मन विषयों में जाकर विषयाकार बनता है। उसके बाद विषयाकार मन में विषय स्थिर हो जाते हैं। अब आप लोग ही सोचें और निर्णय करें कि मन विषयों में जाता है या विषय मन में आते हैं? मन से, वाणी से, दृष्टि से तथा इन्द्रियों से जो कुछ भी ग्रहण किया जाता है, वह सब मैं ही हूँ, मुझसे भिन्न और कुछ भी नहीं है। यह सिद्धान्त आप लोग तत्त्वविचार के द्वारा सरलता से समझ लीजिए। अब समस्या यह है कि विषय से मन को अलग कैसे करें? भगवान हंस कहते हैं-इसका समाधान है कि मन और विषय पर डालो मिट्टी और मेरे साथ मिल जाओ।
No comments
Post a Comment