शुक्र से सुख-समृद्धि की प्राप्ति-Attain prosperity from Venus

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शुक्र ग्रह का महत्व और लाभ
 (Importance and benefits of Venus)

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता, विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए। महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव यानि गुरु (बृहस्पति) तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि यानि (शुक्र) समकालीन थे। यज्ञोपवीत संस्कार के बाद दोनों ऋषियों की सहमति से अंगिरा ने दोनों बालकों की शिक्षा का दायित्व लिया। कवि महर्षि अंगिरा के पास ही रह कर अंगिरानंदन जीव के साथ ही विद्याध्ययन करने लगा। 

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  सुखमयी जीवन बनान के उपाय-Ways to make a Happy Life 

आरंभ में तो सब सामान्य रहा पर बाद में अंगिरा अपने पुत्र जीव की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देने लगे व कवि की उपेक्षा करने लगे। कवि ने इस भेदभाव पूर्ण व्यवहार को जान कर अंगिरा से अध्ययन बीच में ही छोड़ कर जाने की अनुमति ले ली और गौतम ऋषि के पास पहुंचे। गौतम ऋषि ने कवि की सम्पूर्ण कथा सुन कर उसे महादेव की शरण में जाने का उपदेश दिया। महर्षि गौतम के उपदेशानुसार कवि ने गोदावरी के तट पर शिव की कठिन आराधना की। स्तुति व आराधना से प्रसन्न होकर महादेव ने कवि को देवों को भी दुर्लभ मृतसंजीवनी नामक विद्याप्रदान की और कहा कि जिस मृत व्यक्ति पर तुम इसका प्रयोग करोगे वह जीवित हो जाएगा। 

मृत्युंजयो मृत्युमृत्युः कालकालो यमान्तकः।
वेदस्त्वं वेदकर्ता च वेदवेदांगपारगः।। 

अर्थात् हे परम शिव! आप मृत्युंजय होने के कारण मृत्यु की भी मृत्यु, काल के भी काल तथा यम के भी यम हैं। वेद, वेदकर्ता तथा वेद-वेदांगों के पारंगत विद्वान भी आप ही हैं।

भगवान शिव ने कहा कि आकाश में तुम्हारा तेज सब नक्षत्रों से अधिक होगा। तुम्हारे उदित होने पर ही विवाह आदि शुभ कार्य आरम्भ किए जाएंगे। अपनी विद्या से पूजित होकर भृगु नंदन शुक्र दैत्यों के गुरु पद पर नियुक्त हुए। जिन अंगिरा ऋषि ने उनके साथ उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया था उन्हीं के पौत्र जीव पुत्र कच को संजीवनी विद्या देने में शुक्र ने किंचित भी संकोच नहीं किया। कालांतर में यही कवि शुक्र कहलाए शुक्राचार्य कवि या भार्गव के नाम से प्रसिद्ध थे। इनको शुक्र नाम कैसे और कब मिला इस विषय में वामन पुराण में कहा गया है कि दानवराज अंधकासुर और महादेव के मध्य घोर युद्ध चल रहा था। अन्धक के प्रमुख सेनानी युद्ध में मारे गए पर भार्गव ने अपनी संजीवनी विद्या से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। पुनः जीवित होकर कुजम्भ आदि दैत्य फिर से युद्ध करने लगे। इस पर नंदी आदि गण महादेव से कहने लगे कि जिन दैत्यों को हम मार गिराते हैं उन्हें दैत्य गुरु संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर देते हैं ऐसे में हमारे बल का क्या महत्व है। यह सुन कर महादेव ने दैत्य गुरु को अपने मुख से निगल कर उदरस्थ कर लिया। 

सुखमयी जीवन बनान के उपाय (Ways to make a Happy Life)

1) रुई और दही को मंदिर में दान करना चाहिए ।
2) शुक्र को शुभ करने के लिए आप को गाय को हरा चारा खिलाना चाहिए।
रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है। 
3) काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
4) शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
5) शुक्रवार के दिन सफेद चीजों का दान करने से भी शुक्र की कृपा प्राप्त होने लगती  है। अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
6) शुक्र के दोष से पीड़ित व्यक्ति को माता लक्ष्मी की उपासना और शुक्रवार के व्रत रखने चाहिए। इससे उसके जीवन में परिमार्जन आता है।
7) शुक्रवार को चावल की खीर बनाएं और उसमें शकर की जगह पर मिश्री का उपयोग करें। यह खीर 7 कन्याओं को खिलाएं और उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार दक्षिणा प्रदान करें। यह प्रयोग 7, 11 या 21 शुक्रवार करें। 
8) दूध-मावे से बनी मिठाई का भोग लक्ष्मी को लगाऐ।
9) शुक्रवार के दिन सफेद या रेशमी सफेद वस्त्र पहनें। अपनी जेब में हमेशा सफेद रंग का रूमाल रखें।
10) भगवान शिव की पूजा से भी शुक्र प्रसन्न होते हैं। प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग का शहद से अभिषेक करें।
11) शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
12) धन पाने के लिए व्यवसाय के स्थान पर लक्ष्मी-गणेश और विष्णु जी की स्थापना करें।
13) माता लक्ष्मी को एक गुलाब का फूल चढायें शाम पूजा की समाप्ति के बाद तीन बार शंख जरूर बजायें।
14) शुक्र ग्रह की कृपा पाने के लिए खाने से पहले अपने भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कौवे, या कुत्ते के लिए निकाल कर रखें. ऐसा करने से शुक्र की व्यक्ति पर विशेष कृपा होती है।

भृगुपुत्र कवि से शुक्राचार्य कैसे?: इसी मन्त्र का जप करके शुक्राचार्य शंकर के उदर से शुक्र (वीर्य) रूप में लिंगमार्ग से बाहर निकले। शिवजी ने कहा: तुम मेरे लिंगमार्ग से शुक्ररूप में प्रकट हुए हो, इसलिए अब से तुम्हारा नाम ‘शुक्र’ होगा। अब से तुम मेरे पुत्र कहलाओगे।’ उस समय माता गौरी ने उन्हें पुत्र की तरह माना और जगदीश्वर शिव ने उन्हें अजर-अमर एवं ऐश्वर्यमय बना दिया। तबसे असुर गुरु कवि शुक्राचार्य कहे जाने लगे। शुक्र अब भी आकाश में एक तारे (नक्षत्र) के रूप में स्थित हैं और वर्षा आदि की सूचना देते हैं। शुक्राचार्य को कवि, शुक्र, भार्गव व भृगुनन्दन के नाम से जाना जाता है।

हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्त्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।

शुक्र से सुख-समृद्धि की प्राप्ति: इनके हाथों में दण्ड, कमल, माला और धनुष-बाण भी है। शुक्र ग्रह का संबंध धन की देवी माँ लक्ष्मी जी से है इसलिए धन-वैभव और ऐश्वर्य की कामना के लिए शुक्रवार के दिन पूजा-पाठ करते है। नौ ग्रह हमारे जीवन को बनाने और बिगाड़ने का काम करते हैं। कुंडली में अगर इन ग्रहों की स्थिति अच्छी है तो निश्चित तौर पर यह अपना सकारात्मक प्रभाव दिखाते हैं और अगर हालात इसके विपरीत है तो प्रतिकूल प्रभाव देते है। कुण्डली में शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति जीवन को सुखमय और प्रेममय बनाती है। शुक्र के अशुभ होने पर व्यक्ति बुरी आदतों का शिकार होने लगता है। शुक्र के अशुभ होने पर वैवाहिक जीवन में कलह की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और इस कलह से अलगाव की नौबत भी आ जाती है। जीवन में धन-संपत्ति, सुख-साधन होने पर भी इन सभी का उपभोग नहीं कर पाते ऐसा भी शुक्र के प्रकोप से होता है। पारिवारिक रिश्तों में अनबन की स्थिति, सास-बहु के संबंधों में सदैव बोल-चाल की स्थिति बनी रहती है। परिवार में स्त्री के कारण धन संबंधी  हानि यह भी खराब शुक्र के प्रकोप के कारण होता है। शुक्र के बुरे प्रभाव के कारण व्यक्ति के जीवन में भी बदलाव होने लगते है जैसे व्यवहार में चालबाजी, धोखेबाजी जैसे अवगुण उत्पन्न होने लगते है। शुक्र के पीड़ित होने के कारण व्यक्ति गुप्त रोगों से पीड़ित होने लगता है। उसकी अपनी गलतियां या अनैतिक कार्यों द्वारा वह अपनी सेहत खराब भी कर सकता है। शुक्र के अशुभ होने के कारण व्यक्ति कम उम्र में ही नशे की लत या रोगों का शिकार होने लगता है उसके अंदर नशाखोरी एवं गलत कार्यों द्वारा होने वाले रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 

शुक्र का वैदिक मंत्र

ऊँ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापतिः। 
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। 

शुक्र का तांत्रिक मंत्र

ऊँ शुं शुक्राय नमः 

शुक्र का बीज मंत्र

ऊँ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः 

शुक्राचार्य द्वारा भगवान शंकर के १०८ नामों का जाप: भगवान शंकर के उदर में शुक्राचार्य ने जिन १०८ मन्त्रों का जाप किया था वह इस प्रकार से है।  

१. ॐ जो देवताओं के स्वामी, २. सुर-असुर द्वारा वन्दित, ३. भूत और भविष्य के महान देवता, ४. हरे और पीले नेत्रों से युक्त, ५. महाबली, ६. बुद्धिस्वरूप, ७. बाघम्बर धारण करने वाले, ८. अग्निस्वरूप, ९. त्रिलोकी के उत्पत्तिस्थान, १०. ईश्वर, ११. हर, १२. हरिनेत्र, १३. प्रलयकारी, १४. अग्निस्वरूप, १५. गणेश, १६. लोकपाल, १७. महाभुज, १८. महाहस्त, १९. त्रिशूल धारण करने वाले, २०. बड़ी-बड़ी दाढ़ों वाले, २१. कालस्वरूप, २२. महेश्वर, २३. अविनाशी, २४. कालरूपी, २५. नीलकण्ठ, २६. महोदर, २७. गणाध्यक्ष, २८. सर्वात्मा, २९. सबको उत्पन्न करने वाले, ३०. सर्वव्यापी, ३१. मृत्यु को हटाने वाले, ३२. पारियात्र पर्वत पर उत्तम व्रत धारण करने वाले, ३३. ब्रह्मचारी, ३४. वेदान्तप्रतिपाद्य, ३५. तप की अंतिम सीमा तक पहुंचने वाले, ३६. पशुपति, ३७. विशिष्ट अंगों वाले, ३८. शूलपाणि, ३९. वृषध्वज, ४०. पापापहारी, ४१. जटाधारी, ४२. शिखण्ड धारण करने वाले, ४३. दण्डधारी, ४४. महायशस्वी, ४५. भूतेश्वर, ४६. गुहा में निवास करने वाले, ४७. वीणा और पणव पर ताल लगाने वाले, ४८. अमर, ४९. दर्शनीय, ५०. बालसूर्य के समान रूप वाले, ५१. श्मशानवासी, ५२. ऐश्वर्यशाली, ५३. उमापति, ५४. शत्रुदमन, ५५. भग के नेत्रों को नष्ट कर देने वाले, ५६. पूषा के दांतों के विनाशक, ५७. क्रूरतापूर्वक संहार करने वाले, ५८. पाशधारी, ५९. प्रलयकालरूप, ६०. उल्कामुख, ६१. अग्निकेतु, ६२. मननशील, ६३. प्रकाशमान, ६४. प्रजापति, ६५. ऊपर उठाने वाले, ६६. जीवों को उत्पन्न करने वाले, ६७. तुरीयतत्त्वरूप, ६८. लोकों में सर्वश्रेष्ठ, ६९. वामदेव, ७०. वाणी की चतुरतारूप, ७१. वाममार्ग में भिक्षुरूप, ७२. भिक्षुक, ७३. जटाधारी, ७४. जटिल-दुराराध्य, ७५. इन्द्र के हाथ को स्तम्भित करने वाले, ७६. वसुओं को विजडित कर देने वाले, ७७. यज्ञस्वरूप, ७८. यज्ञकर्ता, ७९. काल, ८०. मेधावी, ८१. मधुकर, ८२. चलने-फिरने वाले, ८३. वनस्पति का आश्रय लेने वाले, ८४. वाजसन नाम से सम्पूर्ण आश्रमों द्वारा पूजित, ८५. जगद्धाता, ८६. जगत्कर्ता, ८७. सर्वान्तर्यामी, ८८. सनातन, ८९. ध्रुव, ९०. धर्माध्यक्ष, ९१. भू:-भुव:, स्व:-इन तीनों लोकों में विचरने वाले, ९२. भूतभावन, ९३. त्रिनेत्र, ९४. बहुरूप, ९५. दस हजार सूर्यों के समान प्रभाशाली, ९६. महादेव, ९७. सब तरह के बाजे बजाने वाले, ९८. सम्पूर्ण बाधाओं से विमुक्त करने वाले, ९९. बन्धनस्वरूप, सबको धारण करने वाले, १००. उत्तम धर्मरूप, १०१. पुष्पदन्त, १०२. विभागरहित, १०३. मुख्यरूप, १०४. सबका हरण करने वाले, १०५. सुवर्ण के समान दीप्त कीर्ति वाले, १०६. मुक्ति के द्वारस्वरूप, १०७. भीम तथा १०८. भीमपराक्रमी हैं, उन्हें नमस्कार है, नमस्कार है। 

समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)