(Maa Matangi)
माँ मातंगी जयंती पर माता की पूजा अर्चना की जाती है। इस पावन अवसर पर जो भी कोई माता की पूजा करता है वह सर्व-सिद्धियों का लाभ प्राप्त करता है। मातंगी की पूजा व्यक्ति को सुखी जीवन प्रदान करती है। राक्षसों का नाश व उनका वध करने हेतु माता मातंगी ने विशिष्ट तेजस्वी स्वरुप धारण किया। ऐसा माना जाता हैं कि देवी की ही कृपा से वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं, देवी ग्रहस्त के समस्त कष्टों का निवारण करती हैं। देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के प्रेम से हुई हैं। मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। चार भुजाएं और चार वेद है। भगवती मातंगी त्रिनेत्रा, रत्नमय सिंहासन पर आसीन, नीलकमल के समान कान्तिवाली तथा राक्षस-समूह रूप अरण्य को भस्म करने में दावानल के समान हैं। माँ मातंगी का सम्बन्ध मृत शरीर या शव तथा श्मशान भूमि से हैं। माँ मातंगी अपने दाहिने हाथ पर महा-शंख (मनुष्य खोपड़ी) या खोपड़ी से निर्मित खप्पर, धारण करती हैं। तंत्र विद्या के अनुसार देवी तांत्रिक सरस्वती नाम से जानी जाती हैं एवं श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरी के रथ की सारथी है। नारद पांचरात्र के बारहवें अध्याय में शिव को चाण्डाल तथा शिवा को उच्छिष्ट चाण्डाली कहा गया है। इनका ही नाम मातंगी है। पुराकाल में मतंग नामक मुनि ने नाना वृक्षों से परिपूर्ण कदम्ब वन में सभी जीवों को वश में करने के लिए भगवती त्रिपुरा की प्रसन्नता हेतु कठोर तपस्या की थी उस समय त्रिपुरा के नेत्र से उत्पन्न तेज ने एक श्यामल नारी-विग्रह का रूप धारण कर लिया। इन्हें राजमातंगिनी कहा गया है। यह दक्षिण तथा पश्चिमाम्नाय की देवी हैं। राजमातंगी, सुमुखी, वश्यमातंगी तथा कर्णमातंगी इनके नामान्तर हैं। मातंगी के भैरव का नाम मतंग हैं।
एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी, भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने हेतु उनके निवास स्थान कैलाश शिखर पर गये। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले गए तथा उन्होंने वह खाद्य प्रदार्थ शिव जी को भेट स्वरूप प्रदान की। भगवान शिव तथा पार्वती ने उपहार स्वरूप प्राप्त हुए वस्तुओं को खाया, भोजन करते हुए खाने का कुछ अंश नीचे धरती पर गिर उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली दासी ने जन्म लिया जो मातंगी नाम से विख्यात हुई। देवी का प्रादुर्भाव उच्छिष्ट भोजन से हुआ, परिणामस्वरूप देवी का सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन सामग्रियों से हैं तथा उच्छिष्ट वस्तुओं से देवी की आराधना होती हैं। देवी उच्छिष्ट मातंगी नाम से जानी जाती हैं। तंत्र शास्त्र में देवी की उपासना विशेषकर वाक् सिद्धि (जो बोला जाये वही सिद्ध होना) हेतु, पुरुषार्थ सिद्धि तथा भोग-विलास में पारंगत होने हेतु की जाती हैं। देवी मातंगी चैंसठ प्रकार के ललित कलाओं से सम्बंधित विद्याओं में निपुण हैं तथा तोता पक्षी इनके बहुत निकट हैं। मातंगी दस महाविद्याओं में से नौवीं विद्या हैं।
10 महाविद्याओं का अर्थ है 10 देवियों की आराधना जिनकी तंत्रो के द्वारा साधना कर के उन्हें प्रसन्न किया जाता है। मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, माता बगलामुखी, माँ मातंगी और कमला देवी। गुप्त नवरात्रों की एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार एक स्त्री ऋषि श्रंगी के पास आई और अपनी व्यथा सुनाई. उसने बताया कि पति गलत कामों से जुड़ा हुआ है वह बहुत पाप करता है। जब मैं कोई धार्मिक कार्य, हवन या अनुष्ठान करने की कोशिश करती हूँ, वह सफल नहीं हो पाता। तो ऐसा क्या करूं कि माँ दुर्गा की कृपा मेरे घर पर पड़े। तब ऋषि बोले कि वसंत और अश्विन ऋतु में आने वाले नवरात्रों का सभी को पता होता है. परन्तु गुप्त नवरात्रि जो आषाढ़ और माघ ऋतु में आते हैं उनमें माता की विशेष कृपा होती है। इनमें 9 देवियों की पूजा न होकर 10 महाविद्याओं की उपासना होती है। यह सुन कर उस स्त्री ने विधिपूर्वक कठोर साधना की माता ने उसकी साधना से प्रसन्न होकर उसका घर खुशियों से भर दिया। उसके पति को भी माँ ने सही दिशा प्रदान की।
माँ मातंगी गृहस्थी से जुडी हर दिक्कत का उपाय बताती है। मातंगी पूजा से आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की उँचाइयों को छू सकते है। मातंगी पूजा से जातक को पूर्ण गृहस्थ-सुख, शत्रुओ का नाश, भोग-विलास, आपार सम्पदा, वाक सिद्धि, कुंडली जागरण, आपार सिद्धियां, काल ज्ञान, इष्ट दर्शन आदि माँ के आशीर्वाद से प्राप्त होते है। पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार मातंगी ही एक ऐसी देवी है जिन्हें जूठन का भोग लगाया जाता है। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के लिए देवी मातंगी की आराधना की जाती है। माँ मातंगी के प्रभाव से साधक सबका ध्यान अपनी और खींचने में सफल होता है, उसमे तेज आता हैं अलौकिक शक्ति का वास होता हैं।
1) पहली महाविद्या माँ काली की होती है जिससे किसी भी बीमारी या अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है।
2) इस सिद्धि से दुष्ट आत्माओं से भी बचाव किया जा सकता है।
3) दूसरी महाविद्या माँ तारा की होती है जो हमे तीव्र बुद्धि और रचनात्मक शक्ति प्रदान करती हैं।
4) त्रिपुर सुंदरी अगर कोई भी काम ऐसा है जो सपन्न नहीं हो पा रहा है तो वह त्रिपुर सुंदरी की आराधना कर सकता है।
5) माँ भुवनेश्वरी सभी की इच्छाएं पूरी करती है।
6) माँ छिन्नमस्ता की साधना कर सभी प्रकार की रोजगार सम्बन्धी मसले दूर होते है।
7) माँ भैरवी की आराधना कर के विवाह में आई बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
8) माँ धूमावती बुरी नजर, तंत्र-मंत्र, जादू-टोने, भूत-प्रेत से मुक्ति पाने के लिए धूमावती माँ को प्रसन्न किया जाता है।
9) माँ बगलामुखी को खुश कर के किसी भी समस्या का समाधान निकला जा सकता है।
10) माँ मातंगी की साधना से व्यक्ति का हर काम आसानी से बनने लगता है। अपनी वाणी से आकर्षित करना, काम बनवाना, यह सब माँ मातंगी की कृपा से ही हो सकता है।
11) माँ मातंगी साधक को सभी कष्टों से मुक्त कर देती है। ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा इस मंत्र का जाप करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
12) माँ कमला धन और सुंदरता की देवी है इनकी साधना से सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya