हर संकट दूर करता है संकट चौथ व्रत
- माघ माह कृष्ण पक्ष में चतुर्थी के दिन संकट चौथ व्रत किया जाता है इसे तिल चौथ, माही चौथ जैसे विभिन्न प्रकार के नामों से जाना जााता है। गणेश जी ने इसी दिन देवताओं की मदद की और उनके ऊपर आये संकट को दूर किया। भगवान शिव गणेश जी के इस पराक्रम से अति प्रसन्न हुए और गणेश जी को आर्शीवाद दिया। इस दिन को संकट मोचन के रूप में जाना जायेगा। जो भी मनुष्य इस दिन का व्रत करेगा उसके सारे कष्ट इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाएंगे। संकट चौथ व्रत से बुद्धि-सिद्धि की प्राप्ति के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का नाश होगा। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती है और मिट्टी को गणेश जी आकृति देकर उनकी पूजा करती है और कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्घ देकर व्रत पूर्ण किया जाता है। पुराणों में भी संकट चतुर्थी का विशेष महत्व है गणेश जी को तिल-गुड़ के लडडू का भोग अति शुभ माना जाता है। इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र पहने और गणेश जी की पूजा करते समय मुहं पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
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श्री गणेश कृपा की कथा
(The story of Shri Ganesh graciousness)
- एक साहूकार और उसकी पत्नी धर्म पुण्य को नहीं मानते थे इसलिए उनके पास कोई संतान नही थी। एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गई उस दिन संकट चौथ था पड़ोसन संकट चौथ की पूजा करके कहानी सुन रही थी। साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा तुम क्या कर रही हो? तब पड़ोसन बोली कि आज संकट चौथ का व्रत है इसलिए कहानी सुन रही हूं। तब साहूकारनी बोली कि चौथ का व्रत करने से क्या होता है? पड़ोसन ने कहा कि यह व्रत करने से अन्न, धन, सुहाग, पुत्र सबकी प्राप्ति होती है तब साहूकारनी ने कहा यदि मेरा गर्भ रह जाये तो मैं सवा सेर तिलकूट करूंगी और चौथ का व्रत भी करूंगी। श्री गणेश भगवान की कृपा से साहूकारनी का गर्भ रह गया। साहूकारनी बोली कि मेरा लड़का हो जाये तो मैं ढ़ाई सेर तिलकूट करूंगी। कुछ दिन बाद उसका लड़का हो गया। साहूकारनी बोली भगवान मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा तो मैं सवा पांच सेर का तिलकूट करूंगी। कुछ वर्षों के बाद उसके बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने चला गया लेकिन साहूकारनी ने तिलकूट नहीं किया इस कारण से चौथ देव क्रोधित हो गये और उन्होंने फेरों से उसके बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। सभी वर को खोजने लगे लेकिन वह कहीं नही मिला निराश होकर सारे लोग अपने-अपने घर लौट गये। इघर जिस लड़की से उस साहूकारनी के बेट का विवाह होने वाला था वह अपनी सहेलियों के साथ गनगौर पूजने के लिए जंगल में दूब लेने गयी हुई थी तभी रास्ते में एक पीपल के पेड़ से आवाज आई आ मेरी अर्द्धब्याही यह बात सुनकर जब लड़की अपने घर आई उसके बाद से वह घीरे-धीरे सूखने लगी। एक दिन लड़की की मां ने कहा-मैं तुझे अच्छा खिलाती हूं, अच्छा पहनाती हूं, फिर भी तू सूखती जा रही हो ऐसा क्यों? तब लड़की अपनी मां से बोली कि वह जब भी दूब लेने जंगल जाती है, तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है कि आ मेरी अर्द्धब्याही। उसने मेंहंदी लगा रखी है, सेहरा भी बांध रखा है। तब उसकी मां ने पीपल के पेड़ के पास जाकर देखा कि यह तो उसका जमाई है तब उस लड़की की मां ने अपने जमाई से कहा- यहां क्यों बैठे हो? मेरी बेटी को अर्द्धब्याही कर दिया और अब क्या लेगा? साहूकारनी का बेटा बोला-मेरी मां ने चौथ का तिलकूट बोला था लेकिन नही किया इसलिए चौथ माता ने नाराज होकर मुझे यहां बैठा दिया। यह सुनकर उस लड़की की मां साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा कि तुमने संकट चौथ का कुछ बोला है क्या? तब साहूकारनी बोली-तिलकुट बोला था। साहूकारनी बोली यदि मेरा बेटा आ जाये तो ढ़ाई मन का तिलकूट करूंगी। इससे श्री गणेश जी प्रसन्न हो गये और उसके बेटे को फेरों में लाकर बैठा दिया। बेटे का विवाह धूमधाम से हो गया जब साहूकारनी के बेटे-बहू घर में आ गये तब साहूकारनी ने ढ़ाई मन का तिलकूट किया और बोली कि हे चौथ देवता आपके आर्शीवाद से मेरे बहू-बेटा घर आये हैं जिससे में हमेशा तिलकूट करके व्रत करूंगी इसके बाद से सारे नगरवासियों ने तिलकूट के साथ संकट चौथ का व्रत करना आरम्भ किया। हे संकट चौथ जी जिस तरह साहूकारनी के बेटे-बहू से मिलवाया, वैसे ही इस कथा को कहने-सुनने वालों का संकट दूर करना।
बोलो श्री गणेश जी की जय।