बर्बरीक घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र थे। घोर तपस्या करके मां दुर्गा को अति प्रसन्न किया जिसके कारण मां दुर्गा ने उन्हें तीन अभेद्य बाण वरदान के रूप में दिये इसके साथ अग्निदेव ने भी प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया। यह धनुष तीनों लोको में विजय के लिए पूर्ण रूप से सक्षम था। जब बर्बरीक को महाभारत युद्ध आरम्भ होने की जानकारी प्राप्त हुई तो उसके अन्दर युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। बर्बरीक माता से आर्शीवाद लेने पहुंचा तो माता ने उन्हें हारे हुए पक्ष की तर्फ से लड़ने का वचन दिया बर्बरीक ने भी वचन दिया मैं ऐसा ही करूंगा। बर्बरीक अपने नीले घोड़े तथा धनुष-बाण लेकर रणभूमि की तरफ चल दिया। सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्रीकृष्ण जी जानते थे बर्बरीक ऐसा योद्धा है जिसका सामना कोई नही कर सकता है वह चाहे तो पल भर में युद्ध समाप्त कर सकता है। भगवान श्रीकृष्ण इस सत्यता को जानते थे इसलिए उन्हें पता था कि कौरवों पर पाण्डवों की जीत सुनयोजित है पर बर्बरीक के रहते नही। श्रीकृष्ण जी जानते थे बर्बरीक ने अपनी माता से वचन लिया है वह असहाय पक्ष से युद्ध करेगा। इस सत्यता के लिए उन्होंने ब्रहामण का रूप धारण करके बर्बरीक के रास्ते में आये और उनसे प्रश्न किया धनुष बाण लेकर कहा जा रहे हो ? तब बर्बरीक ने विन्रमता से उत्तर दिया मैं महाभारत युद्ध में सम्मिलित होेने जा रहा हूं। यह सुनकर ब्रहामण जोर-जोर से हंसने लगा तीन बाण से युद्ध लड़ने मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है। बर्बरी ने कहा यह बाण कोई साधारण बाण नही है यह दिव्य शक्ति है यह तीनों लोको में प्रलय लगा देगा। यह पल भर में पृथ्वी पर समस्त प्राणियों को नष्ट करके वापस मेरे पास आ जायेगा।
यह सब सुनकर ब्राहमण बोला मैं कैसे विश्वास करूं ब्राहमण ने उन्हें चुनौति दी कि इस पीपल के पेड़ के सभी पत्रों को छेदकर दिखलाओ। इतने में ब्राहमण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया बर्बरीक ने अपने दिव्य शक्ति का प्रयोग किया सारे पत्ते को छिद्र करने के बाद बाण ब्राहमण के पैर के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। यह सब देखकर वीर बर्बरीक बोला कृप्या अपने पैर को हटा लीजिए नही तो पत्ते के साथ-साथ पैर पर भी छेद हो जायेगा। ब्राहमण ने बर्बरीक से अपनी दान की अभिलाषा प्रकट की तब बर्बरीक ने उन्हेें वचन दिया मैं तुम्हारी अभिलाषा अवश्य पूरी करूंगा। ब्राहमण ने दान में बर्बरीका का सिर मांगा यह सुनकर बर्बरीक कुछ क्षण के लिए आश्चर्य चकित रह गया परन्तु वह अपने वचन पर दृढ़ था इसलिए ब्राहमण से कहा हे ब्राहमण तुम साधारण ब्राहमण नही हो इसलिए कृप्या अपने वास्तविक रूप में आ जाइये। तब भगवान श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में आये फिर बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके विराट रूप देखने की अभिलाषा व्यक्त की भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें विराट रूप में दर्शन दिये। भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को ज्ञान दिया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए वीर क्षत्रिय के शीश की आवश्यकता होती है। इस कारण उन्होंने वीर बर्बरीक को नमन करते हुये उन्हें वीर के उपाधि के साथ-साथ उनका नाम अमृत के समान सदा-सदा के लिए याद रहेगा का वरदान दिया। बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा हे प्रभु आप तो जानते है कि मैं युद्ध में समलित होना चाहता था पर यह न हो सका इसलिए प्रभु मैं इस महायुद्ध को अपने आंखों से देखना चाहता हूं। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया महाभारत युद्ध की वास्तविक सच्चाई के तुम्हें सम्पूर्ण दर्शन होंगे तुम्हें हर दिव्य रूपों के दर्शन होंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने शीश को अमृत से अमर कर दिया। शीश को रणभूमि के समीप उच्ची पहाड़ी पर सुशोभित किया गया।
महाभारत युद्ध की हर सच्चाई देखने वाला-वरदानी वीर बर्बरीक
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पाण्डवों में तरह-तरह की बातें हो रही थी। हर एक व्यक्ति अपने युद्ध कौशल की चर्चा कर रहा था। तब भगवान श्रीकृष्ण बर्बरीक के समक्ष जाकर प्रणाम करते हुये कहा हे वीर बर्बरीक आप इस युद्ध की सच्चाई को भली भांति जानते हो कृप्या इन सबको भी सच्चाई से अवगत कीजिए। तब बर्बरीक ने बताया कि मुझे तो चारों तरफ सुदर्शन चक्र ही दिखाई दे रहा था जो कौरवों सेना का संहार कर रहा था। यह महाकाल का रूप धारण किये हुये हर पाण्डवों महारथी के बाण से संहार कर रहा था। बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुये कहा हे जगद् रक्षक मुझे आपकी इस लीला को देखने का सौभाग्य पिछले जन्मों के पुण्य के कारण ही प्राप्त हुआ।