महाबली घटोत्कच का अपनों के लिए प्राण दान - Mahabali Ghatotkach ka apno ke liye praan daan

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महाबली घटोत्कच का अपनों के लिए प्राण दान
(Mahabali Ghatotkach ka apno ke liye pran dan)

कौरवों ने षडयंत्र के तहत पांडवों के सम्पूर्ण विनाश के लिए लाक्षागृह भवन का निर्माण किया और षडयंत्र के तहत उसमें आग लगा दी गई। जब सम्पूर्ण लाक्षागृह में आग फैल गई  और पांडव  अपनी रक्षा के लिए चिंतित हो रहे थे तब इतने में सहदेव से पूछा गया। तुम तो भूत और भविष्य के बारे में जानते हो कैसे निकले यहाँ से? तब सहदेव ने बताया कि चाचा बिदुर ने यहाँ से निकले के लिए गुप्त सुरंग से रास्ता बनाया है। पांडव लाक्षागृह से सुरक्षित बाहर निकल गये। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुँचा तो पाण्डवों को मरा समझ कर वहाँ के लोग अत्यन्त दुःखी हुये। लाक्षागृह से निकल कर पाण्डव अपनी माता के साथ कई कोस वन में भटकते रहे। माता कुन्ती प्यास से परेशान हो रही थी इसलिए भीम जलाशय की खोज में चले गये। जब भीम पानी लेकर आये और उन्होंने पाया सभी गहरी नींद में सोये हुये है। भीम ने उन्हें उठाना उचित नहीं समझा और वहां पर पहरा देने लगे। उस समय उस भंयकर जंगल में हिडिंब नाम का एक असुर निवास करता था। मानवों के संकेत मिलने पर उसने पाण्डवों को पकड़ने के लिये अपनी बहन हिडिंबा को भेजा। वहां पहुंच कर हिडिंबा ने भीम को पहरा देते हुये देखकर उन पर मोहित हो गई। हिडिंबा ने अपनी माया शक्ति से एक सुन्दरी का रूप धारण किया और भीम के पास पहुंची।

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 महान मायावी, प्राक्रमी वीर घटोत्कच की वीरता 

भीम ने पूछा हे सुन्दरी तुम कौन हो? इतनी रात्रि में यहां क्या कर रही हो। भीम के प्रश्न के उत्तर में हिडिंबा ने कहा मैं एक राक्षसी कुल की हूं और अपने अत्याचारी भाई के कहने पर यहां आयी हूं। मेरा भाई हिडिंब एक अत्याचारी राक्षस है उसने तुम सब को मारने के लिए मुझे भेजा है। परन्तु मैने आपको अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है कृपया मेरी प्रार्थना स्वीकार कीजिये। हिडिंबा के लौटने में देरी होने से हिडिंब तुरन्त वहां पहुंच गया। भीम और हिडिंबा के बातें सुनकर वहां अत्यधिक क्रोधित हुआ उसने हिडिंबा पर प्रहार करने का प्रयास किया तो भीम ने कहा हे मूर्ख मेरे साथ युद्ध करो और दोनों में भंयकर मल्ल युद्ध हुआ। इतने में सारे पाण्डव उठ गये और उन्हों देखा एक सुन्दर स्त्री खड़ी है और भीम राक्षस से मल्ल युद्ध कर रहे है। अर्जुन ने अपना धनुष उठा लिया यह देखकर भीम बोला अनुज यह मेरे हाथों मरेगा तुम निश्चिंत रहो। अन्त में हिडिंब नाम राक्षस का वध हुआ और वहां के लोगों को नर संहार से मुक्ति मिली। हिडिंबा ने माता कुंती के चरण स्पर्श कर प्रार्थना की हे माता मैने भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है कृप्या मुझे स्वीकार कीजिये। युधिष्ठर ने हिडिंबा को अपने अनुज भीम के लिए स्वीकार कर लिया और साथ में कहा  भीम रात में हमारे साथ तथा दिन में तुम्हारे साथ रहेगा, यह सब हिडिंबा ने स्वीकार कर लिया। एक साल बाद हिडिंबा ने सुन्दर मायावी पुत्र को जन्म दिया जिसके सिर पर बाल न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा। यहां मायावी बालक शीघ्र ही बडा़ हो गया और माता हिडिंबा इस बालक को पाण्डवों के पास ले गई और कहा यह बालक आपके कुल का है इसे स्वीकार कीजिये। घटोत्कच ने पाण्डवों को वचन दिया जब भी मेरी जरूरत होगी मैं उपस्थित हो जाऊगा और उत्तराखण्ड की तरफ चला गया।

घटोत्कच ने की थी वनवास के दौरान पाण्डवों की सहायता: पाण्डव अपने वनवास के समय जब गंदमादन पर्वत की तरफ जा रहे थे उस वारिश और तेज हवाओं के कारण द्रौपदी चलने में असमर्थ थी इसलिए भीम ने घटोत्कच को सुमिरन किया। उसी समय घटोत्कच उपस्थित हुआ घटोत्कच ने कहा मेरे साथ और भी साथी है आप सब उनकी कंधों में बैठ जाइये। घटोत्कच ने द्रौपदी को अपने कंधों में बैठाकर गंदमादन पर्वत तक पहुँचाया।

कौरवों सेना में खलबली: दुर्योधन स्वयं घटोत्कच का समाना करने के लिए युद्ध स्थल में आये दोनों में भयंकर हुआ। जब पितामाह को इस युद्ध का पता चला उन्होने द्रोणाचर्या से कहा कि घटोत्कच को युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सकता। इसलिए दुर्योधन की सहायता के लिए जाइए कौरवों की तरफ से कई महारथियों ने घटोत्कच पर एक साथ प्रहार किया परन्तु सारे पराजित हो गये।

अर्जुन पुत्र इरावन: अर्जुन पुत्र इरावन एक कुशल धनुर्धर और मायावी अस्त्रों का ज्ञाता था। कुरुक्षेत्र के युद्ध में उसने शकुनी के 6 भाईयों का वध किया और कई योद्धाओं का पराजित किया। ऐसी स्थिति देखकर दुर्योधन को समस्त कौरवों की मृत्यु दिखाई देने लगी तभी उसने अपने मायावी मित्र अलम्बुष को युद्ध के लिए भेजा यह मायावी राक्षस घटोत्कच के समान बलशाली था। आठवें के युद्ध में अलम्बुष  ने इरावन का वध कर दिया, अलम्बुष और अलायुध दोनों चैदहवें दिन के युद्ध में भीम पुत्र घटोचकछ के द्वारा मारे गये।

घटोत्कच ने  कर्ण को  विवश किया: भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर घटोत्कच ने कर्ण से युद्ध किया दोनों के बीच भंयकर युद्ध होने लगा कर्ण का कोई भी प्रहार सफल नही हुआ इसलिए कर्ण ने दिव्य शस्त्रों का प्रयोग किया। यह देखकर घटोत्कच ने अपनी मायावी सेना प्रकट कर दी। कर्ण ने इस सेना का अंत किया और घटोत्कच ने भी कौरवों की सेना का भी संहार करने लगा। यह देखकर दुर्योधन ने कर्ण से कहा  इन्द्र द्वारा दी गई शक्ति का प्रहार घटोत्कच पर करे। तभी कर्ण कहता इससे तो मै अर्जुन का वध करूंगा तब दुर्योधन कहता है यह मायावी आज ही समस्त कौरवों का वध कर देगा। कोई नही बचेगा अर्जुन वध के समय तक  कोई नही देखेगा तब क्या करोगे दुर्योधन ने कर्ण को मजबूर कर दिया इन्द्र द्वारा शक्ति का प्रयोग करने पर और अतः में कर्ण ने घटोत्कच का वध कर दिया।

भगवान श्रीकृष्ण चिन्ता मुक्त हुए: घटोत्कच की मृत्यु से पाण्डवों की सेना में शोक की लहर छा गयी परन्तु श्रीकृष्ण प्रसन्न थे। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा इस सत्य के बारे में तो भगवान श्रीकृष्ण बोले जब तक कर्ण के पास यह शक्ति थी उसका वध कोई नही कर सकता था। कर्ण ने यह शक्ति अर्जुन वध के लिए रखी थी अब यह शक्ति उसके पास नही है तुम्हे कोई खतरा नही है। आगे भगवान श्रीकृष्ण जी कहते अगर घटोत्कच का वध कर्ण नही करता तो एक दिन मुझे उसका वध करना पड़ता। क्योंकि वह ब्राहमणों और यज्ञों से शत्रुता रखने वाला वीर राक्षस का अन्त तय था परन्तु तुम्हारे प्रिय होने के कारण मैंने उसका वध नही किया था।