सिद्धि और मोक्ष देने वाले स्वरूप को सिद्धिदात्री कहते हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नौवें दिन की जाती है। देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले भक्त सिद्धिदात्री की पूजा करते है इससे उन्हें यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती है जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते है। अपने सांसारिक स्वरूप में देवी सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है और हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए है सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों की प्राप्ति की थी। माँ की कृृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ इसलिए संसार में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्ववैवर्त पुराण में अनेक सिद्धियों का वर्णन है जैसे सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है।
माँ सिद्धिदात्री इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी है। इनकी पूजा से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री की भक्ति से विभिन्न प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्ति के बाद मनुष्य अपने व्यक्तित्व में वृद्धि कर पाता है। नवरात्री का प्रत्येक दिन का अपना महत्व है लेकिन नौवें दिन अधिक महत्वपूर्ण है। दुर्गा पूजा का अंतिम दिन है इसलिए आज के दिन की पूजा माँ दुर्गा को पूर्ण रुप से प्रसन्न करने के लिए होती है। इनकी पूजा करने से साधक का मन शांत और सौम्य रहता है साथ ही उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
सिद्धिदात्री मंत्र
ध्यान-साधना
पूजा-पाठ
कवच
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप-Maa Durga Ke Nau Roop