भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अगर तुम मेरे से प्रसन्न हो तो तुम एक बार पृथ्वी लोक पर पुरुष के अवतार में जन्म लो और मैं तुम्हारी प्रिय बनकर स्त्री के रूप में जन्म लूं। तुम मेरे स्वामी और मैं तुम्हारी पत्नी बनकर रहूँ यही मेरी इच्छा है। माता पार्वती ने भगवान शिव की इच्छा को स्वीकृति दे दी। माता पार्वती ने कहा भद्रकाली का मेरा स्वरूप पृथ्वी पर कृष्ण का अवतार लेगा और आप अपने अंश से स्त्री का रूप धारण कर लीजिए। भगवान शिव कहते है कि मैं पृथ्वी पर नौ रूपों में अवतरित होउंगा। सबसे पहले वृषभानु पुत्री राधा के रूप में जन्म लूंगा। भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि राधा के अतिरिक्त मैं कृष्ण की आठ पटरानियों के रूप में जन्म लूंगा। जिसमें रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवंती, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा मेरा ही अंश होंगी। इसके साथ ही जो मेरे भैरव रूप हैं वो भी पृथ्वी पर रमणीरूप धारण कर भूमि पर अवतरित होंगे। माता पार्वती ने कहा कि आपकी इच्छा पूरी होगी। इसके साथ ही मेरी जया और विजया नाम की दोनों सखियां पुरुष रूप में पृथ्वी पर जन्म लेंगी जो श्रीदामा और सुदामा होंगी।
भगवान विष्णु भी पृथ्वी पर मेरे बड़े भाई बनकर पृथ्वी पर जन्म लेंगे जो बलराम और अर्जुन के नाम से प्रसिद्ध होंगे। माता पार्वती ने कहा कि इस तरह मैं आपके साथ पृथ्वी पर पुरुष रूप में विरह करके वापस कैलाश पर लौट आउंगी। इसके बाद ब्रहमाजी से आज्ञा लेकर माँ काली के रूप में श्रीकृष्ण और राधा के रूप में भगवान शिव धरती पर अवतरित हुए। महाभारत काल में पांडवों ने माँ भगवती की पूजा की थी। माँ भगवती ने कहा था कि मैंने श्रीकृष्ण रूप में धरती पर अवतार लिया है और कंस का वध किया है। कौरवों के अंत तक कृष्ण रूप में तुम्हारे साथ रहूंगी।
राधा को श्रीदामा का श्राप
ब्रहमवैवर्त पुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में रहती थी। एक बार उनकी अनुपस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण अपनी दूसरी पत्नी विरजा के साथ घूम रहे थे। तभी राधाजी आ गई, वह विरजा पर नाराज होकर वहां से चली गई। भगवान श्रीकृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को राधा का यह व्यवहार सही नहीं लगा और वह राधा को अशब्द कहने लगे। राधाजी ने क्रोधित होकर श्रीदामा को अगले जन्म में शंखचूड़ नामक राक्षस बनने का श्राप दे दिया। इस पर श्रीदामा ने भी राधा को पृथ्वी लोक पर जन्म लेकर 100 वर्ष तक कृष्ण विरह का श्राप दे दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा तुम्हारा जन्म पृथ्वी लोक होगा और तुम सदैव मेर पास रहोगी। कहते हैं कि नृग पुत्र राजा सुचन्द्र और पितरों की मानसी कन्या कलावती ने 12 वर्षों तक तप करके ब्रहमा जी से राधा को पुत्री रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा था। इसी कं कारण द्वापर में ये दोनों वृषभानु और रानी कीर्ति नाम से जन्में और दोनों पति पत्नी बने। जैसे ही राधा जी के अवतरण का समय आया सम्पूर्ण व्रज में कीर्तिदा के गर्भधारण का समाचार सुख-स्त्रोत बन कर फैलने लगा। सभी लोग अवतरण की परिक्षा करने लगे। वह मुहूर्त आया।
भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी चन्द्रवासर मध्यान्ह के समय आकाश से तीव्र ज्योति फैल गई जिससे सभी के नेत्र बन्द हो गये। इसके पश्चात् सबने देखा एक नन्हीं बालिका कीर्तिदा मैया के समक्ष लेटी हुई है। उनके चारों ओर दिव्य पुष्पों का ढेर है। इनके अवरण से नदियों की धारा निर्मल हो गई, सारी दिशाएं प्रसन्न हो उठी। पद्म पुराण में राधा वृषभानु नामक वैष्य गोप की पुत्री थी। उनकी माता का नाम कीर्ति था उनका नाम वृषभानु कुमारी पड़ा। बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। कुछ विद्वान मानते है कि राधा जी का जन्म यमुना के निकट रावल ग्राम में हुआ था। और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए।
राधा-कृष्ण विवाह में इतने लोग कैसे?
ब्रहम वैवर्त पुराण अनुसार माता पार्वती जी ने भगवान शिव से राधा महत्ता सुनने का आग्रह किया। भगवान शिव कहते हैं बारह वर्ष बीतने पर उन्हें नूतन यौवन में प्रवेश करती देख माता-पिता ने रायाण वैश्य के साथ उसका सम्बन्ध निश्चित कर दिया। उस समय श्रीराधा घर में अपनी छाया को स्थापित करके स्वयं अन्तर्धान हो गयी थी। अर्थात् जिस राधा जी का विवाह रायाण के साथ हुआ था वो राधा जी की छाया थी। विवाह के वक्त राधा जी स्वयं अन्तर्णान हो गयी थी। धर्म शास्त्रों में भी इस बात का उल्लेख है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा के पति-पत्नी थे, लेकिन इसके बारे में सिर्फ तीन लोगों को मालूम था। एक भगवान श्रीकृष्ण, दूसरी राधा और तीसरे ब्रहमा जी। मान्यता है कि ब्रहमा जी ने कृष्ण और राधा का विवाह करवाया था। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार नंदराय जी बालकश्रीकृष्ण को लेकर भांडीर वन से गुजर रहे थे। उसी समय आचानक देवी राधा प्रकट हुई। देवी राधा के दर्शन पाकर नंदराय जी ने श्रीकृष्ण को राधा जी की गोद में दे दिया। श्रीकृष्ण बाल रूप त्यागकर किशोर बन गए। तभी ब्रहमा जी भी वहाँ उपस्थित हुए। ब्रहमा जी ने कृष्ण का विवाह राधा से करवा दिया। कुछ समय तक कृष्ण राधा के संग इसी वन में रहे। फिर देवी राधा ने कृष्ण को उनके बाल रूप में नंदराय जी को सौंप दिया।
श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी थी
जब भी संसार में प्रेम और त्याग की बात होती है, तो सभी की जुबा पर बस एक ही नाम आता है राधा-कृष्ण। अगर राधा-कृष्ण साथ नहीं होते थे फिर भी एक दूसरे से जुदा नहीं थे। यही वजह है कि आज भी हम जब भी कृष्ण का नाम लेते हैं तो राधा के नाम के साथ ही लेते हैं राधा-कृष्ण। राधा-कृष्ण का बचपन साथ बीता लेकिन कृष्ण पहली बार राधा से तब अलग हुए जब मामा कंस ने बलराम और कृष्ण को आमंत्रित किया। तब कृष्ण जी ने कंस का वध कर अपने मांता-पिता को कारागार से रिहा कराया था। लेकिन उसके बाद उन्हें वापस वृंदावन जाने का मौका नहीं मिला। एक वक्त ऐसा आया जब राधा एक बार फिर श्री कृष्ण से मिलीं। राधा कृष्ण की नगरी द्वारिका जा पहुंची और वहां उन्होंने कृष्ण की रुक्मिनी और सत्यभामा से विवाह के बारे में सुना लेकिन वह दुखी नहीं हुईं क्योंकि उन्हें पता था उनके कृष्ण ने अपना कर्तव्य निभाया है। राधा के पहुंचने पर जब कृष्ण ने देखा तो दोनों बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन उनके पास एक दूसरे का कुशल पूछने के लिए शब्द नहीं था। दोनों संकेतों की भाषा में एक दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे। शास्त्रों में वर्णित है कि राधा जी को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया। राधा दिन भर महल में रहती थीं और महल से जुड़े कार्य देखती थीं। मौका मिलते ही वह कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। लेकिन राधा को वहां वो आध्यात्मिक जुड़ाव नहीं हो पा रहा था। इसलिए वह कृष्ण से दूर जाने पर मजबूर हो गयीं और एक दिन वह महल से चुपके से निकल गयीं।
राधा निकल तो पड़ी थीं लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वह कहां जा रही हैं, लेकिन भगवान श्री कृष्ण भली भांती जानते थे। धीरे-धीरे समय बीता और राधा अपने अंतिम समय में अकेली जीवन गुजार रही थीं। उस वक्त उन्हें भगवान श्री कृष्ण की आवश्यकता पड़ी। राधा किसी भी तरह भगवान कृष्ण को देखना चाहती थीं। भगवान कृष्ण को जैसे ही ये ज्ञात हुआ वह उनकी उनके सामने आ गए। कृष्ण को अपने सामने देखकर राधा प्रसन्न हो गयीं। लेकिन वो राधा का आखिरी समय था अपने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना था। राधा के अंतिम समय से कृष्ण अच्छी तरह वाकिफ थे उनका मन उदास था फिर भी उन्होंने राधा से कहा कि वह उनसे कुछ मांगे, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वह आखरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना चाहती हैं। श्री कृष्ण ने बेहद सुरीली धुन में बांसुरी बजाने लगे। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग दिया। लेकिन भगवान होते हुए भी राधा के प्राण त्यागते ही भगवान श्री कृष्ण बेहद दुखी हो गए और उन्होंने बांसुरी तोड़कर कोसों दूर फेंक दी। जिस जगह पर राधा ने कृष्ण जी का मरने तक इंतजार किया उसे आज ‘राधारानी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर महाराष्ट्र में है।
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