स्कंदमाता सुख-शांति की देवी-Maa Skandmata

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स्कंदमाता सुख-शांति की देवी
(Goddess of peace and happiness)

श्री दुर्गा का पाँंचवाँ स्वरूप श्री स्कंदमाता है और इन्हें कुमार कार्तिकेय की माता के नाम से भी जाना जाता है। देवासुर संग्राम में कुमार कार्तिकेय देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार शौर शक्तिधर बताकर इनका वर्णन किया गया है। इनका वाहन मयूर है अतः इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं भगवान स्कन्द की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे है। मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है उसमें कमल पकड़ा हुआ है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा की जाती है। इनकी पूजा से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिंह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथों वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। 

माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है इनकी भक्ति से अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है। कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है। इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले माँ की विधि सहित पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है। फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए।

श्री दुर्गा का पाँंचवाँ स्वरूप श्री स्कंदमाता है और इन्हें कुमार कार्तिकेय की माता के नाम से भी जाना जाता है। देवासुर संग्राम में कुमार कार्तिकेय देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार शौर शक्तिधर बताकर इनका वर्णन किया गया है। इनका वाहन मयूर है अतः इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं भगवान स्कन्द की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे है। मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है उसमें कमल पकड़ा हुआ है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा की जाती है। इनकी पूजा से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिंह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथों वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। (Goddess of peace and happiness) in hindi, स्कंदमाता सुख-शांति की देवी हिन्दी में, माँ दुर्गा की पाँचवीं शक्ति की कथा हिन्दी में, श्री दुर्गा का पाँचवाँ स्वरूप श्री स्कंदमाता है हिन्दी में, कुमार कार्तिकेय की माता के नाम से भी जाना जाता है हिन्दी में,  देवासुर संग्राम में कुमार कार्तिकेय देवताओं के सेनापति बने थे हिन्दी में,  पुराणों में इन्हें कुमार शौर शक्तिधर बताकर इनका वर्णन किया गया है हिन्दी में,  इनका वाहन मयूर है अतः इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है हिन्दी में,  भगवान स्कन्द की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है हिन्दी में,  स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे है हिन्दी में,  मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है हिन्दी में, कमल पकड़ा हुआ है हिन्दी में,  नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा की जाती है हिन्दी में, इनकी पूजा से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है हिन्दी में, सिंह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथों वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है हिन्दी में,  माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है हिन्दी में, इनकी भक्ति से अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है हिन्दी में,  कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा 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की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती है हिन्दी में,  महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं हिन्दी में, गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती है हिन्दी में,  माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम के कारण अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है हिन्दी में,  जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है हिन्दी में,  माँ उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह करती है हिन्दी में, पेट से पीड़ित (वात, पित्त, कफ) व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए हिन्दी में, और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए हिन्दी में,  या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता हिन्दी में, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू।। हिन्दी में,  ध्यान-साधना हिन्दी में, वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम् हिन्दी में, सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम् हिन्दी में, धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम् हिन्दी में, अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजम् हिन्दी में, पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम् हिन्दी में, मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम् हिन्दी में, प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम् हिन्दी में, कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम् हिन्दी में, पूजा-पाठ हिन्दी में, नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम् हिन्दी में, समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम् हिन्दी में,शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम् हिन्दी में, ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम् हिन्दी में, महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम् हिन्दी में, सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम् हिन्दी में, अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम् हिन्दी में, मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम् हिन्दी में, नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम् हिन्दी में, सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम् हिन्दी में, सुधार्मिकौपकारिणी  रेन्द्रकौरिघातिनीम् हिन्दी में, शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम् हिन्दी में, तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्। सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम् हिन्दी में, सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम् हिन्दी में, प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम् हिन्दी में, कर्मकारिणी 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  माँ दुर्गा की पाँचवीं शक्ति की कथा 

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते है इस व्रत को फलदायक कहा गया है। जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख-शांति एवं समृद्धि बनी रहती है। कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत कुमार, स्कन्द कुमार के नाम से जाना गया है। माता इस रूप में पूर्णतः ममता का भाव व्यक्त होता है माता का पाँचवाँ रूप शुभ्र अर्थात् श्वेत है। अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संतजनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती है। महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती है। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम के कारण अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है माँ उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह करती है।

पेट से पीड़ित (वात, पित्त, कफ) व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए।
माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ध्यान-साधना

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजम्।।
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्।।
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्।।

पूजा-पाठ

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्।।
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्।।
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्।।
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्।।
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्।।
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्।।
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्।।
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्।।
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्।।
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्।।

कवच

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता।।
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा।।
वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैऋतेअवतु।।
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै।।

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप-Maa Durga Ke Nau Roop