माँ शक्ति का सातवाँ स्वरूप माँ कालरात्रि है काला वर्ण होने के कारण इन्हें कालरात्रि कहा गया। दानवों के राजा रक्तबीज का संहार करने के लिए माँ दुर्गा ने अपनी शक्ति से इन्हें उत्पन्न किया था। असुरों का वध करने के लिए माँ दुर्गा बनी कालरात्रि। माँ कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला और एक हाथ मैं कटार, दूसरे हाथ में लोहे का कांटा और दो हाथों वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। माँ कालरात्रि के तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है और माँ कालरात्रि का वाहन गधा है।
कालरात्रि पूजा से अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते
दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए और उनसे इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की। महादेव ने देवी पार्वती से अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही माँ दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख माँ दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया इसके बाद जब माँ दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
माँ कालरात्रि पूजा से विघ्न-बाधायें दूर होती है (Maa Kalratri Pooja Se Bighan-Badhaye Door Hoti Hai)
i) सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगते है।
ii) देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माँ काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई रूपों में से एक माना जाता है।
iii) माँ कालरात्रि से सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और जो उनके नाम से पलायन करते है। सभी प्रकार की ग्रह-बाधाए दूर होती है। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, iv) शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।
v) माँ कालरात्रि की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और दुश्मनों का नाश होता है। काल का नाश करने वाली है इसलिए कालरात्रि कहलाती है।
vi) माँ कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करती है इस कारण इन्हें शुभकरी भी कहा जाता है।
vii) माँ कालरात्रि का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करता है।
viii) माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है।
ix) सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
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