हनुमान जी से संबंधित
हिंदू ग्रंथों में आठ चिरंजीवियों का उल्लेख है और भगवान हनुमान उनमें से एक हैं। ऐसा कहा जाता है कि वह कलयुग के अंत तक इस धरती पर भगवान श्री राम नाम की महिमा का वर्णन करते रहेंगे। हनुमान जी को इस युग में भी पूजनीय माना जाता है और उन्हें अमर मानते हुए ही उनकी पूजा की जाती है। हनुमानजी ने अपना सारा जीवन प्रभु राम की भक्ति में ही समर्पित कर दिया। रामायण ही नहीं बल्कि महाभारत और अन्य पुराणों में भी हनुमान जी की भक्ति का वर्णन किया गया है। ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए इसी दिन हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र है कि केसरी और अंजना के पुत्र और भगवान शिव का अवतार है उन्हें भगवान शिव के अंश के रूप में भी पूजा जाता है। हनुमान जी को पवन पुत्र के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर राम अवतार लिया तब भगवान शिव ने उनके साथ रहने के लिए पृथ्वी पर हनुमान रूप में अवतार लिया।
• हनुमान जी का नाम जन्म के समय हनुमान नहीं था बल्कि एक बार उन्होंने सूर्य को कोई मीठा फल समझकर निगल लिया था। तब इंद्र ने सूर्य को मुक्त करने के लिए वज्र प्रहार किया और उनका जबड़ा सूज गया। तभी से उनका नाम हनुमान पड़ा क्योंकि हनुमान संस्कृत के हनुमत शब्द से बना है। हनुमत एक शब्द और एक प्रत्यय का जोड़ है। हनु या हनू का अर्थ है जबड़ा और मत प्रत्यय बन जाती है। हनुमान का अर्थ है वह जिसका जबड़ा सूज गया हो या विकृत हो गया हो।
• माता अंजना और केसरी के कुल पांच पुत्र थे जिनमें से हनुमान सबसे बड़े थे। भगवान हनुमान के भाई-बहनों के जन्म के क्रम में उनके नाम मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान और द्र्टिमान हैं। महाभारत काल में पांडु और कुंती पुत्र भीम को भी हनुमान जी का भाई कहा गया है।
• हनुमान जी एक ब्रह्मचारी के रूप में जाने जाते हैं फिर भी उन्होंने मकरध्वज नाम के एक पुत्र को जन्म दिया। कहा जाता है कि अपनी अग्निमय पूंछ से लंका को जलाने के बाद उन्होंने अपनी पूंछ को ठंडा करने के लिए समुद्र में डुबो दिया। उस समय उनके शरीर का पसीना एक मछली ने निगल लिया और उसी मछली से मकरध्वज का जन्म हुआ।
• पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी की उपस्थिति राम के समय में यानी रामायण काल में मौजूद थी। हनुमान जी अर्जुन के रथ पर अपने चित्रित ध्वज के रूप में कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में भी उपस्थित थे। ऐसा उन्होंने भगवान कृष्ण की श्रद्धा के रूप में किया था। भगवान कृष्ण भी विष्णु जी का दसवां अवतार थे और इसी वजह से हनुमान जी उनके साथ उपस्थित थे। हनुमान जी की उपस्थिति ने कुरुक्षेत्र युद्ध में रथ और उसके निवासियों को सुरक्षा प्रदान की और जैसे ही युद्ध में विजय मिली हनुमान जी वापस अपने मूल रूप में आ गए।
• ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी ने रामजी और लक्ष्मणजी का अपहरण करने वाले पाताल के राक्षस राजा को मारने के लिए पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया था। हनुमान को इस बात का पता लगा कि अहिरावण को मारने के लिए उनको एक ही समय में पांच दीपकों को बुझाने की जरूरत है क्योंकि उनके भीतर राक्षस राजा की आत्मा रहती है। इसलिए हनुमान जी ने पांच सिरों में रूपांतरित हो गए। पंचमुखी हनुमान के रूप में केंद्र में हनुमान जी मौजूद थे। दक्षिण में नरसिम्हा जी थे जो शेर के रूप में थे, पश्चिम में गरुड़ जी, उत्तर में सुअर का सिर और आकाश के सामने एक घोड़े का सिर था।
• पराशर संहिता के अनुसार, हनुमान जी सूर्य देव के पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए गए थे। हनुमान जी के गुरु सूर्य देव के पास 9 विद्याएं थी। जिनका ज्ञान हनुमान जी जानना चाहते थे। पांच विद्याएं तो हनुमानजी सिख चुके थे। लेकिन बाकी की चार विद्याओं के लिए हनुमानजी के शादीशुदा होना बेहद जरूरी था। हनुमान जी सारी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। इस समस्या का समाधान सूर्य देव ने निकाला और हनुमानजी को शादी करने का सुझाव दिया। सूर्य देव के इस प्रस्ताव पर पहले तो हनुमान जी राजी नहीं हुए। लेकिन बाद में उन्होंने हां कर दिया। इसके बाद सूर्य देव ने अपनी तपस्वी बेटी सुवर्चला के साथ शादी करने के प्रस्ताव हनुमानजी के सामने रखा। उन्होंने कहा की सुवर्चला से शादी करने के बाद भी वह ब्रह्मचारी ही रहेंगे। क्योंकि शादी के बाद वह फिर से तपस्या में लीन हो जाएंगी। इसके बाद हनुमान जी ने सुर्वचला के साथ शादी कर ली और इस तरह उन्होंने शादी के बाद अपनी पूर्ण शिक्षा हासिल की और ब्रह्मचारी का पालन भी किया। इसके बाद सुर्वचला हमेशा के लिए अपनी तपस्या में लीन हो गई। इस तरह हनुमान जी शादीशुदा होने के बाद भी ब्रह्मचारी बने रहे।
• तेलंगाना के खम्मम जिले में हनुमान जी और उनकी पत्नी सुर्वचला की पूजा की जाती है। इस मंदिर के बारे में खास मान्यता है की यहां जो भी पति पत्नी पूजा करता है उनका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। इस मंदिर में ज्येष्ठ शुद्ध दशमी के दिन माता सुवर्चला और हनुमान जी की शादी का उत्सव मनाया जाता है।
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