पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण जरूरी- Pitra rin se mukti ke liye shradh aur tarpan jaroori

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पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण जरूरी

जोगे और भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी और भोगे निर्धन था। दोनों में बहुत प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी। पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा। अतः वह बोली आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी। फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया। दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था। इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर ‘अगियारी’ दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे। थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।

अपने पितरों के लिए जो भी कार्य करें उसे श्रद्धापूर्वक करें। प्रत्येक व्यक्ति को इस पक्ष में श्राद्ध का कार्य अपनी सामर्थ्य अनुसार करना चहिए sakshambano image, sakshambano ka udeshya in hindi, sakshambano ke barein mein in hindi, sakshambano ki pahchan in hindi, apne aap sakshambano in hindi, sakshambano blogger in hindi,  sakshambano  png, sakshambano pdf in hindi, sakshambano photo, Ayurveda Lifestyle keep away from diseases in hindi, sakshambano in hindi, sakshambano hum sab in hindi, sakshambano website, adopt ayurveda lifestyle in hindi, to get rid of all problems in hindi, Vitamins are essential for healthy health in hindi in hindi,shradh ka mahatva hindi, shradh kya hota hai, shradh ki pooja vidhi hindi, shradh ka mahatva, shradh  se pitra dosh door hota hai hindi, shradh se pitru ki kirpa prapt hoti hai hindi, pitra dosh kaise dur kare hindi, pitra dosh upay hindi, , shradh ka gyan hindi, shradh karna chahiye hindi, pitru shradh joor karein hindi,  pitru ko khush karein hindi, pitru kirpa shradh se hindi,pitru ko khush karein hindi, pitru kirpa shradh se hindi, Lok-Parlok Mein Sharad ka Punya milta hai hindi, Sharad ka Punya milta hai hindi, Sharad kya hai hindi, Sharad ka mahatva hindi, Sharad kise kahte hai hindi, Sharad kaise karte hai hindi, Sharad se kya milta hai hindi, Sharad se pitru shanti hindi, Sharad pitr hindi, pitru Sharad hona chahiye hindi, pitru paksha in indi, pitru paksha shradh ke barein mein in hindi, pitru paksha shradh ka mahatva in hindi, pitru paksha shradh vidhi in hindi, pitru paksha shradh rituals in hindi, all about pitru paksha in hindi,pitru paksha shraddh vidhi, rituals and significance in hindi,

सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने मां से कहा-भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले बांटकर खा लेना। बच्चे वहां पहुंचे तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई। इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए। अपने पितरों के लिए जो भी कार्य करें उसे श्रद्धापूर्वक करें। प्रत्येक व्यक्ति को इस पक्ष में श्राद्ध का कार्य अपनी सामर्थ्य अनुसार श्रद्धापूर्वक करना चाहिये। पितरों के लिए किए जाने वाले सभी कार्य उन्हें श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों में तीन ऋण विशेष बताए गए हैं। देव, ऋषि और पितृ ऋण ये हैं वो तीन ऋण जो बेहद महत्व रखते हैं। श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है की श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं। आपके और पितरों के बीच केवल ब्राह्मण ही आपका सेतु है शास्त्रों में वर्णन है की ब्राह्मणों के मुख से भगवान भोजन करते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों का विधि-विधान से किया पूजन, तर्पण तथा भोजन आपके पितरों को ही प्राप्त होता है। इसीलिए ब्राह्मण ही हमारे तथा पितरों के बीच सेतु का कार्य करते हैं। 

ब्राह्मण शांति से भोजन करें ब्राह्मणों को भोजन करते समय एकदम शांतचित्त होकर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन करते समय बीच-बीच में न तो बोलें और न ही भोजन के अच्छे या बुरे होने के बारे में कुछ कहें। इसका कारण यह है कि आपके पितर ब्राह्मणों के जरिए ही भोजन का अंश ग्रहण करते हैं और इस दौरान उन्हें बिलकुल शांति चाहिए। पितरों की तिथि को ही करें श्राद्ध शास्त्रों के नियमों के अनुसार श्राद्ध परिजन की मृत्यु तिथि और चतुर्दशी के दिन ही किया जाना चाहिए। दो दिन श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं। श्राद्ध पूजा के दौरान पिंड बनाने में जौ तिल का प्रयोग किया जाता है। जौ, तिल पितरों को पसंद होते हैं। कुश का प्रयोग भी श्राद्ध पूजा में होता है। ये सब चीजें अत्यंत पवित्र मानी गई है और बुरी शक्तियों को दूर रखती है। अक्सर हम देखते हैं कि श्राद्धकर्म नदियों, तालाबों के किनारे किया जाता है। इसका कारण यह होता है कि श्राद्ध ऐसी जगह किया जाना चाहिए जो किसी के आधिपत्य में नहीं आती है। नदियां और तालाब किसी के आधिपत्य में नहीं होते इसलिए उन स्थानों पर श्राद्ध कर्म करके उसी के जल से पितरों का तर्पण किया जाता है। श्राद्ध में खीर सबसे आवश्यक खाद्य पदार्थ है। खीर के अलावा जिस मृत परिजन के निमित्त श्राद्ध किया जा रहा है उसकी पसंदीदा वस्तु भी बनाएं।  ब्राह्मणों के अलावा देवताओं, गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी का भी भोजन में हिस्सा होता है। इन्हें कभी न भूलें। श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र दान दें।  

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