Empagliflozin Medicine
एहतियाती तौर पर भारत के सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (Central Drugs Standard Control Organisation) ने राज्यों के सभी ड्रग कंट्रोलर्स को इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार मानी जा रही सोडियम ग्लूकोज कोट्रांसपोर्टर-2 (Sodium Glucose Cotransporter) दवा के पैकेट पर इससे जुड़ी चेतावनी छापने का आदेश दिया है। एसजीएलटी2 (SGLT2) के फॉर्मूले पर आधारित दवाएं कैनग्लिफ्लोजिन (Canagliflozin), डापाग्लिफ्लोजिन (Dapagliflozin) और एम्पाग्लाईफ्लोजिन (Empagliflozin) है।
ये तीनों दवाएं डायबिटीज के मरीजों में शुगर लेवल किडनी के जरिए कम करती हैं, जबकि बाकी ज्यादातर दवाएं एक्शन लेने के लिए पाचक-ग्रंथि का इस्तेमाल करती हैं। अभी बैन नहीं, पर हो रही है निगरानी अमेरिकी ड्रग रेग्युलेटर एफडीए ने हालांकि अभी तक इन दवाओं पर बैन नहीं लगाया है लेकिन डॉक्टरों को इसके असर पर नजर रखने को कहा है। रेग्युलेटर ने नए क्लास की इन तीनों दवाओं को अपनी निगरानी सूची में डाल दिया है। इस दवा को लिखने वाले डॉक्टरों को मरीज में लक्षणों और कीटोन्स में बदलाव पर नजर रखने की सलाह दी गई है। कहा गया है कि इस दवा के खाने के बाद अगर मरीज को सांस लेने में दिक्कत, उल्टी, पेट में दर्द, अकारण थकान या अनिद्रा की शिकायत होती है तो इसे गंभीरता से लिया जाए।
जब शरीर में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है और खासकर शुगर पेशेंट्स में जब किडनी एसिड को बाहर करना बंद कर देती है तब एसिडोसिस हो जाता है। एसिडोसिस दो प्रकार के होते हैं- मेटाबोलिक और रिसपाइरेटरी। डायबिटीज में शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है। कार्बोहाइड्रेट के बजाय फैट बर्न होने लग जाता है। इससे शरीर में केटोन्स बनने लग जाते हैं। ये एसिड की मात्रा बढ़ा देते हैं। डायबिटीज की दवाएं लेने पर यह मात्रा नियंत्रण से बाहर हो जाती है। डायबिटीज की इन दवा के कारण जननांगों में इंफेक्शन का खतरा बताया जा रहा है। ऐसे मामले अमेरिका और कनाडा में पहले ही सामने आ चुके हैं। अब भारत में टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में इस तरह के गंभीर इंफेक्शन का मामला देखने को मिला है। ये संक्रमण शरीर के प्राइवेट पार्ट और उसके आसपास के हिस्सों में हो रहा है।
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