(Importance of Kamada Ekadashi Vrat)
चैत्र शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को कामदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन करने और कामदा एकादशी व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। किसी भी एकादशी पर पूजन के समय एकादशी महात्म्य की कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए। कामदा एकादशी व्रत कथा पढ़ने या सुनने करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार कामदा एकादशी को उपवास करने से श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है। जिनके पहले से पुत्र हो, उन्हें चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उपवास नहीं करना चाहिए। एकादशी का व्रत नित्य और काम्य दोनों है। नित्य का मतलब है, जो व्रत ग्रहस्थ के लिये करना जरूरी हो और काम्य व्रत का मतलब है जो किसी वांछित वस्तु की प्राप्ति के लिए किया जाए।दोनों पक्षों की एकादशी पर व्रत केवल उनके लिये नित्य है, जो हस्थ नहीं है। ग्रहस्थों के लिये केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी पर ही नित्य है, कृष्ण पक्ष में नहीं। एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये। अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन। आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूं। कृपा करके मुझे चैत्र शुक्ल एकादशी का महत्व बताइये। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठ जी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूं। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्यो से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था वह एक दूसरे से कुछ समय के लिए भी अलग हो जाते तो व्याकुल हो उठते थे। एक समय राजा पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया। उसका स्वर भंग हो गया जिसके कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। कार्कोट नामक नाग ने ललित के मन के भाव जान लिए और पद भंग होने का कारण राजा को बता दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अतः तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस बन गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। इस तरह से वह राक्षस बनकर अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा। जब ललिता को यह सारा वृत्तांत ज्ञात हुआ तो उसे अत्यंत दुख हुआ। वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने जंगलों में रहने लगा। ललिता उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, वहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि ने कहा तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो? तब ललिता बोली कि हे मुनीश्वर। मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। कृपा करके उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या। अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)
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