मां गंगा को नदियों में सबसे पवित्र व पूजनीय माना जाता है और यही कारण है कि लोग दूर-दूर से गंगा नदी में स्नान करने आते हैं। माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से न सिर्फ व्यक्ति के सारे कष्ट मिटते हैं, बल्कि उसके सारे पाप भी धुल जाते हैं। गंगा आरती का अपना एक अलग महत्व है। गंगा आरती का दृश्य मात्र देखने से ही व्यक्ति भक्ति के रस में सराबोर हो जाता है। सप्तपुरियों में से एक हैं हरिद्वार, जहां प्रतिदिन मोक्ष की कामना लिए देश-विदेश से लोग गंगा में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। भगवान शिव और हरि दोनों से जुड़ी इस पावन नगरी का धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व है। सनातन परपंरा में जिन सात प्राचीन पुरियों का जिक्र आता है, उनमें हरिद्वार का बहुत महत्व है। हरिद्वार दो शब्दों हरि और द्वार से मिलकर बना है। जिसमें हरि का तात्पर्य भगवान विष्णु से है। यहीं से होकर बद्रीनाथ (विष्णुतीर्थ) को रास्ता जाता है, इसी लिए इसे हरिद्वार कहते हैं। वहीं शिव भक्त इसे हरद्वार कहते हैं, क्योंकि यहीं से भगवान केदारनाथ यानि (शिवतीर्थ) का भी रास्ता जाता है।
गंगा नदी के किनारे बसी इस पावन नगरी में देश-दुनिया से प्रतिदिन हजारों लोग मोक्ष की कामना लिए हरिद्वार पहुंचते हैं। गंगा जल को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र जल माना जाता है, ऐसे में हर कोई जीवन में एक बार हरिद्वार जरूर जाना चाहता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार हरिद्वार में गंगा जी में स्नान मात्र से ही व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। हरिद्वार को गंगा द्वार भी कहते हैं क्योंकि मां गंगा यहीं से मैदानी भागों में प्रवेश करती हैं। हरि की इसी पावन नगरी में कभी अमृत की बूंदें गिरी थी, तब से यह क्षेत्र और भी ज्यादा पवित्र और पुण्यदायी हो गया। पृथ्वी पर लगने वाले चार प्रमुख कुंभ में से एक का आयोजन हरिद्वार में ही होता है।
हर की पौड़ी हरिद्वार का प्रमुख स्थान है, जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान विष्णु जब पृथ्वी पर आए तो इसी स्थान पर आए थे। यही कारण है कि इसे हरि की पैड़ी कहा जाता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में हर की पौड़ी कहा जाने लगा। मान्यता है कि समुद्रमंथन के बाद जब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत घट को लेकर छीना-झपटी हो रही थी तो उसमें कुछ बूंदें हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गिर पड़ी थी।
गंगा स्नान देवभूमि हरिद्वार-Ganga Snan Devbhoomi Haridwar
हरिद्वार में माता चंडी का मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नीलपर्वत के शिखर पर स्थित है। मान्यता है कि चण्डी माता ने शुम्भ निशुम्भ के सेनानायक चण्ड-मुण्ड का इसी स्थान पर वध किया था। जिसके कारण लोग यहां पर उन्हें चंडी देवी के नाम से पूजने लगे। हर की पौड़ी के ठीक उपर शिवलिक पर्वत श्रृंखला के एक पर्वत शिखर पर मां मनसा देवी का पावन धाम है। हरिद्वार का यह अति प्राचीन मंदिर मायादेवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इन्हीं के नाम से हरिद्वार मायापुरी कहा जाता है। हर की पौड़ी से तकरीबन तीन किलोमीटर दक्षिण में स्थित कनखल एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक स्थल है। मान्यता है कि राजा दक्ष ने इसी स्थान पर यज्ञ किया था, जिसमें सती ने आत्मदाह किया था। यहीं पर दक्षेश्वर महादेव का मन्दिर है।
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