माँ भुवनेश्वरी जयंती- Maa Bhuvaneshwari Jayanti

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इस दिन पूजा से सौभाग्य मिलता है

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भुवनेश्वरी जयंती मनायी जाती है। भुवनेश्वरी भगवान शिव लीला की सहभागी है। इनका स्वरूप कांतिमय एवम सौम्य है। माँ भुवनेश्वरी की साधना से धन, वैभव, शक्ति एवम विद्या प्राप्त होती है। माना जाता है कि इस दिन माँ भुवनेश्वरी का अवतरण हुआ था। दस महाविद्याओं में से एक माँ भुवनेश्वरी इस ब्रहमांड की शक्ति का आधार हैं। इनका स्वरूप बड़ा ही कांतिपूर्ण और सौम्य है। स्वयं शंकरजी भी इनके पाठ से ही समस्त आगमों तथा तन्त्रों में विज्ञानी हुए हैं। शक्ति सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा हैं। देवी के मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है।

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तीनों लोकों का तारण करने वाली तथा वर देने की मुद्रा अंकुश पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाली मां भुवनेश्वरी अपने तेज एवं तीन नेत्रों से युक्त हैं। देवी अपने तेज से संपूर्ण सृष्टि को देदिप्यमान करती हैं। मां भुवनेश्वरी की साधना से शक्ति, लक्ष्मी, वैभव और उत्तम विद्याएं प्राप्त होती हैं। इन्हीं के द्वारा ज्ञान तथा वैराग्य की प्राप्ति होती है। इनकी साधना से सम्मान की प्राप्ति होती है। देवी भुवनेश्वरी स्वरूप- माता भुवनेश्वरी सृष्टि के ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। चेतनात्मक अनुभूति का आनंद इन्हीं में है। विश्वभर की चेतना इनके अंतर्गत आती है। गायत्री उपासना में भुवनेश्वरी जी का भाव निहित है। भुवनेश्वरी माता के चार हाथ हैं और चारों हाथ शक्ति एवं दंड व्यवस्था का प्रतीक है। आशीर्वाद मुद्रा प्रजापालन की भावना का प्रतीक है यही सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक है। 

माँ भुवनेश्वरी सूर्य के समान लाल वर्ण युक्त हैं। इनके मस्तक पर मुकुट स्वरूप चंद्रमा शोभायमान है। मां के तीन नेत्र हैं तथा चारों भुजाओं में वरद मुद्रा, अंकुश, पाश और अभय मुद्रा है। माँ भुवनेश्वरी की साधना के लिए कालरात्रि, ग्रहण, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी शुभ समय माना जाता है। लाल रंग के पुष्प, नैवेद्य, चंदन, कुमकुम, रुद्राक्ष की माला, लाल रंग इत्यादि के वस्त्र को पूजा अर्चना में उपयोग किया जाना चाहिए। लाल वस्त्र बिछाकर चैकी पर माता का चित्र स्थापित करके पंचोपचार और षोडशोपचार द्वारा पूजन करना चाहिए। 

माँ भुवनेश्वरी जयंती के अवसर पर त्रैलोक्य मंगल कवच, भुवनेश्वरी कवच, श्री भुवनेश्वरी स्तोत्रम का पाठ किया जाता है। माँ भुवनेश्वरी का जाप मंत्र ऐं हृं श्रीं ऐं हृं के उच्चारण से करना चाहिए। इस मन्त्र जाप के उच्चारण से साधक को समस्त सुखों एवम सिद्धियों की प्राप्ति होती है। माँ भुवनेश्वरी के व्रत से व्रती पर माँ भगवती की कृपा बरसती है। माँ दयालु है और सबका पालन करती है। इनकी कृपा से व्रती को दिव्य दर्शन की अनुभूति प्राप्त होती है। भुवनेश्वरी माता का मंत्र स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नमः मंत्र का जाप करें।

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भुवनेश्वरी साधना: सब पहले आपके सामने देवी का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमे से कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे। घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये। धुप अगरबत्ती जलाये। बैठने के लिए आसन हो। जाप के लिए रुद्राक्ष माला या काली हकीक माला हो। एक आचमनी पात्र, जल पात्र रखे। हल्दी, कुंकुम,चन्दन, अष्टगंध और अक्षत पुष्प, नैवेद्य के लिए मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु, फल भी एकत्रित करे। सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो भी गुरु स्मरण करे। गणेश का स्मरण करें।

ऊँ गुं गुरुभ्यो नमः 
ऊँ श्री गणेशाय नमः 
ऊँ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः 
क्रीं कालिकायै नमः 
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः 

फिर आचमनी या चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए
ह्रीं आत्मतत्वाय स्वाहा
ह्रीं विद्या तत्वाय स्वाहा
ह्रीं शिव तत्वाय स्वाहा
ह्रीं सर्व तत्वाय स्वाहा
 
उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करें
ऊँ श्री गुरुभ्यो नमः
ऊँ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ऊँ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
 

उसके बाद अपने आसन का स्पर्श करे और पुष्प अक्षत अर्पण करें

पृथ्वीव्यै नमः
अब तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे।
श्री दुर्गा भुवनेश्वरी सहित महाकाल्यै नमः आत्मानं रक्ष रक्ष
अब दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करें।
मन में यह बोले की मैं और अपना गोत्र भुवनेश्वरी जयंती पर
माँ भुवनेश्वरी की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण
हेतु या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु यथा शक्ति साधना कर रहा हूँ और
जल को जमीन पर छोड़े। 

अब गणेशजी का ध्यान करें
वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
ऊँ श्री गणेशाय नमः

भैरव जी का स्मरण  करें
ऊँ भं भैरवाय नमः।।

ध्यान मंत्र
उदत दिन द्युतिम इंदुं किरिटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम।
स्मेरमुखीं वरदांकुश पाशाभितिकरां प्रभजे भुवनेशीम।।

ह्रीम भुवनेश्वर्यै नमः
माँ भगवती राजराजेश्वरी भुवनेश्वरी 
आवाहयामि मम पूजा स्थाने मम हृदये स्थापयामि पूजयामि नमः।।

आवाहनादि मंत्र
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः आवाहिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः संस्थापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः सन्निधापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः सन्निरुद्धा भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः सम्मुखी भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः अवगुंठिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः वरदो भव सुप्रसन्नो भव।
फिर भुवनेश्वरी देवी का पंचोपचार पूजन करें।
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः गंधं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः पुष्पं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः धूपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः दीपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः तांबूलं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः सर्वोपचारार्थे पुननमः गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि।

माँ भुवनेश्वरी स्तुति 

जगत जननी, मुस्कराती
जपा कुसुमवत रक्त वर्णा
चतुर्भुजा, त्रिनेत्रा
अभय और वर देने वाली
माँ भुवनेश्वरी !
माँ! जग में भरा घोर अंधेरा
हमें चाहिये अभय दान
माँ आप हैं त्रिभुवन की स्रष्टा
आप ही हैं सौभाग्यकारिणी
मान बचा दें आप हमारा
पूरी कर दें सभी कामना
हम करते आपकी वंदना
भूल हमारी कर दें माफ
जग परिपालक
भुवनेश्वरी माँ !!

दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya