भगवान परशुराम का फरसा आज भी मौजूद -Bhagwan Parshuram ka farsa aaj bhi maujood hai

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भगवान परशुराम का फरसा आज भी मौजूद 
(Bhagwan Parshuram ka farsa aaj bhi maujood hai)

टांगीनाथ धाम रांची से लगभग 150 किलोमीटर दूर गुमला जिले में एक पहाड़ पर स्थित है। कहा किया जाता है कि इस मंदिर में भगवान परशुराम का फरसा गड़ा है। यहां रहने वाले लोग बताते है कि एक बार एक लोहार ने परशुराम के फरसा को चोरी करने की कोशिश की थी, लेकिान कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई। कहा जाता है कि जो भी इस फरसा से छेड़छाड़ की कोशिश करता है उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है।

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कहा जाता है कि खुले में रहने के बावजूद भी फरसा में आजतक कभी जंग नहीं लगा। जंग न लगने की खासियत से आकर्षित होकर इलाके के में रहने वाली लोहार जनजाति के कुछ लोगों ने फरसे को ले जाने की कोशिश की थी। उखाड़ने की कोशिश में सफल न होने पर उन्होंने फरसे के ऊपरी भाग को ही काट दिया, परन्तु उसे भी नहीं ले जा सके। इस घटना से सबक लेते हुए लोगों ने जमीन की ढलाई करवा दी और उसी ढलाई में फरसे का टूटा हुआ हिस्सा भी स्थापित कर दिया।

फरसे से छेड़छाड़ का खामियाजा लोहार जाति को आज भी भुगतना पड़ रहा है। कई पीढ़ियों के बाद आज भी उस जाति का कोई व्यक्ति टांगीनाथ धाम के आस-पास के गांवों में नहीं रह पाता। कहते हैं उक्त घटना के बाद से ही इलाके में लोहार जाति के लोगों की एक के बाद एक की मौत होने लगी। डर के मारे उन्होंने अपना ठिकाना बदल लिया और अब भी धाम के आसपास फटकने से डरते हैं।

टांगीनाथ धाम में सैकड़ों की संख्या में शिवलिंग और प्राचीन प्रतिमाएं खुले आसमान के नीचे पड़ी हैं। ये प्रतिमाएं उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर, गौरी केदार आदि स्थानों से खुदाई में प्राप्त मूर्तियों से मेल खाती हैं। पुरातत्व विभाग ने 1989 में टांगीनाथ धाम में खुदाई करवाई थी। इसमें सोने-चांदी के आभूषण समेत कई कीमती वस्तुएं मिली थी। कुछ कारणों से यहां खुदाई जल्दी ही बंद कर दी गई और धरोहर फिर जमीन में दबे रहे गए। खुदाई में हीरा जड़ित मुकुट, चांदी के अर्द्धगोलाकर सिक्के, सोने के कड़े, सोने की बालियां, तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था, इत्यादि चीजें मिलीं थी। ये सब चीजे आज भी डुमरी थाना के मालखाने में रखी हुई हैं। 

अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार

• किवदंतियों के अनुसार यह फरसा भगवान परशुराम ने यहां खुद गाड़ा था।

• त्रेतायुग के दौरान जनकपुर में स्वयंवर के दौरान शिवजी का धनुष तोड़ने के बाद सीताजी से विवाह कर श्रीराम जी भाई लक्ष्मण और अन्य परिजनों के साथ अयोध्या लौट रहे थे। रास्ते में विष्णु के ही एक अन्य अवतार माने जाने वाले परशुराम ने उन्हें रोक लिया। वह शिवजी का धनुष तोड़े जाने से नाराज थे, क्योंकि शिवजी ही परशुराम के गुरु थे। परशुराम ने राम को खूब बुरा-भला कहा लेकिन वे मौन रहे पर लक्ष्मण को गुस्सा आ गया। उन्होंने परशुराम के साथ लंबी बहस की और इसी बीच परशुराम को पता चल गया कि राम भी उनकी तरह विष्णु के ही अवतार हैं।

• यह जानकर परशुराम बहुत लज्जित हुए और अपने किए का प्रायश्चित करने के लिए घनघोर जंगलों के बीच एक पहाड़ पर आ गए। उस पहाड़ पर उन्होंने अपना फरसा गाड़ दिया और बगल में बैठकर तपस्या करने लगे। 

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