माँ छिन्नमस्तिका द्वारा सिद्धि- Accomplishment by Maa Chhinnamasta

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  Maa Chhinnamasta Dwara Sidhi 

माँ छिन्नमस्तिका द्वारा सिद्धि 

इस महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती त्रिपुरसुंदरी का ही रौद्र रूप है। सुप्रसिद्ध पौराणिक हयग्रीवोपाख्यान का जिसमें गणपति वाहन मूषक की कृपा से धनुष प्रत्यंचा भंग हो जाने के कारण सोते हुए विष्णु के सिर के कट जाने का निरूपण इसी छिन्नमस्ता से संबद्ध है। एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए है। अपने कटे हुए स्कन्ध से रक्त की जो धाराएं निकलती है उनमें से एक को स्वयं पीती है और अन्य दो धाराओं से अपनी वर्णिनी और शाकिनी नाम की दो सहेलियों को तृप्त करती है। इडा, पिंगला और सुषमा इन तीन नाडियों का संधान कर योग मार्ग में सिद्धि प्राप्त की जाती है। देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है। इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती है। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती है। इनकी नाभि में योनि चक्र है। छिन्नमस्तिका एक महाविद्या है इसकी  साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए इस मंत्र के चार लाख जप करने पर देवी से सिद्धी प्राप्त होती है। छिन्नमस्तिका देवी को माँ चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है। देवी के इस रूप के विषय में कई पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। 

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मार्कंडेय पुराण व शिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विशेष वर्णन किया गया है इनके अनुसार जब देवी ने चंडी का रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया। दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीं हो पाई। इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई जिस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से भी पुकारा जाने लगा। माँ छिन्नमस्तिका का जहाँ निवास हो वहाँ पर चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी होता है। पौरााणिक कथाा के अनुसार माँ भगवती अपनी दो सहचरियों के संग मन्दाकिनी नदी में स्नान कर रही थी। स्नान करने पर दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी भूख कि पीडा से उनका रंग काला हो गया। तब सहचरियों ने भोजन के लिये भवानी से कुछ मांगा. भवानी के कुछ देर प्रतिक्षा करने के लिये उनसे कहा, किन्तु वह बार-बार भोजन के लिए हठ करने लगी। तत्पश्चात सहचरियों ने नम्रतापूर्वक अनुरोध किया माँ तो भूखे शिशु को अविलम्ब भोजन प्रदान करती है ऐसा वचन सुनते ही भवानी ने अपने खडग से अपना ही सिर काट दिया। कटा हुआ सिर उनके बायें हाथ में आ गिरा और तीन रक्तधाराएं बह निकली। दो धाराओं को उन्होंने सहचरियों की और प्रवाहित कर दिया जिन्हें पान कर दोनों तृप्प्त हो गई तीसरी धारा का देवी स्वयं रूधिर-पान करने लगी। 

दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya