महाकुंभ प्रयागराज-Mahakumbh Prayagraj

Share:

 

महाकुंभ प्रयागराज
Mahakumbh Prayagraj 

हर 12 साल में लगने वाले कुंभ मेले को पूर्ण कुंभ कहा जाता है। इसका आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन या नासिक में होता है। पूर्ण कुंभ में स्थान का निर्णय ज्जोतिषीय गणना के आधार पर किया जाता है। प्रत्येक स्थल का उत्सव सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थितियों के एक अलग सेट पर आधारित है। उत्सव ठीक उसी समय होता है जब ये स्थितियाँ पूरी तरह से व्याप्त होती हैं, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे यह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।

maha kumbh mela prayagraj hindi, Kumbh Ki Katha In Hindi, kumbh kitne saal me lagta hai, kumbh kitne prakar ke hote hain, importance of kumbh snan,maha kumbh mela prayagraj, maha kumbh me snan ka mahatva,  kumbh story in hindi, kumbh kab se hai hindi, sakshambano, sakshambano viral post,

अर्ध कुभ का आयोजन हर 6 साल में किया जाात है। इसका आयोजन केवल दो स्थानों प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। उत्तराखंड में गंगा नदी पर हरिद्वार, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी पर उज्जैन, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी पर नासिक और उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर प्रयागराज। महाकुंभ का आयोजन हर 144 साल बाद किया जाता है। इसका आयोजन केवल प्रयागराज में ही होता है। 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ आता है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लग रहा है। यह मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और संस्कृति का प्रतीक है। यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है, मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री, इत्यादि भक्त इसमें भाग लेते हैं।

महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया था। ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और सारा व्रतांत सुनाया। तब भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र यानी क्षीर सागर में मंथन करके अमृत निकालने को कहा। ये दूधसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है। सारे देवता भगवान विष्णु जी के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गया। इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला रहा। ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थी। जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चैथी नासिक में गिरी थी। इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुम्ब मेले का आयोजन किया जाता है। 

No comments