अगर इस विषय पर पर गंभीरता से विचार न किया गया तो यह हमारी दैविक संस्कृति और संस्कार किताबों तक ही रह जायेगे। बच्चों में धार्मिक शिक्षा प्रारम्भ से होना अति आवश्यक है, इसका महत्व भी शिक्षा के बराबर होना चाहिए। बच्चों की धार्मिक शिक्षा के गुरु माता-पिता स्वयं बन जाए तो कुछ परिवर्तन अवश्य होगा। हर माता-पिता का कर्तव्य अपने बच्चों को परमपिता परमेश्वर द्वारा निर्मित कर्तव्यों पर चलने के लिए प्रेरित करे।
बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षा भी जरूरी
ऐसे वातावरण की उन्नति हुई जिसने अपनों से ही कुछ कहने में संकोच की भावना जागृत कर दी। कहने से पहले ही परिणाम के बारे में सोचने लगते है इस संकोच के कारण कुछ कह न पाये। अगर किसी से कुछ कहे, उनके पास सुनने के लिए समय नही, अगर किसी ने सुन भी लिया तो उसको पूरा करने के लिए समय नही, समय होने के वावजूद भी समय नही। ऐसे वातावरण में सुख की कामना कैसे? अपनी कर्तव्य निष्ठा के साथ-साथ बच्चों को कर्तव्यवान की शिक्षा भी जरूरी है। संस्कारों के प्रति हमारे कदम पीछे रह गये, संस्कारों को पुनः उज्जवलित करना है, इस वातावरण को दूर करना है। एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता है जब अपनों से निःकोच अपनी बात कह सके।
घर कोे सुखधाम बनाने का संकल्प (Pledge to make home of happiness & prosperity): इस पावन भूमि पर सत्य और धर्म की रक्षा के लिए भगवान स्वयं विभिन्न युगों में अवतरित हुये। इन सभी सच्चाई को ऋषि-मुनियों अपने-अपने लेखों के द्वारा अमर किया है। पवित्र धार्मिक पुस्तकों में हर सच्चाई अंकित है। इन्हीं सच्चाइयों से अपना मार्ग सुनयोजित करना है, और दूसरों को भी इस मार्ग पर चलते रहने के लिए प्रेरित करना है, जिससे घर सुखधाम बन सके।