त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ-Maa Tripura Sundari

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त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ 
(Maa Tripura Sundari)

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से त्रिपुर सुन्दरी एक शक्तिपीठ है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। त्रिपुर सुन्दरी दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें महात्रिपुरसुन्दरी, षोडशी, ललिता, ललिताम्बिका तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं। यह दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं। त्रिपुरसुन्दरी के चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में पांच मुखों वाली कहा गया है। आप सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है। पुराणों के अनुसार सती वियोग में भगवान शिव सर्वदा ध्यान में लीन रहने लगे। उन्होने अपने सभी कर्म का त्याग कर दिया था इसके कारण तीनों लोकों के संचालन में परेशानी होने लगी थी। दूसरी ओर तारकासुर ने ब्रहमा जी से वर प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु शिव पुत्र के द्वारा होगी। सभी देवताओं ने भगवान शिव को ध्यान से दूर करने के लिए कामदेव और रति का का सहारा लिया। कामदेव ने कुसुम सर नामक मोहिनी वाण से भगवान शिव पर प्रहार किया। इससे भगवान शिव का ध्यान टूट गया। जिसके कारणा भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख से कामदेव को भस्म कर दिया। यह सब देखकर कामदेव पत्नी रति विलाप करने लगी, दयालु भगवान शिव ने कहा- द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव का जन्म होने का वरदान दिया।

त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ-Maa Tripura Sundari, हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से त्रिपुर सुन्दरी एक शक्तिपीठ है, हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये, इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है, ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं, ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं, त्रिपुर सुन्दरी दस महाविद्याओं में से एक हैं, इन्हें महात्रिपुरसुन्दरी षोडशी ललिता ललिताम्बिका तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं, यह दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं, त्रिपुरसुन्दरी के चारों हाथों में पाश अंकुश धनुष और बाण सुशोभित हैं, चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में पांच मुखों वाली कहा गया है, सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं इसलिए इनका नाम षोडशी भी है, पुराणों के अनुसार सती वियोग में भगवान शिव सर्वदा ध्यान में लीन रहने लगे, उन्होने अपने सभी कर्म का त्याग कर दिया था, इसके कारण तीनों लोकों के संचालन में परेशानी होने लगी थी, दूसरी ओर तारकासुर ने ब्रहमा जी से वर प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु शिव पुत्र के द्वारा होगी, सभी देवताओं ने भगवान शिव को ध्यान से दूर करने के लिए कामदेव और रति का का सहारा लिया, कामदेव ने कुसुम सर नामक मोहिनी वाण से भगवान शिव पर प्रहार किया, इससे भगवान शिव का ध्यान टूट गया, जिसके कारणा भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख से कामदेव को भस्म कर दिया, यह सब देखकर कामदेव पत्नी रति विलाप करने लगी, दयालु भगवान शिव ने कहा द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव का जन्म होने का वरदान दिया, what is importance of tripura sundari for beauty and business in hindi, maa tripura sundari ki katha in hindi, maa tripura sundari ka mandir khan hai hindi, maa tripura sundari ki shakti in hindi,  maa tripura sundari barein mein hindi, dasa maha vidya in hindi, dasa maha vidya ke barein mein in hidi, dasa maha vidya ki shakti in hindi, maa tripura sundari avatar in hindi, jai maa tripura sundari in hindi, maa tripura sundari ki katha hindi, maa tripura sundari ki utpatti hindi,सक्षमबनो इन हिन्दी में, sakshambano, sakshambano ka uddeshya, latest viral post of sakshambano website, sakshambano pdf hindi,

भगवान शिव के अंर्तध्यान हो जाने के बाद भगवान शिव के एक गण द्वारा कामदेव के भस्म से मूर्ति निर्मित की गई और उस मूर्ति से एक पुरुष उत्पन्न हुआ। उस पुरुष ने भगवान शिव की स्तुति की इसके फलस्वरूप उसका नाम भांड रखा गया। शिव के क्रोध से उन्पन्न होने के कारण भांड में तपोगुण उत्पन्न आये और वह तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा। देवराज इन्द्र के राज्य के समान ही उसने भी स्वर्ग जैसे राज्य का निर्माण किया। भांडासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण करके चारों तरफ से घेर लिया। भयभीत होकर देवराज इन्द्र देवर्षि नारद की शरण में गये और उनसे इसका निवारण का उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने आद्या शक्ति की विधिवत् अपने रक्त और मांस से आराधना करने का परामर्श दिया। देवराज इन्द्र ने देवी की विधिवत् आराधना की तभी माँ भगवती त्रिपुर सुन्दरी के रूप में प्रकट हुई और भांडासुर वध करके देवताओं को भयमुक्त किया। त्रिपुरा राज्य का नाम माता त्रिपुर सुंदरी के नाम पर पड़ा है। अगरतला शहर से 55 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे नंबर 44 पर उदयपुर नामक एक कस्बा है जहां त्रिपुर सुंदरी का मंदिर स्थित है। गोमती नदी के तट पर स्थित उदयपुर कभी त्रिपुरा के राजतंत्र की राजधानी हुआ करता था। उदयपुर से पांच किलोमीटर आगे है माताबाड़ी। त्रिपुरा के लोग इस मंदिर को माताबाड़ी कहते हैं। माताबाड़ी यानी मां का घर। यह देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस कूर्म पीठ कहा गया है। मंदिर का वास्तु भी कछुए की पीठ की तरह का है। यहाँ सती के बाएं पांव का अंगूठा गिरा था। ये मंदिर 11वीं सदी का बना हुआ बताया जाता है। 

सोलहवीं सदी का मंदिर वर्तमान मंदिर का गर्भ गृह 1501 में महाराजा ध्यान माणिक्य ने बनवाया था। माता का निरामिष दिन पर हर पक्ष की दसमी की तारीख माता के निरामिष भोग का दिन होता है। हर रोज सुबह आठ बजे मंदिर के पट खुलते हैं और माता का पहला दर्शन होता है। मंदिर के गर्भ गृह में श्रद्धालुओं के जाने की मनाही है। पुजारी आपका नाम और गोत्र पूछते हैं और आपका प्रसाद माता के चरणों में अर्पित करते हैं। मंदिर के पीछे पूर्व की ओर झील की तरह एक तालाब है जिसे कल्याणसागर कहते हैं। इसमें बड़े-बड़े कछुए तथा मछलियाँ हैं, जिन्हें मारना या पकड़ना अपराध है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार 16वीं शताब्दी के प्रथम दशक सन् 1501 में त्रिपुरा पर धन्यमाणिक का शासन था। एक रात उन्हें माँ त्रिपुरेश्वरी स्वप्न में दर्शन दिये और उनसे कहा-चिंतागाँव के पहाड़ पर उनकी मूर्ति है जो उन्हें वहाँ से आज रात ही लानी है। स्वप्न देखते ही राजा जाग गए तथा सैनिकों को तुरंत जाकर रात में ही मूर्ति लाने का हुक्म सुना दिया। सैनिक मूर्ति लेकर लौट रहे थे कि माताबाड़ी पहुँचते ही सूर्योदय हो गया और माता के आदेशानुसार वहीं मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी गई। राजा धन्यमाणिक वहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे किंतु त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति स्थापित हो जाने के कारण राजा पेशोपेश में पड़ गए कि वहाँ वे किसका मंदिर बनवाएँ? किंतु सहसा आकाशवाणी हुई कि राजा उस स्थान पर जहाँ विष्णु मंदिर बनवाने वाले थे, माँ त्रिपुर सुंदरी का मंदिर बनवा दें और राजा ने यही किया।

दस महाविद्या शक्तियां-Das Mahavidya