माण्डव्य ऋषि द्वारा यमराज को श्राप
(Yamraj cursed by Mandavya Rishi in hindi)
(Yamraj cursed by Mandavya Rishi in hindi)
मांडव्य ऋषि को वध स्थल पर लाया गया। वह वहीं गायत्री मंत्र का जाप करने लगे। राज कर्मचारी, उन्हें फांसी देते, लेकिन मांडव्य ऋषि को फांसी न लगती कर्मचारी और स्वयं राजा भी हैरान हुआ। ऐसा क्यों ? फांसी से तो कोई बचा नहीं, लेकिन इस ऋषि को फांसी क्यों नहीं लग रही है। यह निश्चित ही कोई तपस्वी है राजा को पश्चाताप हुआ। ऋषि से क्षमा मांगी। ऋषि ने कहा- राजन मैं तुम्हें तो क्षमा कर दूंगा लेकिन यमराज को क्षमा नहीं करूंगा। माण्डव्य ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा। तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।
जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती व विदुर वानप्रस्थ आश्रम में रहते हुए कठोर तप कर रहे थे, तब एक दिन युधिष्ठिर सभी पांडवों के साथ उनसे मिलने पहुंचे। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती के साथ जब युधिष्ठिर ने विदुर को नहीं देखा तो धृतराष्ट्र से उनके बारे में पूछा। धृतराष्ट्र ने बताया कि वे कठोर तप कर रहे हैं। तभी युधिष्ठिर को विदुर उसी ओर आते हुए दिखाई दिए लेकिन आश्रम में इतने सारे लोगों को देखकर विदुरजी पुनः लौट गए। युधिष्ठिर उनसे मिलने के लिए पीछे-पीछे दौड़े। तब वन में एक पेड़ के नीचे उन्हें विदुरजी खड़े हुए दिखाई दिए। उसी समय विदुरजी के शरीर से प्राण निकले और युधिष्ठिर में समा गए।
महाभारत युद्ध चल रहा था। विदुर भगवान श्रीकृष्ण के पास गए और उनसे एक निवेदन किया। वह अपनी अंतिम इच्छा श्रीकृष्ण को बताना चाहते है। उन्होंने कहा-हे प्रभु, मैं धरती पर इतना प्रलयकारी युद्ध देखकर बहुत चिंचित हूँ। मेरी मृत्यु के बाद मैं अपने शरीर का एक भी अंश इस धरती पर नहीं छोड़ना चाहता। इसलिए मेरा आपसे यह निवेदन है कि मेरी मृत्यु होने पर ना मुझे जलाया जाए, ना दफनाया जाए, और ना ही जल में प्रवाहित किया जाए। मेरी मृत्यु के बाद मुझे आप कृपया सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर दें। यही मेरी अंतिम इच्छा है। श्रीकृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा स्वीकार की और उन्हें यह आश्वासन दिया कि उनकी मृत्यु के पश्चात वह उनकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे। युधिष्ठिर के लिए यह घटना कुछ अजीब थी। वे समझ नहीं पा रहे थे कि ये क्या हुआ, क्यूं हुआ, इसके पीछे क्या कारण था? अपनी दुविधा का हल खोजने के लिए उन्होंने श्रीकृष्ण को याद किया।
विदुर की मृत्यु का सत्य
विदुर की भगवान श्रीकृष्ण से अंतिम इच्छा
भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए युधिष्ठिर को दुविधा में देखते हुए वे मुस्कुराए और बोले- हे युधिष्ठिर यह समय चिंता का नहीं है। विदुर धर्मराज के अवतार थे और तुम स्वयं धर्मराज हो। इसलिए प्राण त्याग कर वे तुममें समाहित हो गए। लेकिन अब मैं विदुर को दिया हुआ वरदान पूरा करने आया हूँ। यह कहकर श्रीकृष्ण ने विदुर के शव को सुदर्शन चक्र में परिवर्तित किया।