भारत के असम राज्य गुवाहटी शहर से से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर मां कामख्या देवी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह देवी मां के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देवी मां के भक्त उनके दर्शन करने आते हैं। मंदिर की मान्यता है कि यहां जो भी भक्ति सच्चे मन से मां आदि शक्ति के दर्शन कर लेता है। उसे जीवन भर किसी भी संकट से नहीं गुजरना पड़ता है और उन भक्तों पर मां भगवती की सदैव कृपा बरसती है।
माँ कामाख्या देवी मंदिर हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। मंदिर का मुख्य आकर्षण गर्भगृह है, जहां देवी कामाख्या की योनि की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति को लाल कपड़े से ढका गया है और केवल एक बार एक वर्ष में, अंबुवाची मेले के दौरान, इसे जनता के लिए खोला जाता है। अंबुवाची मेला एक चार दिवसीय त्योहार है जो हर साल जून-जुलाई में मनाया जाता है। यह त्योहार देवी कामाख्या के रजस्वला चक्र का प्रतीक है। त्योहार के दौरान, मंदिर को बंद कर दिया जाता है और भक्तों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती है। कामाख्या देवी मंदिर एक रहस्यमय और शक्तिशाली स्थान है। यह देवी शक्ति और प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। मंदिर तंत्रवाद का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है, और कई तांत्रिक यहां देवी कामाख्या की पूजा करने आते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार मां सती के पिता दक्ष ने एक बार भरी सभा में शिव जी का अपमान किया था। उनसे यह अपमान सहा नहीं गया और उन्होंने अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर प्राणों कि आहुति दे दी थी। शिव जी मां सती के व्योग में उनका देह लेकर इधर-उधर घूमने लगे। इस दैरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के देह पर प्रहार किया। प्रहार के कारण मां सती के अंग जहां-जहां गिरे वह शक्तिपीठ नाम से प्रसिद्ध हुए। मान्यता है कि देवी सती के देह की योनि का भाग यहां गिरा था। तब से यह स्थान मां कामख्या देवी के नाम से प्रसिद्ध है।
मां कामख्या मंदिर में देवी मां की कोई भी प्रतिमा नहीं है। यहां एक कुंड को ही उनका स्वरूप मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। यह तीर्थस्थान मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में सम्मलित है। मंदिर का मुख्य भाग्य जमीन से लगभग 20 फीट नीचे है। जमीन के नीचे एक विशाल गुफा भी है। हर महीने इस मंदिर के पट तीन दिनों के लिए बंद किए जाते हैं। इस दौरान कोई भी मां के दर्शन नहीं करता है। यह स्थान तंत्र साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। सिद्धि पाने के लिए यहां मां कामाख्या की पूजा उनके भक्त करते हैं।
नवरात्र के समय कामाख्या मंदिर में कुल 15 दिनों का उत्सव होता है, यह आयोजन कृष्ण पक्ष नवमी से शुरू हो जाता है और शुक्ल पक्ष नवमी में समाप्त होता है। कामाख्या मंदिर में दुर्गा पूजा बिलकुल अलग है। हमारे यहां नवरात्रि से दुर्गा पूजा के साथ ही कुमारी पूजा शुरू होती है। नवरात्र में बाहर से काफी लोग यहां चंडी पाठ करने आते हैं, लेकिन यहां दुर्गा पूजा शुरू होने के पहले दिन से चंडी पाठ शुरू हो जाता है। कामाख्या मंदिर विश्व का सर्वोच्च कुमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसलिए इस शक्तिपीठ में कुमारी-पूजा अनुष्ठान का अत्यंत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कुमारी पूजा यहां की जाने वाली लगभग सभी प्रमुख पूजाओं में से एक है और खासकर यह दुर्गा पूजा के समय होती है।
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