हमारा से मेरा फिर भी अशांति क्यों? - Hamara Se Mera Phir Bhi Ashanti Kyon?

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हमारा से मेरा फिर भी अशांति क्यों? 
(Hamara se mera phir bhi ashanti kyon) 

पाश्चात्य भाषा ने हमारी देवभूमि और शांति प्रिय देश को भी अशांति की तरफ मोड़ दिया है। क्या व्यक्ति की उन्नति अपने संयुक्त परिवार में रह कर नहीं हो सकती? आज ऐसा ही वातावरण है, ऐसा मै अकेले नही लिख रही हूं मेरी जैसी सोच वाले असंख्या भारतवाषी है। इस वातावरण की उन्नति इतनी जल्दी हो गई कि इस सच्चाई पर विश्वास करना ही पड़ रहा है। अगर हम पिछले 40-50 वर्ष के वातावरण का अनुभव करें तो उसमें पूरी सच्चाई थी। एक दूसरे के प्रति विश्वास और मर्यादाये थी जिनका भली भांति पालन किया जाता था। उस समय अधिकतर संयुक्त परिवारों में रहते थे। 

क्या उस समय पढ़ लिखकर शिक्षक, डाक्टर, वैज्ञानिक या आज जैसा सर्वोच्चपद प्राप्त नही हुआ? फिर क्यों आज ऐसा वातारण बना हुआ जहां अपनी तरक्की के लिए परिवार का साथ जरूरी नही लगता। बड़ों के आर्शीवाद की जरूरत नही पड़ती कुछ वर्ष पहले माता-पिता को पूरा विश्वास होता था। वृ़द्ध अवस्था में मेरे बच्चे मेरी देख-भाल जरूर करेगे। उस समय इस तरह की चिन्ता नही होती थी जैसी कि आज के वातावरण में है। नौजवान माता-पिताओं को अभी से चिन्ता होनी लगी। वह उस समय की कल्पना करते हुये भय और अशांत हो जाते है। ऐसी सोच इस अंग्रेजी भाषा की है जिसने इस वातावरण को जन्म दिया है। 

हमारा से मेरा फिर भी अशांति क्यों? Hamara Se Mera Phir Bhi Ashanti Kyon? पाश्चात्य भाषा ने हमारी देवभूमि और शांति प्रिय देश को भी अशांति की तरफ मोड़ दिया, क्या व्यक्ति की उन्नति अपने संयुक्त परिवार में रह कर नहीं हो सकती, आज ऐसा ही वातावरण है, ऐसा मै अकेले नही लिख रही हूं, मेरी जैसी सोच वाले असंख्या भारतवाषी है, इस वातावरण की उन्नति इतनी जल्दी हो गई, इस सच्चाई पर विश्वास, पिछले 40-50 वर्ष के वातावरण का अनुभव करें, उसमें पूरी सच्चाई थी, एक दूसरे के प्रति विश्वास और मर्यादाये थी, जिनका भली भांति पालन किया जाता था, अधिकतर संयुक्त परिवारों में रहते थे, आज हम सब कहाँ है? Aaj hum sab kahan hai? in hindi, from ours to mine but still unhappiness? in hindi, Can a person not progress by living in his joint family? in hindi, The development of this environment happened so quickly in hindi, Today there is no need for the blessings of elders in hindi, Young parents are already worried in hindi, Man's stature is increased by virtues and goodness in hindi, There was a lack of culture, which could not be studied in indi, sakshambano, sakshambano hindi viral post, sakshambano ka uddeshya, bache ka itna gussa, aisi daant har koi chahta hai,  latest viral video bhache ka itna gussa,

Aaj hum sab kahan hai?  

आज के युवा सोचते है अंग्रेजी बोलना आ गया है तो भगवान से बहुत बड़ा वरदान प्राप्त कर लिया है। उनको ऐसा घमण्ड होता है जैसा कि वरदान प्राप्ति के बाद दैत्यों को होता था। वह दैत्यों जैसा ही व्यवहार करने लगता है जिसके कारण संयुक्त परिवार को तोड़कर अपना अलग प्रभुत्व की स्थापना करता है। पर शांति नही मिलती क्योंकि असुर भाषा का ज्ञान प्राप्त हुआ यह भाषा जीने नही देगी। व्यक्ति का कद बड़ा होता है उसके अन्दर उन संस्कारों और अच्छाईयों से जिसकी प्राप्ति हुई भारतभूमि की पवित्र संस्कृति से। इसी संस्कृति के अन्दर असंख्या देवता अवतरित हुये उनके बारे में असंख्या लेख है।

कर्तव्य-निष्ठा के इन सुविचारों की उत्पति हुई। हमारी संस्कृति जो हमें एक दूसरे से जोड़ती है इसका एक मात्र उद्देश्य है अपनापन। आज जरूरत है पहले जैसे वातावरण की जिसमें भय की कोई जगह नही थी। आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी लेते है फिर भी संस्कारों की कमी रह जाती है। कुछ समय पहले बच्चे छोटी सी उम्र में यह सब प्राप्त कर लेते थे। यह सब की शिक्षा अपने घर में ही प्राप्त कर लेते थे अपने बड़ों से जो कि एक नहीं अनेक होते थे। यही कमी रह गई जिसकी पढ़ाई नहीं कर पाए।

सभ्यता (Sabhyata): हम अपने श्रेष्ठ लोगों से खासतौर सुनते हैं, कि पहले का समय ही अच्छा था। अब तो धीरे-धीरे नई पीढ़ी भी यही बोलने लगी, उन्हें भी सच्चाई का ज्ञान होने लगा कि कई न कई कमी रह गई। आज उस कमी को दूर करना है, अपनी सभ्यता ही इसको दूर कर सकती है। इसी सभ्यता में यह ताकत है जो ऐसा कर सकती है।

ऐसा क्यों? ऐसी सभ्यता होने के बाद भी (Aisa kyon? Aisi sabhyata hone ke baad bhi): विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ जो परिर्वतन आ रहा है, इससे सभी लोगों में खुशी की उमग है। इस उन्नति का महत्व दोगुना तब होगा, जब खासतौर से बुर्जुग वर्ग कहे ये दौर पिछले दौर से अच्छा है। बुर्जुग वर्ग ऐसा इसलिए कह रहे है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन काल में अपने कुटुम्ब के श्रेष्ठ लोगों की सेवा और मार्गदर्शन में अपनी जीवन यात्रा का शुभारभ किया और आगे बढ़े। 

इन लोगों ने अपनों के साथ गैरों से भी सद्व्यवहार किया। इन्हें तो अपनों की इस अनदेखी की प्रवाह नही, परेशान है आनेे वाले कल के बारे में जब छोटी सी उम्र में बच्चें अपनों से दूर हो जायगें। इन्होंने तो अपने बच्चों को सब कुछ सिखाया फिर भी भूल गये सब कुछ। इस पीढ़ी ने तो देखा ही नही कुटुम्ब और परिवार, परेशान है आने वाले समय के लिए। मैं सब को आवहान करती हूँ एक संस्कार युक्त परिवार के लिए।

आज हम सब कहाँ है? (Aaj hum sab kahan hai?): कुटुम्ब के साथ-साथ परिवार भी अलग हो गये। माता-पिता से अलग हो गये उनसे मार्गदर्शन छूँट गया। अपने बच्चों को मार्गदर्शन देना भूल गये। ये कैसा युग जिसने अपनों को अपनों से दूर कर दिया। आज इस भागदौड़ के साथ-साथ सभ्यता संस्कार बहुत पीछे रह गये। जिस परम्परा ने हमें एक-दूसरे से अपनापन बनाये रखने में मदद की उसी को भूल गये। आज हम अपनी सभ्यता और संस्कृति के विना आगे बढ़ रहे है।

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