दुःख हरणी सुख करणी- जय माँ तारा

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दुःख हरणी सुख करणी- जय माँ तारा 

माँ तारा का मंदिर हर मनोकामनाओं को पूरा करता है। शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर है यह मंदिर काफी पुराना है। मान्यता है कि 250 साल पहले माँ तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया था। सेन काल का एक शासक माँ तारा की मूर्ति बंगाल से शिमला लाया था। और राजा भूपेंद्र सेन ने माँ तारा का मंदिर बनवाया था। भगवती काली, नील वर्ण में तारा नाम से जानी जाती है भव-सागर से तारने वाली भी है जन्म तथा मृत्यु के बंधन से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली। अपने भक्तों को भय मुक्त के साथ-साथ समस्त सांसारिक चिंताओं से मुक्ति देने वाली शक्ति हैै। माँ तारा की अनेक प्रकार से उपासना की जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान बुद्ध ने भी माँ तारा की उपासना की और भगवान श्रीराम जी के गुरु वशिष्ठ जी ने भी पूर्णता की प्राप्ति के लिए माँ तारा की आराधना की थी। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव और महापण्डित रावण भी उनकी शरण में गए थे। 

माँ तारा का मंदिर हर मनोकामनाओं को पूरा करता है। शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर है यह मंदिर काफी पुराना है। मान्यता है कि 250 साल पहले माँ तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया था। सेन काल का एक शासक माँ तारा की मूर्ति बंगाल से शिमला लाया था। और राजा भूपेंद्र सेन ने माँ तारा का मंदिर बनवाया था। भगवती काली, नील वर्ण में तारा नाम से जानी जाती है भव-सागर से तारने वाली भी है जन्म तथा मृत्यु के बंधन से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली। अपने भक्तों को भय मुक्त के साथ-साथ समस्त सांसारिक चिंताओं से मुक्ति देने वाली शक्ति हैै। माँ तारा की अनेक प्रकार से उपासना की जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान बुद्ध ने भी माँ तारा की उपासना की और भगवान श्रीराम जी के गुरु वशिष्ठ जी ने भी पूर्णता की प्राप्ति के लिए माँ तारा की आराधना की थी। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव और महापण्डित रावण भी उनकी शरण में गए थे। sakshambano image, sakshambano ka udeshya in hindi, sakshambano ke barein mein in hindi, sakshambano ki pahchan in hindi, apne aap sakshambano in hindi, sakshambano blogger in hindi,  sakshambano  png, sakshambano pdf in hindi, sakshambano photo,दुःख हरणी सुख करणी in hindi, जय माँ तारा in hindi, jai maa tara in hindi,  maa tara ki katha in hindi,  maa tara ke barein mein in hindi,  maa tara ki shakti in hindi, माँ तारा का मंदिर हर मनोकामनाओं को पूरा करता है in hindi,  शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर है in hindi,  यह मंदिर काफी पुराना है in hindi,  मान्यता है कि 250 साल पहले माँ तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया था in hindi,  सेन काल का एक शासक माँ तारा की मूर्ति बंगाल से शिमला लाया था in hindi,  और राजा भूपेंद्र सेन ने माँ तारा का मंदिर बनवाया था in hindi,  भगवती काली, नील वर्ण में तारा नाम से जानी जाती है in hindi,  भव-सागर से तारने वाली भी है in hindi,  जन्म तथा मृत्यु के बंधन से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली in hindi,  अपने भक्तों को भय मुक्त के साथ-साथ समस्त सांसारिक चिंताओं से मुक्ति देने वाली शक्ति हैै in hindi,  माँ तारा की अनेक प्रकार से उपासना की जाती है in hindi,  पुराणों के अनुसार भगवान बुद्ध ने भी माँ तारा की उपासना in hindi,  की और भगवान श्रीराम जी के गुरु वशिष्ठ जी ने भी पूर्णता की प्राप्ति के लिए in hindi,  माँ तारा की आराधना की थी in hindi,  यह भी कहा जाता है in hindi,  कि भगवान शिव और महापण्डित रावण भी उनकी शरण में गए थे in hindi,  माँ तारा की उत्पत्ति in hindi,  राजा स्पर्श माँ शक्ति के उपासक थे और सुबह-शाम माँ शक्ति की पूजा-पाठ किया करते थे in hindi,  माँ शक्ति ने भी उन्हें सुख के सभी साधन दिये थे in hindi,  लेकिन एक कमी थी उनके घर में कोई संतान नही थी in hindi,  यह चिन्ता उन्हें बहुत परेशान करती थी in hindi,  वह माँ शक्ति से यही प्रार्थना करते थे in hindi,  उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान देंवे और वह भी संतान का सुख भोग सकें in hindi,  और उनके पीछे भी उनका नाम लेने वाला हो in hindi,  माँ ने उसकी पुकार सुन ली एक दिन माँ ने आकर राजा को स्वप्न दर्शन दिये in hindi,  और कहा तुम्हारी भक्ति से बहुत अति-प्रसन्न हूँ मैं तुम्हें दो पुत्रियाँ प्राप्त होने का वरदान देती हूँ in hindi,  माँ शक्ति की कृपा से राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया in hindi,  राजा ने अपने राज दरबारियों in hindi,  पण्डितों, ज्योतिषों को बुलाया in hindi,  और बच्ची की जन्म कुण्डली तैयार करने का आदेश दिया in hindi,  पण्डित तथा ज्योतिषियों ने बच्ची के बारे में बताया in hindi,  कि यह कन्या तो साक्षात देवी है in hindi,  इसके कदम जहाँ पड़ेंगे वहाँ हर खुशियाँ होगी in hindi,  कन्या भी भगवती की पुजारिन होगी in hindi,  उस कन्या का नाम तारा रखा गया in hindi,  थोड़े समय बाद राजा के घर वरदान के अनुसार एक और कन्या ने जन्म लिया in hindi,  कन्या की कुण्डली सेे पण्डित और ज्योतिष उदास हो गये in hindi,  राजा ने इस उदासी का कारण पूछा in hindi,  तो वे कहने लगे की यह कन्या राजा के लिये शुभ नहीं है in hindi,  राजा ने उदास होकर ज्योतिषियों से पूछा कि उन्होंने ऐसे कौन से बुरे कर्म किये हैं in hindi,  जो कि इस कन्या ने उनके घर में जन्म लिया? in hindi,  पूर्व जन्म में दोनों कन्या देवराज इन्द्र के दरबार की अप्सराएं थी in hindi,  उन्होंने सोचा कि वे भी मृत्युलोक में भ्रमण करके देखें कि मृत्युलोक में लोग किस तरह रहते है in hindi,  दोनो ने मृत्युलोक पर आकर एकादशी का व्रत रखा in hindi,  बड़ी बहन का नाम तारा था in hindi,  तथा छोटी बहन का नाम रूक्मन in hindi,  बड़ी बहन तारा ने अपनी छोटी बहन से कहा in hindi,  कि रूक्मन आज एकादशी का व्रत है हम लोगों ने आज भोजन नहीं करना है in hindi,  इसलिए बाजार जाकर कुछ फल ले आये in hindi,  रूक्मन बाजार फल लेने के लिये गई in hindi,  वहाँ उसने मछली के पकोड़े बनते देखे उसने अपने पैसों के तो पकोड़े खा लिये और तारा के लिये फल लेकर वापस आ गई in hindi,  और फल उसने तारा को दे दिये in hindi,  तारा के पूछने पर उसने बताया कि उसने मछली के पकोड़े खा लिये है in hindi,  माँ तारा ने उसको एकादशी के दिन माँस खाने के कारण शाप दिया in hindi,  कि वह कई योनियों में गिरे और छिपकली बनकर सारी उम्र ही कीड़े-मकोड़े खाती रहे in hindi,  इसी देश में ऋषि गुरू गोरख अपने शिष्यों के साथ रहते थे in hindi,  उनके शिष्यों में एक शिष्य तेज स्वभाव और घमण्डी था in hindi,  एक दिन वो घमण्डी शिष्य पानी का कमण्डल भरकर एकान्त में जाकर तपस्या पर बैठ गया in hindi,  वो अपनी तपस्या में लीन था in hindi,  उसी समय उधर से एक प्यासी कपिला गाय in hindi,  आ गई। उस ऋषि के पास पड़े कमण्डल में पानी पीने के लिए उसने मुँह डाला in hindi,  और सारा पानी पी गई in hindi,  जब कपिता गाय ने मुँह बाहर निकाला in hindi,  तो खाली कमण्डल की आवाज सुनकर उस ऋषि की समाधि टूटी in hindi,  उसने देखा कि गाय ने सारा पानी पी लिया था in hindi,  ऋषि ने गुस्से में आ उस कपिला गाय in hindi,   को बहुत बुरी तरह चिमटे से मारा जिससे in hindi,  वह गाय लहुलुहान हो गई। यह खबर गुरू गोरख को मिली तो in hindi,  उन्होंने कपिला गाय की हालत देखी in hindi,  उन्होंने अपने उस शिष्य को उसी वक्त आश्रम से निकाल दिया in hindi, गुरू गोरख ने गाय माता पर किये गये in hindi,  पाप से छुटकारा पाने के लिए कुछ समय बाद एक यज्ञ रचाया in hindi,  इस यज्ञ का पता उस शिष्य को भी चल गया in hindi,  उसने सोचा कि वह अपने अपमान का बदला जरूर लेगा in hindi,  उस शिष्य ने एक पक्षी का रूप धारण किया in hindi,  और चोंच में सर्प लेकर भण्डारे में फेंक दियाय in hindi,   जिसका किसी को पता न चला in hindi,  वह छिपकली जो पिछले जन्म में तारा देवी की छोटी बहन थी in hindi,  तथा बहन के शाप को स्वीकार कर छिपकली बनी थी in hindi,  सर्प का भण्डारे में गिरना देख रही थी in hindi,  परोपकार की शिक्षा अब तक याद थी। वह भण्डारा होने तक घर की दीवार पर चिपकी समय की प्रतीक्षा करती रही in hindi,  कई लोगो के प्राण बचाने हेतु उसने अपने प्राण न्योछावर कर लेने का मन ही मन निश्चय किया in hindi,  जब खीर भण्डारे में दी जाने वाली थी in hindi,  बाँटने वालों की आँखों के सामने ही in hindi,  वह छिपकली दीवार से कूदकर कढ़ाई में जा गिरी in hindi,  लोग छिपकली को बुरा-भला कहते हुये in hindi,  खीर की कढ़ाई को खाली करने लगे तो in hindi,   उन्होंने उसमें मरे हुये साँप को देखा in hindi,  तब जाकर सबको मालूम हुआ कि in hindi,  छिपकली ने अपने प्राण देकर उन सबके प्राणों की रक्षा की थी in hindi,  उपस्थित सभी सज्जनों और देवताओं ने उस छिपकली के लिए प्रार्थना की in hindi,  कि उसे सब योनियों में उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त हो और in hindi,  अन्त में वह मोक्ष कर प्राप्ति करें in hindi,  अगले जन्म में वह छिपकली राजा स्पर्श के घर कन्या के रूप में जन्मी in hindi,  दूसरी बहन तारा देवी ने फिर मनुष्य जन्म लेकर तारामती in hindi,  नाम से अयोध्या के प्रतापी राजा हरिश्चन्द्र के साथ विवाह किया  in hindi,

माँ तारा की उत्पत्ति

राजा स्पर्श माँ शक्ति के उपासक थे और सुबह-शाम माँ शक्ति की पूजा-पाठ किया करते थे। माँ शक्ति ने भी उन्हें सुख के सभी साधन दिये थे, लेकिन एक कमी थी उनके घर में कोई संतान नही थी। यह चिन्ता उन्हें बहुत परेशान करती थी। वह माँ शक्ति से यही प्रार्थना करते थे उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान देंवे और वह भी संतान का सुख भोग सकें और उनके पीछे भी उनका नाम लेने वाला हो। माँ ने उसकी पुकार सुन ली एक दिन माँ ने आकर राजा को स्वप्न दर्शन दिये और कहा तुम्हारी भक्ति से बहुत अति-प्रसन्न हूँ मैं तुम्हें दो पुत्रियाँ प्राप्त होने का वरदान देती हूँ। माँ शक्ति की कृपा से राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया। राजा ने अपने राज दरबारियों, पण्डितों, ज्योतिषों को बुलाया और बच्ची की जन्म कुण्डली तैयार करने का आदेश दिया। पण्डित तथा ज्योतिषियों ने बच्ची के बारे में बताया कि यह कन्या तो साक्षात देवी है। इसके कदम जहाँ पड़ेंगे वहाँ हर खुशियाँ होगी। कन्या भी भगवती की पुजारिन होगी। उस कन्या का नाम तारा रखा गया। थोड़े समय बाद राजा के घर वरदान के अनुसार एक और कन्या ने जन्म लिया। कन्या की कुण्डली सेे पण्डित और ज्योतिष उदास हो गये। राजा ने इस उदासी का कारण पूछा तो वे कहने लगे की यह कन्या राजा के लिये शुभ नहीं है। राजा ने उदास होकर ज्योतिषियों से पूछा कि उन्होंने ऐसे कौन से बुरे कर्म किये हैं जो कि इस कन्या ने उनके घर में जन्म लिया? पूर्व जन्म में दोनों कन्या देवराज इन्द्र के दरबार की अप्सराएं थी। उन्होंने सोचा कि वे भी मृत्युलोक में भ्रमण करके देखें कि मृत्युलोक में लोग किस तरह रहते है। 

दोनो ने मृत्युलोक पर आकर एकादशी का व्रत रखा। बड़ी बहन का नाम तारा था तथा छोटी बहन का नाम रूक्मन। बड़ी बहन तारा ने अपनी छोटी बहन से कहा कि रूक्मन आज एकादशी का व्रत है हम लोगों ने आज भोजन नहीं करना है इसलिए बाजार जाकर कुछ फल ले आये। रूक्मन बाजार फल लेने के लिये गई। वहाँ उसने मछली के पकोड़े बनते देखे उसने अपने पैसों के तो पकोड़े खा लिये और तारा के लिये फल लेकर वापस आ गई और फल उसने तारा को दे दिये। तारा के पूछने पर उसने बताया कि उसने मछली के पकोड़े खा लिये है। माँ तारा ने उसको एकादशी के दिन माँस खाने के कारण शाप दिया कि वह कई योनियों में गिरे और छिपकली बनकर सारी उम्र ही कीड़े-मकोड़े खाती रहे। इसी देश में ऋषि गुरू गोरख अपने शिष्यों के साथ रहते थे। उनके शिष्यों में एक शिष्य तेज स्वभाव और घमण्डी था। एक दिन वो घमण्डी शिष्य पानी का कमण्डल भरकर एकान्त में जाकर तपस्या पर बैठ गया। वो अपनी तपस्या में लीन था। उसी समय उधर से एक प्यासी कपिला गाय आ गई। उस ऋषि के पास पड़े कमण्डल में पानी पीने के लिए उसने मुँह डाला और सारा पानी पी गई। जब कपिता गाय ने मुँह बाहर निकाला तो खाली कमण्डल की आवाज सुनकर उस ऋषि की समाधि टूटी। उसने देखा कि गाय ने सारा पानी पी लिया था। ऋषि ने गुस्से में आ उस कपिला गाय को बहुत बुरी तरह चिमटे से मारा जिससे वह गाय लहुलुहान हो गई। यह खबर गुरू गोरख को मिली तो उन्होंने कपिला गाय की हालत देखी। उन्होंने अपने उस शिष्य को उसी वक्त आश्रम से निकाल दिया।

गुरू गोरख ने गाय माता पर किये गये पाप से छुटकारा पाने के लिए कुछ समय बाद एक यज्ञ रचाया। इस यज्ञ का पता उस शिष्य को भी चल गया। उसने सोचा कि वह अपने अपमान का बदला जरूर लेगा। उस शिष्य ने एक पक्षी का रूप धारण किया और चोंच में सर्प लेकर भण्डारे में फेंक दियाय जिसका किसी को पता न चला। वह छिपकली जो पिछले जन्म में तारा देवी की छोटी बहन थी तथा बहन के शाप को स्वीकार कर छिपकली बनी थी, सर्प का भण्डारे में गिरना देख रही थी। परोपकार की शिक्षा अब तक याद थी। वह भण्डारा होने तक घर की दीवार पर चिपकी समय की प्रतीक्षा करती रही। कई लोगो के प्राण बचाने हेतु उसने अपने प्राण न्योछावर कर लेने का मन ही मन निश्चय किया। जब खीर भण्डारे में दी जाने वाली थी, बाँटने वालों की आँखों के सामने ही वह छिपकली दीवार से कूदकर कढ़ाई में जा गिरी। लोग छिपकली को बुरा-भला कहते हुये खीर की कढ़ाई को खाली करने लगे तो उन्होंने उसमें मरे हुये साँप को देखा। तब जाकर सबको मालूम हुआ कि छिपकली ने अपने प्राण देकर उन सबके प्राणों की रक्षा की थी। उपस्थित सभी सज्जनों और देवताओं ने उस छिपकली के लिए प्रार्थना की कि उसे सब योनियों में उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त हो और अन्त में वह मोक्ष कर प्राप्ति करें। अगले जन्म में वह छिपकली राजा स्पर्श के घर कन्या के रूप में जन्मी। दूसरी बहन तारा देवी ने फिर मनुष्य जन्म लेकर तारामती नाम से अयोध्या के प्रतापी राजा हरिश्चन्द्र के साथ विवाह किया।

दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya