लोक-प्रलोक में श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है - Lok-pralok mein shradh ka punya milta hai

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लोक-प्रलोक में श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है 
(Lok-pralok mein shradh ka punya milta hai)

धार्मिक ग्रंथ के अनुसार श्राद्ध करना अति जरूरी होता है। अगर किसी मनुष्य का विधिवत् श्राद्ध और तर्पण न किया गया हो तो उसे इस लोक से मुक्ति नही मिलती और भूत-पे्रत के रूप में इसी संसार में रह जाता है। धर्म ग्रथों के अनुसार श्राद्ध का अत्यधिक महत्व है। पितरों को पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलती है और इसके साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितरों का श्राद्ध करने से पितर आर्शीवाद के साथ-साथ  पितर ऋण से भी मुक्ति मिलती है।  

पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितर पूरे वर्ष तक प्रसन्न रहते है। पितरों का पिंड दान करने से गृहस्थ जीवन में हर प्रकार से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। सुबह स्नान के बाद पितरों को अंजुली से जल अर्पित किया जाता है इस जल से पितरों की प्यास पूरी होती है। पिंड बनाने में जौ और तिल का प्रयोग शुभ होता है इसके अलावा इसमें कुश का प्रयोग भी आनिवार्य होता है। पिंड दान चांदी के बर्तन में रखकर किया जाना चाहिए। अगर चांदी का बर्तन उपलब्ध न हो तो हरे पत्ते में रखकर किया जाना चाहिए। 

श्राद्धों में ब्राहमणों को भोजन करवाना अति जरूरी होता है इसके बिना श्राद्ध की प्रक्रिया अधूरी होती है। ब्राहमणों के साथ- साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते है।  ब्राहमणों द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है।ब्राहमणों की तृप्ति के साथ-साथ पितरों को भी तृप्ति मिलती है। ब्राहमण को आमत्रित कर सम्मानपूर्वक उनके द्वारा पूजा करने के बाद अपने पूर्वजों के लिए बनाया गया भोजन ब्राहमणों को भोजन करवाया जाता है। ब्राहमणों को दक्षिणा में फल, मिठाई या वस्त्र दिया जाता है। 

धार्मिक ग्रंथ के अनुसार श्राद्ध करना अति जरूरी होता है। अगर किसी मनुष्य का विधिवत् श्राद्ध और तर्पण न किया गया हो तो उसे इस लोक से मुक्ति नही मिलती और भूत-पे्रत के रूप में इसी संसार में रह जाता है। धर्म ग्रथों के अनुसार श्राद्ध का अत्यधिक महत्व है। पितरों को पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलती है और इसके साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितरों का श्राद्ध करने से पितर आर्शीवाद के साथ-साथ  पितर ऋण से भी मुक्ति मिलती है।    पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितर पूरे वर्ष तक प्रसन्न रहते है। पितरों का पिंड दान करने से गृहस्थ जीवन में हर प्रकार से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। सुबह स्नान के बाद पितरों को अंजुली से जल अर्पित किया जाता है इस जल से पितरों की प्यास पूरी होती है। पिंड बनाने में जौ और तिल का प्रयोग शुभ होता है इसके अलावा इसमें कुश का प्रयोग भी आनिवार्य होता है। पिंड दान चांदी के बर्तन में रखकर किया जाना चाहिए। अगर चांदी का बर्तन उपलब्ध न हो तो हरे पत्ते में रखकर किया जाना चाहिए। pitru paksha kya hai in hindi, Pitru Paksha Shradh ke barein mein in hindi, Pitru Paksha Shradh ka mahatva in hindi, Pitru Paksha Shradh ke fayde in hindi, Pitru Paksha Shradh ki jankari in hindi, Pitru Paksha Shradh ki katha in hindi, Pitru Paksha Shradh ki vidhi in hindi, This is the truth if pitru becomes angry then God also becomes angry. 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  श्राद्ध से पुण्य प्राप्त होता है  

पितरों के लिए पसंदीदा भोजन बनाना शुभ माना जाता है।  श्राद्ध के दिन भोजन में जितनी ज्यादा से ज्यादा सब्जी हो काशीफल, दाल-चावल, पूरी व खीर बनाना शुभ माना जाता है। पितृ पक्ष श्राद्ध के दिन तर्पण का समय दोपहर 12 बजे तक शुभ माना जाता है इसे घर या नदी में किया जाना चाहिए। अपने पितरों के आवहन के लिए काले तिल, कुश का मिश्रण करके तर्पण दिया जाता है। भगवान शालीग्राम और यमराज की पूजा के साथ-साथ पितरों की पूजा की जाती है। अपनी तीन पीढियों तक के पूर्वजों का श्राद्ध करने की मान्यता है। ब्राहमणों को आदर भाव से विदा करना चाहिए ब्राहमणों के साथ-साथ पितर भी चले जाते हैं। 

धार्मिक पुराणों के अनुसार महाभारत युद्ध में कर्ण की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा स्वर्गलोक में थी। जहां उन्हें बहुत सारे गहने और सोना दिया गया।  परन्तु ऐसा कहा गया है कि तब कर्ण को भोजन की आवश्यकता थी तब भोजन नहीं मिला। इन्द्रदेव ने कहा कि जीवित रहते कर्ण ने सोना ही दान दिया और कभी भी पितृपक्ष में अपने पुर्वजों को भोजन नही दिया। इसलिए कर्ण को अपनी गल्ती सुधारने का मौका दिया गया और उन्हें 15 दिनों के लिए धरती पर भेजा गया। कर्ण ने विधिवत् अपने पितरों का श्राद्ध किया, इन्ही 15 दिनों को पितृपक्ष कहते है। 

जीवन में  पितरों का श्राद्ध करना चाहिए, पितरों का आर्शीवाद मिलता है (Every person should do Pitru Sharadh in life, Pitru gives blessing): यह सच्चाई है अगर पितर रूष्ट हो जाए तो भगवान भी रूष्ट हो जाते है। जीवन में कई तरह समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि के साथ-साथ संतान पक्ष से समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

पितृ कौए के रूप में आते है (They come as crow): पितृपक्ष में काल भी इन आत्माओं को कुछ दिन के लिए स्वतंत्र कर देते है। पितरों का किसी न किसी रूप में धरती पर आगमन होता है। मान्यता है कौऐ को पितरों का रूप माना जात है और श्राद्ध ग्रहण करने के लिए पितर कौए का रूप धारण करते है।इसलिए श्राद्ध का प्रथम अंश कौए को दिया जाता है।

श्राद्धों का मनुष्य के जीवन में विभिन्न तरह से प्रभाव पड़ता है (Pitru sharadh have different effects in human life):  पुराणों के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को सबसे पहले अपने पूर्वजों को प्रसन्न करना होता है। कुण्डली में पितृ दोष को एक जटिलता से लिया जाता है। 

पूजा के बाद पूरी, खीर तथा अन्य सब्जियां थाली में सजाकर गाय, कौवा, कुत्ता और चिटियों को देना अति आवश्यक है।