माँ कूष्मांडा की भक्ति से हर रोग दूर होता है
(Every Disease Goes Away With Maa Kushmanda Devotion)
आदिशक्ति माँ दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप श्री कूष्मांडा है नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु और यश में वृद्धि होती है। देवी कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। पूरा संसार कूष्मांडा ही है माँं कूष्मांडा समस्त ब्रह्मांड को पैदा करती है। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। कूष्मांडा देवी की कल्पना एक गर्भवती स्त्री के रूप में की गई है अर्थात् जो गर्भस्थ होने के कारण भूमि से अलग नही है। इन देवी को ही तृष्णा और तृप्ति का कारण माना गया है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है कूम्हडे की बलि इन्हे अति प्रिय है इसलिए इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है।
जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है
आयु-यश में वृद्धि होती है
माँ कूष्मांडा की आठ भुजाएं है जिनमें कमंडल, धनुष-बाण, कमल पुष्प, शंख, चक्र, गदा और सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है। माँ के पास इन सभी चीजों के अलावा हाथ में अमृत कलश भी है। इनका वाहन सिंह है और इनकी भक्ति से आयु, यश और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्मांडा सिंह पर आरूढ़, शांत मुद्रा की भक्तवत्सल देवी है। इनके पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती है। माँ कूष्मांडा की भक्ति से जटिल से जटिल रोगों से मुक्ति मिलती है इसके साथ सभी कष्ट दूर हो जाते है इनकी भक्ति से आरोग्यता के साथ-साथ आयु और यश की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन अत्यंत पवित्र और शांत मन से मां कूष्मांडा की उपासना संपूर्ण विधि-विधान से करनी चाहिए।
सूर्य जैसा तेजस्व की प्राप्ति होती है
माँ कूष्मांडा जिनके उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री है। जब सृष्टि की रचना नही हुई थी उस समय अंधकार का साम्राज्य था। माँ कुष्मांडा जिनके मुखमंडल सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई उनके मुख पर बिखरी मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात् फूल के समान माँ की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ। देवी कूष्मांडा सूर्य मण्डल में निवास करती है सूर्य मण्डल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती है।
पूजा में माँ कूष्मांडा को हरी इलाइची, सौंफ, लाल गुलाब और कुम्हड़ा अर्पित करें।
माँ कूष्मांडा को लाल गुलाब अति प्रसन्न है।
या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्।।
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्।।
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्।।
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्।।
पूजा-पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्।।
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्।।
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्।।
कवच
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्।।
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा, पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु।।
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप-Maa Durga Ke Nau Roop