माँ षोडशी-Maa Shodashi

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माँ षोडशी

माँ षोडशी शक्ति की सबसे सुन्दर बालस्वरुपा श्रीविग्रह वाली देवी हैं। महाविद्याओं में माँ षोडशी का चौथा स्थान हैं। षोडशी माँ अनेक नामो जैसे ललिता, त्रिपुरा और राज-राजेश्वरी आदि नामो से प्रसिद्ध हैं। माँ षोडशी सोलह कला प्रदान करती है यह ऐश्वर्य, धन, पद जो भी चाहिए सभी कुछ प्रदान कर देती है। इनके श्री चक्र को श्रीयंत्र भी कहा जाता है। इनकी साधना से भक्त जो इच्छा करेगा वह पा ही लेगा। ये त्रिपुरा समस्त भुवन मे सबसे अधिक सुन्दर है। इनकी पलक कभी नही गिरती है यह जीव को शिव बना देती है। अभाव क्या है, कर्म क्या है, इनके भक्त क्या जाने, भक्त जैसी भी इच्छा करते है, वह सभी उन्हे प्राप्त हो जाता है। यह सभी की अधिश्वरी है।

श्याम वर्ण मे काली कामाख्या है, वही गौर वर्ण मे राज राजेश्वरी है। सौन्दर्य रुप, श्रृंगार, विलास, स्वास्थ्य सभी कुछ इनके कृपा मात्र से प्राप्त होता है। भगवान शिव की अर्धांगिनी केवल माता पार्वती हैं। लेकिन माँ षोडशी माहेश्वरी को भी भगवान शिव की अर्धांगिनी माना गया हैं। कहा जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि आपके द्वारा प्रकाशित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएंगे, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति तो इससे नहीं होगी। 

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माँ पार्वती ने कहा कि निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई उपाय बताइए। फिर भगवान शिव ने षोडशी श्री विद्या-साधना-प्रणाली को प्रकट किया। यही वजह हैं कि आज भी सभी शंकर पीठों में भगवती षोडशी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी की श्रीयंत्र के रूप में आराधना चली आ रही है। पुराणों के अनुसार प्रशांत हिरण्य गर्भ ही शिव हैं और उन्हीं की शक्ति षोडशी है। तंत्र शास्त्रों में षोडशी देवी को पंचवक्त्र अर्थात् पांच मुखों वाली बताया गया है। पञ्चदशी जैसे नामों से पहचाना जाता हैं। षोडशी देवी के दस हाथ हैं जिनमे अभय, टंक, शूल, वज्र, पाश, खंग, अंकुश, घंटा, नाग और अग्नि हैं. माना गया हैं कि इन सभी हाथों में षोडश कलाएं पूर्ण रूप से विकसित हैं जिसके चलते उन्हें षोडशी देवी कहा गया है। 

भगवान शंकराचार्य ने सौन्दर्यलहरी में षोडशी श्रीविद्या की स्तुति करते हुए कहा है कि ‘अमृत के समुद्र में एक मणिका द्वीप है, जिसमें कल्पवृक्षों की बारी है, नवरत्नों के नौ परकोटे हैं, उस वन में चिन्तामणि से निर्मित महल में ब्रह्ममय सिंहासन है, जिसमें पंचकृत्य के देवता ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और ईश्वर आसन के पाये हैं और सदाशिव फलक हैं। सदाशिव के फलक हैं। सदाशिव के नाभि से निर्गत कमल पर विराजमान भगवती षोडशी त्रिपुरसुन्दरी का जो ध्यान करते हैं, वे धन्य हैं। भगवती के प्रभाव से उन्हें भोग और मोक्ष दोनों सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं। यह श्री कुल की विद्या है, इनकी पूजा गुरु मार्ग से की जाती है। यह साधक को पूर्ण समर्थ बनाती। 

आकर्षण, वशित्व, कवित्व, भौतिक सुख सभी को देने वाली है। इनकी साधना से सभी भोग भोगते हुये मोक्ष की प्राप्ती होती है। यह परम करुणामयी जीव को उस स्वरुप को प्रकट करती है तो जीव शिव बन अपना स्वरुप देखता है की वह तो मै ही हूँ। इनकी पूजा मे श्री बाला त्रिपुरसुन्दरी की भी पूजा की जाती है। इनकी साधना से साधक का कुन्डलिनी शक्ति खुल जाती है। यह सारे अभावो को दूर कर भक्त को धन-यश के साथ दिव्य-दृष्टि प्रदान करती है। यह चार पायों से युक्त जिनके नीचे ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर पाया बन जिस सिंहासन को अपने मस्तक पर विराजमान किये उसके ऊपर सदा शिव लेटे हुये है और उनके नाभी से एक कमल जो खिलता हुआ, उस पर त्रिपुरा विराजमान है। सैकड़ों पूर्वजन्म के पुण्य प्रभाव और गुरु कृपा से इनका मंत्र मिल पाता है। किसी भी ग्रह-दोष, या कोई भी अशुभ प्रभाव इनके भक्त पर नही हो पाता। 

दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya