माँ भुवनेश्वरी शक्तिपीठ-Maa Bhuvaneshwari

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माँ भुवनेश्वरी शक्तिपीठ 

उत्तराखंड में भुवनेश्वरी शक्तिपीठ पहला मंदिर है। इस मंदिर की यह विशेषता है यहाँ देवी की श्रृंग के रूप में पूजा होती है। स्कंध पुराण के अनुसार बह्मा के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति के यज्ञ में पार्वती का शरीर शांत होने पर शिव ने हरिद्वार कनखल में प्रजापति को सबक सिखाया। पार्वती के सती हो जाने पर उनका जला शरीर लेकर वे आकाश मार्ग से गुजरे और तब भगवान विष्णु ने जले शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। इसके बाद शिव ने इस पर्वत पर विश्राम किया। त्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदिशक्ति माँ भुवनेश्वरी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल में सतपुली-बांघाट-बिलखेत-दैसण ग्राम (सांगुड़ा) में स्थित नदी तट पर है। यह नदी का संगम गंगा जी से व्यासचट्टी में होता है जहाँ भगवान वेदव्यास जी ने श्रुति एवं स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था। मंदिर के दो कक्ष हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है एवं बाहर जाने का द्वार पश्चिम दिशा में है। मंदिर के अंतः गर्भगृह में एक छोटा मातृलिंग है, जिसकी ख्याति सर्वत्र है। भुवनेश्वरी कथानक के अनुसार अनंतकोटि ब्राह्माण्डों की नायिका हैं। ब्राह्मा, विष्णु, महेश ने उनके बांये पैर के अंगूठे के नखदर्पण में अनेक ब्राह्माण्डों को ही नहीं देखा, अपितु अनेक कोटि संख्या में ब्राह्मा, विष्णु और शिव भी देखे। भुवनेश्वरी ने उन्हें ब्राह्मणो, वैष्णवी और माहेश्वरी शक्तियां प्रदान की गयी। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार यहां दक्ष प्रजापति का बृहस्पतिस नामक यज्ञ का उच्चारण हो रहा था। यज्ञ को देखने की इच्छा से कैलास पर्वत से दक्ष प्रजापति की कनिष्ठ पुत्री दाक्षायणी भी आई। वहाँ किसी ने उसका आदर नहीं किया। पिता (दक्ष प्रजापति) के द्वारा आदर न किए जाने पर दाक्षायणी ने उत्तर दिशा की ओर मुँह कर कुशा के आसन पर बैठकर शिवजी के कमलरूपी चरणों का ध्यान किया। समाधिजन्य अग्नि से पापरहित होकर सती ने अपना शरीर जला दिया। 

उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल सतपुली-बांघाट-बिलखेत-दैसण ग्राम (सांगुड़ा) में स्थित नदी तट पर पहला भुवनेश्वरी शक्तिपीठ  मंदिर जिसकी श्रृंग रूप में पूजा होती है। पार्वती के सती हो जाने पर उनका जला शरीर लेकर वे आकाश मार्ग से गुजरे और तब भगवान विष्णु ने जले शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। इसके बाद शिव ने इस पर्वत पर विश्राम किया। त्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदिशक्ति माँ भुवनेश्वरी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल में सतपुली-बांघाट-बिलखेत-दैसण ग्राम (सांगुड़ा) में स्थित नदी तट पर है। यह नदी का संगम गंगा जी से व्यासचट्टी में होता है जहाँ भगवान वेदव्यास जी ने श्रुति एवं स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था। मंदिर के दो कक्ष हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है एवं बाहर जाने का द्वार पश्चिम दिशा में है। मंदिर के अंतः गर्भगृह में एक छोटा मातृलिंग है, जिसकी ख्याति सर्वत्र है। भुवनेश्वरी कथानक के अनुसार अनंतकोटि ब्राह्माण्डों की नायिका हैं। ब्राह्मा, विष्णु, महेश ने उनके बांये पैर के अंगूठे के नखदर्पण में अनेक ब्राह्माण्डों को ही नहीं देखा, अपितु अनेक कोटि संख्या में ब्राह्मा, विष्णु और शिव भी देखे। भुवनेश्वरी ने उन्हें ब्राह्मणो, वैष्णवी और माहेश्वरी शक्तियां प्रदान की गयी। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार यहां दक्ष प्रजापति का बृहस्पतिस नामक यज्ञ का उच्चारण हो रहा था। यज्ञ को देखने की इच्छा से कैलास पर्वत से दक्ष प्रजापति की कनिष्ठ पुत्री दाक्षायणी भी आई। वहाँ किसी ने उसका आदर नहीं किया। पिता (दक्ष प्रजापति) के द्वारा आदर न किए जाने पर दाक्षायणी ने उत्तर दिशा की ओर मुँह कर कुशा के आसन पर बैठकर शिवजी के कमलरूपी चरणों का ध्यान किया। समाधिजन्य अग्नि से पापरहित होकर सती ने अपना शरीर जला दिया। sakshambano image, sakshambano ka udeshya in hindi, sakshambano ke barein mein in hindi, sakshambano ki pahchan in hindi, apne aap sakshambano in hindi, sakshambano blogger in hindi,  sakshambano  png, sakshambano pdf in hindi, sakshambano photo, Ayurveda Lifestyle keep away from diseases in hindi, sakshambano in hindi, sakshambano hum sab in hindi, sakshambano website, माँ-भुवनेश्वरी-जयंती-Maa-Bhuvaneshwari-Jayanti in hindi, es din pooja se saubhagya milta hai 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है ये सब तुम्हारे ही मुण्ड हैं in hindi, यह सुनकर सती बड़ी हैरान हुईं v उन्होंने फिर शिव से पूछा- क्या मेरे ही शरीर विलीन होते हैं? in hindi, आपका शरीर विलीन नहीं होता? in hindi, आपका शरीर नष्ट क्यों नहीं होता? in hindi, शिव ने उत्तर दिया देवी! क्योंकि मैं अमर कथा जानता हूँ in hindi, अतः मेरा शरीर पञ्चतत्व को प्राप्त नहीं होता in hindi, सती बोली- भगवान! इतना समय व्यतीत होने पर अब तक वह कथा आपने मुझे क्यों नहीं बताई? in hindi, शिवजी ने कहा- इस मुण्डमाला में 107 मुण्ड हैं in hindi, अब एक मुण्ड की आवश्यकता है in hindi, इसके बाद ये 108 हो जायेंगे in hindi, तब यह माला पूर्ण हो जायेगी in hindi, अगर सुनना चाहती हो in hindi, तो मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ in hindi, किन्तु बीच-बीच में तुम्हें हुंकारे भी देने होंगे in hindi, कथा प्रारंभ हुई बीच-बीच में हुंकारे भी आते रहे in hindi, कुछ समय बाद सती को गहरी नींद आ गई in hindi, वहां कथा स्थान के पास वट वृक्ष की शाखा पर बने घोसले में तोते का साररहित in hindi, एक अण्डा था, कथा के प्रभाव से वह सारयुक्त हो गया in hindi, उसमें से शुक शिशु उत्पन्न हुआ in hindi, और युवा हो गया। सती को नींद में देख व कथा रस में आए in hindi, व्यवधान को जानकर शुक शावक ने सती दाक्षायणी in hindi, के स्थान पर हुंकारे देने शुरू कर दिए in hindi, कथा पूर्ण हुई और शुक शावक अमरत्व प्राप्त कर गया in hindi, जब सती जागी तो शिव से आगे की कथा के लिए प्रार्थना करने लगी in hindi, शिव ने कहा- देवी क्या तुमने कथा नहीं सुनी in hindi, देवी ने कहा- मैंने तो नहीं सुनी in hindi, शिव ने पूछा तो बीच में हुंकारे कौन भरता रहा? in hindi, यहां तो इधर-उधर कोई दिखाई नहीं दे रहा है  in hindi, इस बीच शुक शावक ने वट वृक्ष से उतर कर हुंकारे देने की बात स्वयं स्वीकार की in hindi, यही शुक शावक व्यासपुत्र शुकदेव हुए in hindi, व्यास जी का निवास स्थान यहाँ से लगभग 10 मील की दूरी पर है in hindi, जिसे व्यास घाट कहते हैं in hindi, यहां पर गंगा और नारद गंगा का संगम है in hindi, माँ भुवनेश्वरी का बीजमंत्र ऐ हीं श्रीं हीं भुवनेश्वर्यैनमः in hindi, का उच्चारण करते हुए हाथ जोड़कर परिक्रमा करने मात्र से ही in hindi, मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है।दस महाविद्या शक्तियां in hindi, Click here »  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Jai Maa Bhuvaneshwari

उल्लेखनीय है कि शिव पुराण में भी बिल्व क्षेत्र का वर्णन है, यह बिल्व क्षेत्र बिलखेत है। दक्ष प्रजापति का छह महीने का निवास स्थान दैसण है। दक्ष का जहाँ गला कटा, वह निवास स्थल अथवा उत्पत्तिस्थल सतपुली हुआ। अतः सती का यह मंदिर भुवनेश्वरी का मंदिर कहलाया। सती अग्नि समाधि अवस्था में उत्तर की ओर मुंह करके बैठी थी इसीलिए इस मंदिर का प्रवेश द्वार उत्तर की ओर है। इसी मंदिर के समीप अभी भी विशालकाय वट वृक्ष विद्यमान है जिसके नीचे बैठकर भगवान शंकर ने सती को अमर कथा सुनाई थी। एक अन्य कथा के अनुसार देवी सती के 108 अवतार हुए। जब 107 अवतार हो गये और 108वें अवतार का समय आया तो नारद ने सती को शिव के गले में पड़ी मुण्डमाला के विषय में शिव से जिज्ञासापूर्ण प्रश्न करने के लिए कहा। देवी सती के पूछने पर शिवजी ने कहा- इसमें कोई शंका नहीं है ये सब तुम्हारे ही मुण्ड हैं। यह सुनकर सती बड़ी हैरान हुईं। उन्होंने फिर शिव से पूछा- क्या मेरे ही शरीर विलीन होते हैं? आपका शरीर विलीन नहीं होता? आपका शरीर नष्ट क्यों नहीं होता? शिव ने उत्तर दिया देवी! क्योंकि मैं अमर कथा जानता हूँ अतः मेरा शरीर पञ्चतत्व को प्राप्त नहीं होता। सती बोली- भगवान! इतना समय व्यतीत होने पर अब तक वह कथा आपने मुझे क्यों नहीं बताई? शिवजी ने कहा- इस मुण्डमाला में 107 मुण्ड हैं। अब एक मुण्ड की आवश्यकता है इसके बाद ये 108 हो जायेंगे। तब यह माला पूर्ण हो जायेगी अगर सुनना चाहती हो तो मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ किन्तु बीच-बीच में तुम्हें हुंकारे भी देने होंगे। कथा प्रारंभ हुई बीच-बीच में हुंकारे भी आते रहे। कुछ समय बाद सती को गहरी नींद आ गई। 

कथा स्थान के पास वट वृक्ष की शाखा पर बने घोसले में तोते का साररहित एक अण्डा था, कथा के प्रभाव से वह सारयुक्त हो गया। उसमें से शुक शिशु उत्पन्न हुआ और युवा हो गया। सती को नींद में देख व कथा रस में आए व्यवधान को जानकर शुक शावक ने सती दाक्षायणी के स्थान पर हुंकारे देने शुरू कर दिए। कथा पूर्ण हुई और शुक शावक अमरत्व प्राप्त कर गया। जब सती जागी तो शिव से आगे की कथा के लिए प्रार्थना करने लगी। शिव ने कहा- देवी क्या तुमने कथा नहीं सुनी। देवी ने कहा- मैंने तो नहीं सुनी। शिव ने पूछा तो बीच में हुंकारे कौन भरता रहा? यहां तो इधर-उधर कोई दिखाई नहीं दे रहा है। इस बीच शुक शावक ने वट वृक्ष से उतर कर हुंकारे देने की बात स्वयं स्वीकार की। यही शुक शावक व्यासपुत्र शुकदेव हुए। व्यास जी का निवास स्थान यहाँ से लगभग 10 मील की दूरी पर है जिसे व्यास घाट कहते हैं, यहां पर गंगा और नारद गंगा का संगम है। माँ भुवनेश्वरी का बीजमंत्र ऐ हीं श्रीं हीं भुवनेश्वर्यैनमः का उच्चारण करते हुए हाथ जोड़कर परिक्रमा करने मात्र से ही मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है।

दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya