भगवान विष्णु विभिन्न युगों में मनुष्य रूप में अवतरित हुये और सामान्य मनुष्य की तरह विभिन्न कष्टों के भागीदार बने। उन्होंने कर्म, कर्तव्य निष्ठा के प्रति मनुष्य को अपने ब्रहमवचनों से शिक्षा दी। देवताओं द्वारा दी गई शिक्षा निर्देशों को ऋषि-मुनियों ने वेदों और पुराणों अंकित किया। जिसे आज हम सब अपने धार्मिक पुस्तकों से अवगत होते है। इन्हीं कर्तव्यों से मनुष्य ने अपना जीवन आरम्भ किया और संस्कृति की उत्पत्ति हुई। भारतीय संस्कृति में कर्तव्य का प्राचीनकाल से ही अत्यधिक महत्व है। पहले पूर्ण रूप से कर्तव्य का पालन होता था और समयानुसार कर्तव्य के प्रति व्यक्ति की निष्ठ कम होने लगी है। जिसका प्रकोप पूरे समाज तेजी फैलता जा रहा है।
कर्तव्य से ही एकता का जन्म होता है (Unity is born from Obligation): मनुष्य को अगर अपने कर्तव्य की पहचान हो जाए तो उसमें स्वयं सद्गुण आने लगते है। उसे सत्यता की पहचान के साथ-साथ उसकी शक्ति का अहसास होता है। भारतीय संस्कृति ने कर्तव्य को पूर्णतः अपनाया और इससे संबंधित जानकारी हम अपने बुर्जुगों से सुनते है। उन्होंने अपने कर्तव्य को किस तरह निभाया और परिवार में एकता की बुनियाद बनायी रखी। आज के वातावरण में ऐसा कुछ नही दिखाई देता, कर्तव्य शब्द अनसुना लगता है। कर्तव्य शब्द सुनते ही व्यक्ति विचलित हो जाता है।
कर्तव्य किसके प्रति होना चाहिए (Obligation should be towards whom): आज ऐसा वातावरण है, प्रत्येक व्यक्ति कर्तव्य के प्रति असंम्जय में है। उसे नही मालूम अपना प्रथम कर्तव्य क्या है? इसी कारण मनुष्य सर्व सम्पन्न होने के बाद भी किसी न किसी कारण दुःखी है। अगर कर्तव्य की परंपरा वैसी चली आ रही होती, जैसा कि हमने अपनी संस्कृति से सुना है। तो मनुष्य जीवन का महत्व और अधिक बढ़ जाता।
कर्तव्य का मनुष्य के जीवन में महत्व (Significance of obligation in importance of human life): भारतीय संस्कृति में मनुष्य को कई पीढ़ियों तक उसके कर्तव्य के कारण जाना जाता है। कर्तव्य सत्यता का महत्व इतना अधिक है, आने वाली पीढ़ियों तक उसका प्रभाव बना रहता है। मनुष्य जीवन में हर व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य के साथ-साथ, सामाजिक जीवन में भी कर्तव्य निष्ठा की अति आवश्यकता है। मैं अपनी संस्कृति की सत्यता की पुनरावृत्ति कर रही हूं।