मनुष्य का जीवन 84 करोड़ जन्म-मरण के बाद होता है यह एक सत्यता है। और हम इस सत्यता को अभी भी स्वीकार नहीं कर पाये। हमें मनुष्य जीवन के महत्व का पूरा ज्ञान नही है क्या है।? इसका उत्तर हम लोग स्वयं समझ सकते है। सत्यता एक ऐसा प्रश्न है जिससे एक सभ्य और सक्षम समाज की स्थापना होती है। वर्तमान वातारण में ऐसा कुछ नही दिखाई देता अगर हम सत्यता पर होते तो हमारे अन्दर मानवता होती और हम मनुष्य कहलाते। वर्तमान में ऐसा कुछ नही दिखाई देता क्या सबका कारण सत्यता? अगर सत्यता को अपनाया होता ऐसा वातावरण न होता।
असत्य अपने घर से आरम्भ किया यह भी एक सत्यता है। अपने घर के वातारण को दूषित करने के साथ-साथ समाज तक पहुंचा दिया। आज हम सब प्रवचन देते है मानवता रह नही गई। दया संवेदना के शब्द तो शब्दों तक ही रह गये। सत्यता को हमने कभी महत्व दिया ही नही। असत्य का प्रकोप सबसे पहले अपने घर को दूषित करता है। परिणाम असत्य बोलना आरम्भ किया बदले में चार गुना असत्य मिला। असत्य ने अपने घर को तक नहीं छोड़ा जहां उसका जन्म हुआ। इसलिए सत्यता को मन से अभी से सत्य की ओर चले।
सत्यता से अवतरित हुई संस्कृति (Culture was born from truthness): इस महान देश में जितने भी देवता अवतरित हुये उन्हीं के द्वारा संस्कृति की उत्पत्ति हुई। इन सभी का विवरण हमारे वेदों-पुराणों अंकित है। यह सच्चाई वर्षों से चली आ रही है इन्हीं के पथ-चिन्हों पर हमारी संस्कृति अभी तक चली आ रही है। इस संस्कृति का आधार शिला सत्यता पर आधारित है। सत्यता के कारण युगों से यह संस्कृति चली आ रही है क्योंकि सत्यता मैं इतनी शक्ति है। हम इस शक्ति की अनदेखी कर रहे है अर्थात् अपनी संस्कृति को अपने से दूर कर रहे है। जबकि सत्यता यह है हमारी पौराणिक संस्कृति का अंत हो ही नही सकता यह भी एक सत्यता है। इसलिए एक बार फिर अपनी संस्कृति की ओर पढ़-लिख-चले।
सत्यता ही शुद्धीकरण का एक मात्र मंत्र (Truth is the only mantra of purification): असत्यता के कारण मन और मानवता जो आज दूषित हो गई है, उसका निश्चित रूप से सत्यता से ही शुद्धीकरण होगा।इसके कारण स्वतः ही संस्कृतिमय वातावरण की पुनः स्थापना होगी।
सक्षमबनो Sakshambano -समृद्ध राष्ट् के निर्माण में प्रत्येक व्यक्ति की स्वयं की भागीदारी अति जरूरी।