भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी क्यों हुई जल-विलीन-Bhagwan Shri Krishna ki Dwarka Nagari kyon hui jal-vileen

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भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी क्यों हुई जल-विलीन
(Bhagwan Shri Krishna ki Dwarka Nagari kyon hui jal-vileen)

हिंदू धर्म के चार धामों में से एक द्वारका धाम को भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कहते हैं। द्वारका धाम गुजरात के काठियावाड क्षेत्र में अरब सागर के समीप स्थित है। हर साल अलग-अलग राज्यों से इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं। द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित है और यह मंदिर हजारों साल पुराना है। यह मंदिर अपनी शिल्पकारी के लिए बेहद लोकप्रिय है। ऐसा कहा जाता है कि 5000 साल पहले मथुरा को छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी को बसाया था और बाद में द्वारका नगरी ही श्रीकृष्ण का निवास स्थान हुआ करती थी। भगवान कृष्ण ने इस जगह पर कई साल बिताए थे और साथ ही यहां अपना निजी महल भी बनवाया था। लेकिन ऐसा क्या कारण था कि श्री कृष्ण अपनी जन्मस्थली को छोड़कर जाना पड़ा।

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भगवान श्रीकृष्ण का बचपन मथुरा शहर में गुजरा था लेकिन कंस का वध करने के बाद वे मथुरा को छोड़कर द्वारका चले आए और वहीं अपनी नगरी बसाई थी। ऐसा कहा जाता है जब कंस का वध हो गया तब कंस का रिश्तेदार जरासंध था जो कि बहुत शक्तिशाली था। कंस का वध होने के बाद जरासंध ने बदला लेने के लिए कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा का पता लगाया और लगातार मथुरा पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। श्रीकृष्ण ने उसे कृष्ण द्वारा बार-बार परास्त किया गया लेकिन वह आक्रमण करता ही रहा था। ऐसा लगातार 17 बार हुआ और 17 आक्रमणों में जरासंध की हार हुई लेकिन वह एक पुनः अपना शक्ति संचय कर दोबारा मथुरा पर आक्रमण कर देता था। बार-बार आक्रमण होने की वजह से मथुरा के वासियों को नुकसान होने लगा। इसके बाद कृष्ण ने आत्म चिंतन किया कि कंस का वध मैंने किया था और कंस के वध का उत्तरदाई मैं हूं लेकिन जब यह बार-बार आक्रमण करता है तो मृत्यु मेरे सैनिकों की और प्रजा की होती है। मथुरा राज्य विकसित नहीं हो पा रहा है क्योंकि युद्धोपरांत होने वाली हानियों से निपटने में समय लगता था।

इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त यदुवंशियों के साथ मथुरा छोड़ने का फैसला लिया क्योंकि कृष्ण यह जानते थे जरासंध की मृत्यु उनके हाथों नहीं लिखी है। ऐसे में जरासंध द्वारा मथुरा की प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण रातों-रात कृष्ण ने मथुरा का त्याग कर दिया जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात में जाकर समुद्र किनारे अपनी एक दिव्य नगरी बसायी। इस नगरी का नाम द्वारका रखा गया। माना जाता है कि महाभारत के 36 वर्ष बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी।

श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी जल विलीन होने की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जरासंध द्वारा प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण मथुरा को छोड़कर चले गए थे। श्रीकृष्ण ने समुद्र किनारे अपनी एक दिव्य नगरी बसायी। इस नगरी का नाम द्वारका रखा। माना जाता है कि महाभारत के 36 वर्ष बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी। 

महाभारत में पांडवों की विजय हुई और सभी कौरवों का नाश हो गया था। इसके बाद जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर में राजतिलक हो रहा था, उस समय श्रीकृष्ण भी वहां मौजूद थे। तब गांधारी ने श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध का दोषी ठहराते हुए भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि अगर मैंने अपने आराध्य की सच्चे मन से आराधना की है और मैंने अपना पत्नीव्रता धर्म निभाया है तो जो जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे कुल का नाश भी तुम्हारी आंखों के समक्ष होगा। कहते हैं इस श्राप की वजह से श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी पानी में समा गई।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, देव ऋषि नारद, कण्व द्वारका गए, तब यादव वंश के कुछ लड़के ऋषियों के साथ उपहास करने के प्रयोजन से श्री कृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेश में ले गए और ऋषियों से कहा कि यह स्त्री गर्भवती है। आप इस के गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में बताइए कि क्या जन्म लेगा? ऋषियों ने अपना अपमान होता देख श्राप दिया कि इसके गर्भ से मुसल उत्पन्न होगा और उस मुसल से समस्त यदुवंशी कुल का विनाश होगा।

उसके पश्चात सभी यदुवंशी आपस में लड़-लड़कर मरने लगे थे। सभी यदुवंशियों की मृत्यु के बाद बलराम ने भी अपना शरीर त्याग दिया था। श्रीकृष्ण पर किसी शिकारी ने हिरण समझकर बाण चला दिया था, जिससे भगवान श्रीकृष्ण देवलोक चले गए, उधर जब पांडवों को द्वारका में हुई अनहोनी का पता चला तो अर्जुन तुरंत द्वारका गए और श्रीकृष्ण के बचे हुए परिजनों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ लेकर चले गए। इसके बाद देखते ही देखते पूरी द्वारका नगरी रहस्यमयी तरीके से समुद्र में समा गई। 

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