भगवान विष्णु का हंस अवतार- Bhagwan Vishnu Ka Hans Avatar

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 भगवान विष्णु का हंस अवतार
(Bhagwan Vishnu Ka Hans Avatar)

भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को कहा की मैंने ही कृत युग में हंस के रुप में अवतार लेकर प्रजापति ब्रम्हा के मानस पुत्र सनाकादिक को ज्ञान दिया और उनका उद्धार किया। एक बार लोकपितामह ब्रह्माजी अपनी दिव्य सभा में बैठे थे। तभी उनके मानस पुत्र सनकादि चारों कुमार दिगम्बर वेष में वहां आए और पिता को प्रणाम कर उनकी आज्ञा लेकर आसनों पर बैठ गए। उन अत्यंत तेजस्वी चारों कुमारों को देखकर सभा में उपस्थित जन मौन हो गए। सनकादि कुमारों ने अपने पिता ब्रह्माजी से प्रश्न किया- पिताजी! शब्द, स्पर्श आदि विषय (सांसारिक भोग) मन में प्रवेश करते हैं या मन विषयों में प्रवेश करता है, इनका परस्पर आकर्षण है। इस मन को विषयों से अलग कैसे करें? मोक्ष चाहने वाला अपना मन विषयों (सांसारिक भोग-विलास) से कैसे हटा सकता है, क्योंकि मनुष्य जीवन प्राप्त कर यदि मोक्ष की सिद्धि नहीं की गयी तो सम्पूर्ण जीवन ही व्यर्थ हो जाएगा।

सभी प्राणियों के जन्मदाता सृष्टिकर्ता होने पर भी विधाता ब्रह्माजी प्रश्न का मूल कारण नहीं समझ सके क्योंकि वे कर्म-परायण हैं, उनकी बुद्धि कर्म करने में लगी हुई है। जैसे कोई संन्यासी अपने आश्रम का निर्माण करवा रहा हो और उसकी बुद्धि ईंटों की गाड़ी गिनने में लगी हो तो उसका भजन तो गया काम से। वैसे ही ब्रह्माजी की बुद्धि तो सृष्टि रचना में लगी रहती है कि किस जीव को उसके पूर्वजन्म के कर्मानुसार कैसा शरीर देना है, इसलिए वे अपने पुत्रों के प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके। सनकादि कुमारों के प्रश्न का उत्तर देने के लिए भगवान ने धारण किया हंस अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजी को बताया कि तब ब्रह्माजी आदिपुरुष परब्रह्म परमात्मा का मेरा ध्यान करने लगे। मैं हंस का रूप धारण करके वहां गया वह मेरा हंसा अवतार था। ब्रह्माजी के ध्यानमग्न होते ही सभा में सबके सामने अत्यंत उज्जवल, तेजस्वी व परम सुन्दर महाहंस के रूप में भगवान प्रकट हो गए। 
भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को कहा की मैंने ही कृत युग में हंस के रुप में अवतार लेकर प्रजापति ब्रम्हा के मानस पुत्र सनाकादिक को ज्ञान दिया और उनका उद्धार किया। एक बार लोकपितामह ब्रह्माजी अपनी दिव्य सभा में बैठे थे। तभी उनके मानस पुत्र सनकादि चारों कुमार दिगम्बर वेष में वहां आए और पिता को प्रणाम कर उनकी आज्ञा लेकर आसनों पर बैठ गए। उन अत्यंत तेजस्वी चारों कुमारों को देखकर सभा में उपस्थित जन मौन हो गए। सनकादि कुमारों ने अपने पिता ब्रह्माजी से प्रश्न किया- पिताजी! शब्द, स्पर्श आदि विषय (सांसारिक भोग) मन में प्रवेश करते हैं या मन विषयों में प्रवेश करता है, इनका परस्पर आकर्षण है। इस मन को विषयों से अलग कैसे करें? मोक्ष चाहने वाला अपना मन विषयों (सांसारिक भोग-विलास) से कैसे हटा सकता है, क्योंकि मनुष्य जीवन प्राप्त कर यदि मोक्ष की सिद्धि नहीं की गयी तो सम्पूर्ण जीवन ही व्यर्थ हो जाएगा।sakshambano in hindi, saksham bano in hindi, in hindi, kiyon saksambano in hindi, kiyon saksambano achcha lagta hai in hindi, kaise saksambano in hindi, kaise saksambano brand se sampark  in hindi, sampark karein saksambano brand se in hindi, saksambano brand in hindi, sakshambano bahut accha hai in hindi, gyan ganga sakshambnao se in hindi,apne aap ko saksambano in hindi, ek kadam saksambano ki or in hindi,saksambano phir se in hindi, ek baar phir saksambano in hindi, ek kadam saksambano ki or in hindi, self saksambano in hindi, give advice to others for saksambano, saksambano ke upaya in hindi, saksambano-saksambano india in hindi, saksambano-saksambano phir se in hindi, सक्षम बनो हिन्दी में, sab se pahle saksambano, sab se pahle saksam bano, aaj hi sab se pahle saksambano, aaj hi sab se pahle saksam bano, bhagwan vishnu ka ansh avatar kaise hua in hindi, vishnu bhagwan ke 10 avatar in hindi, vishnu bhagwan ke 24 avatar in hindi, bhagwan vishnu ke avtar ke naam in hindi, hans avatar of vishnu in hindi, hans avatar ki katha ki katha in hindi, hans avatar ke barein mein in hindi, hans avatar  kya hai hindi, hans avatar image, hans avatar  jpgeg, hans avatar  jpg, hans avatar  photo,  भगवान विष्णु का हंस अवतार hindi, Bhagwan Vishnu Ka Hans Avatar in hindi in hindi,

उस अलौकिक हंस को देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग खड़े होकर उन्हें प्रणाम करने लगे। ब्रह्माजी ने महाहंस की पाद्य-अर्घ्य आदि से पूजा कर सुन्दर आसन पर बिठाया। सनकादि कुमारों ने उस परम तेजस्वी महाहंस से पूछा-श्आप कौन हैं? भगवान हंस ने विचित्र उत्तर देते हुए कहा- मैं इसका क्या उत्तर दूँ? इसका निर्णय तो आप लोग ही कर सकते हैं। यदि इस पांचभौतिक शरीर को आप लोग आप कहते हैं तो सबके शरीर पंचभूतों से ही बने हुए हैं। जैसे सारे आभूषण एक सोने से बने होते हैं और सारे बर्तन एक ही मिट्टी से बने होते हैं। पंचभूत-पृथ्वी, वायु, जल, तेज और आकाश से रस, रक्त, मेदा, मज्जा, अस्थि और शुक्र बनता है जिससे शरीर का निर्माण होता है, तो देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सभी के शरीर पांचभौतिक होने के कारण एकरूप हैं। 

जीव तो मेरा स्वरूप है, यह मन विषयों का चिन्तन करते-करते विषयाकार (सांसारिक भोगों में लिप्त) हो जाता है और विषय मन में प्रवेश कर जाते हैं, यह बात सत्य है किन्तु आत्मा का मन और विषय के साथ कोई सम्बन्ध ही नहीं है। भगवान हंसनारायण ने उपदेश किया कि पहले मन विषयों में जाकर विषयाकार बनता है। उसके बाद विषयाकार मन में विषय स्थिर हो जाते हैं। अब आप लोग ही सोचें और निर्णय करें कि मन विषयों में जाता है या विषय मन में आते हैं? मन से, वाणी से, दृष्टि से तथा इन्द्रियों से जो कुछ भी ग्रहण किया जाता है, वह सब मैं ही हूँ, मुझसे भिन्न और कुछ भी नहीं है। यह सिद्धान्त आप लोग तत्त्वविचार के द्वारा सरलता से समझ लीजिए। अब समस्या यह है कि विषय से मन को अलग कैसे करें? भगवान हंस कहते हैं-इसका समाधान है कि मन और विषय पर डालो मिट्टी और मेरे साथ मिल जाओ। 

मन में निवास करने वाला संसार बहुत रुलाता है। तुम अपने मन से संसार को निकाल डालना और मन को संभाल कर रखना। सारे गुण मुझ निर्गुण का ही भजन करते हैं। जैसे कोई बच्चा हाथ में खिलौना लिए मां की गोदी में बैठ कर रो रहा हो तो मां उससे कहती है बेटा, यह खिलौना फेंक दे और मेरी गोदी में बैठ वैसे ही परमात्मा कहते हैं कि अरे आत्मा! तू मन और विषय के खिलौनों को फेंक दे तथा मुझसे एक हो जाय क्योंकि आत्मा के सिवाय दूसरी कोई वस्तु है ही नहीं। बाकी सब स्वप्न की तरह झूठ है। सब कुछ मन का ही खेल है और वह बहुत चंचल है। शरीर प्रारब्ध के अनुसार रहता है और उसमें प्राण चलते हैं परन्तु जीवन्मुक्त महापुरुष कभी इस शरीर को मै नहीं कहते हैं। श्रीमद्भभागवत में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-जो पुरुष निरन्तर विषय चिन्तन करता है, उसका चित्त विषयों में फंस जाता है और जो मेरा स्मरण करता है, उसका चित्त मुझमें तल्लीन हो जाता है। हंस रूप भगवान के उत्तर से सनकादि कुमारों का संदेह दूर हो गया। सभी ने भगवान की स्तुति की और देखते-ही-देखते भगवान अंतर्ध्यान होकर अपने धाम को चले गए।

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