एक दिन गुरु वृहस्पति जी ने परमपिता ब्रहमा जी से नवरात्रों के बारे में जानने की जिज्ञासा प्रकट की उन्होंने चैत्र और आश्विन मास में नवरात्रों व्रतों का महत्व पूछा। गुरु बृहस्पति की इस जिज्ञासा से ब्रहमा जी अत्यन्त प्रसन्न हुये और कहा-यह प्रश्न सब प्राणियों की भलाई के लिए अत्यन्त जरूरी है।
ब्रहमा जी बोले जिसने सबसे पहले इस व्रत को प्रारम्भ किया मै उसकी कथा सुनाता हूं तुम एकाग्र होकर सुनो। प्राचीन काल में मनोहर नगर में एक पीठत नामक अनाथ ब्राहमण रहता था। ब्राहमण मां दुर्गा का परम भक्त था। ब्राहमण केे पूरे सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई। यह सुन्दर कन्या सुमति समय से पहले बड़ी होने लगी। पिता प्रतिदिन दुर्गा पूजा के बाद होम किया करते उस समय सुमति भी वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति सहेली के साथ खेलती रह गयी और मां भगवती पूजा में उपस्थित न हो सकी। पिता को इस अनुउपस्थिति से अत्यधिक क्रोध आ गया और उन्होने अपनी पुत्री से कहा मैं तेरा विवाह कुष्ट रोगी या दरिद्र व्यक्ति के साथ करूंगा। पिता के यह शब्द सुनकर सुमति को अत्यन्त दुख हुआ। इसके वाबजूद उसने पिता से कहा मै आपकी पुत्री हूं और यह आपका अधिकार है जैसी आपकी इच्छा हो वैसे ही करना।
सुमति ने पिता से कहा जो मेरे भाग्य में होगा वही मिलेगा। सुमति कर्म पर विश्वास करती है जो कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल मिलता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है और फल देना ईश्वर के अधीन है। इस प्रकार के वचन सुनकर पिता ने सुमति का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया। पिता ने पुत्री से कहा हे पुत्री अब तुम अपने कर्म का फल भोगो। हम भी देखे भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के इस तरह के वचन सुनकर सुमति अत्यन्त दुखी हुई। इस प्रकार अपने दुख पर विचार करती हुई पति के साथ वन में चली गई और डरावने वन में उन्होंने रात बड़े कष्ठ के साथ व्यतीत की।
मां दुर्गा शीघ्र अपने भक्तों का कष्ट दूर करती है (Maa Durga Quickly Removes All The Sorrows Of Her Devotees)
सुमति की ऐसी दशा देखकर देवी भगवती उसके पूर्व जन्म के पुण्य से प्रकट हुई और सुमति से कहा हे दीन ब्राहमणी! मैं तेरे से प्रसन्न हूं जो चाहो वरदान मांग सकती हो। भगवती का यह वचन सुनकर ब्राहमणी ने कहा आप कौन है मुझे बताइये। मां भगवती इस तरह का अनुरोध सुनकर प्रसन्न हुई और अपना परिचय दिया। मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रहमविद्या व सरस्वती हूं। दुखी प्राणियों का दुख दूर करके उन्हें सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राहमणी मैं तुम पर तुम्हारे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्व जन्म के बारे में बताती हूं सुनो! तुम पूर्व जन्म में निषाद की पतिव्रता पत्नी थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की जिसके कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और जेलखाने में कैद कर दिया। उन्होंने तुम्हें कुछ खाने को नही दिया। नवरात्र के दिनों में तुमने नौ दिनों तक न कुछ खाया और पिया इस प्रकार तुम्हारा नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राहमणी! तुम्हारे उन दिनों के व्रत से मैं प्रसन्न होकर तुम्हें मनोवांछित वर देती हूं- तुम्हारी जो इच्छा हो मांग सकती हो।
सुमति मां दुर्गा के यह वचन सुनकर बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न है तो सबसे पहले मैं आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर कीजिये। मां भगवती ने कहा-उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उसका एक दिन का पुण्य तुम्हारे पति के कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो। सुमति के उस पुण्य के प्रभाव से पति का कोढ़ दूर हो गया। सुमति ने पति की मनोहर देह को देखकर देवी की स्तुति करने लगी- हे मां दुर्गा आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दुखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्यों को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली, दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता के तिरस्कार से वन में भटकती रही हूं, आपने मेरी विपत्ति को दूर किया है, हे देवी आपको में प्रणाम करती हूं मेरी रक्षा करों।
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप-Maa Durga Ke Nau Roop