केवल युधिष्ठिर जानते थे स्वर्गलोक पहुँचने का रास्ता- Only Yudhishthira knew the way to reach heaven

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द्वापर युग कब समाप्त हुआ

पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण एक बार जंगल से निकल रहे थे तभी उनके पैर में एक कांटा लगा और वो दर्द से कराहते हुए एक पेड़ के नीचे बैठ गए। उसी समय एक भील शिकारी वहाँ से जा रहा था और उसे वहाँ किसी जानवर की अवाज जैसी लगी। फिर उसने अपना शब्दभेदी वाण छोड़ा जो सीधा भगवान श्रीकृष्ण जी के पैर में लगा। जब शिकारी ने भगवान श्रीकृष्ण जी को देखा तो वो रो पड़ा और क्षमा माँगने लगा। भगवावन श्रीकृष्ण ने उसे उसके पूर्व जन्म का स्मरण कराते हुए वह दृश्य दिखाया जब श्रीराम ने छुपकर बाली को मारा था वह भील बाली ही था। 

वैकुण्ठ से भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ आये और भगवान श्रीकृष्ण अपने वैकुष्ठ धाम चले गए। अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने पहले ही अपने द्वारिका नगरी की जवाबदेही सौंप रखी थी। अर्जुन द्वरिकावासियो समेत जैसे ही नगर के बाहर निकले की नगर समुद्र में डूब गया। अर्जुन यदुवंश को लेकर तेजी से हस्तिनापुर की ओर चलने लगे, रास्ते में कालयवन के बचे हुए सैनिक वहाँ लुटेरों के रूप में तैयार थे। जब उन्होंने देखा कि अर्जुन अकेले ही इतने बड़े जनसमुदाय को लेकर जा रहे हैं तो धन के लालच में आकर उन्होंने उन पर हमला कर दिया। अर्जुन ने अपनी शक्तियों को याद किया लेकिन उसकी शक्ति समाप्त हो गई। अर्जुन जैसे योद्धा के होते भी भगवान कृष्ण के नगरवासी लुटे और गोपियों तक को लुटेरे उठा ले गए। अर्जुन को पता ही नही लगा कि उनकी सारी शक्तिया भगवान कृष्ण के साथ ही चली गई है।

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केवल युधिष्ठिर जानते थे स्वर्गलोक पहुँने का रास्ता 

अर्जुन ने जब ये व्यास ऋषि को बताया तब उन्होंने कहा कि जिस उद्देश्य से तुम्हे शक्तिया प्राप्त हुई थी वह उद्देश्य अब पूरा हो गया है। अब तुम्हारे परलोक जाने का समय आ गया है और यही तुम्हारे लिए सही है। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर अर्जुन उनकी आज्ञा से हस्तिनापुर आए और उन्होंने पूरी बात महाराज युधिष्ठिर को बता दी। महर्षि वेदव्यास की बात मानकर द्रौपदी सहित पांडवों ने राज-पाठ त्याग कर परलोक जाने का निश्चय किया। सुभद्रा को राज माता बनाया गया क्योंकि राजा परीक्षित अभी छोटे थे इसलिए राजकाज की जिम्मेदारी युयुत्सु को दी गई। पांडवों व द्रौपदी ने साधुओं के वस्त्र धारण किए और स्वर्ग जाने के लिए निकल पड़े, पांडवों के साथ-साथ एक कुत्ता भी चलने लगा। अनेक तीर्थों, नदियों व समुद्रों की यात्रा करते-करते पांडव चलते रहे। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए हिमालय पार करके पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू का समुद्र दिखाई पड़ा। इसके बाद उन्होंने सुमेरु पर्वत के दर्शन किए वहीं से सारे पांडव एक एक करके मरने लगे सिर्फ युधिष्ठर और उनके साथ ही चल रहा एक कुत्ता जीवित रहा। युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से बाकि पांडवो के मरने का कारण पूछा। इंद्र ने बताया की पांचाली अर्जुन से ज्यादा मोह के चलते और भीम को बल का अर्जुन को युद्ध कौशल का नकुल को रूप और सहदेव को बुद्धि पर घमंड था इसके कारण वे सशरीर स्वर्ग नहीं जा पाये।

युधिष्ठिर के साथ-साथ चाचा-विदुर भी पहुँचे स्वर्गलोक  

युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरे साथ ही जायेगा इसने मेरा साथ नहीं छोड़ा तब कुत्ता यमराज के रूप में बदल गया। युधिष्ठिर को कुत्ते से भी सद्भावना रखने पर आनंदित हुए। इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बैठाकर स्वर्ग ले गए। दरअसल वो कुत्ता विदुर के रूप में यमराज की आत्मा थी। यमराज मांडव्य ऋषि के श्राप के चलते विदुर रूप में जन्मे थे। युधिष्ठिर को पहले स्वर्ग के धोखे में नरक ले जाया गया जन्हा उन्हें किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। वे उसे कुछ देर वहीं ठहरने के लिए कह रहे थे। युधिष्ठिर ने जब पूछा की तुम कौन हो तो उन्होंने पांडव होने का दावा किया। तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा कि तुम पुनः देवताओं के पास लौट जाओ मेरे यहाँ रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा। 

सिर्फ एक झूठ के कारण नरक के दर्शन 

देवदूत ने यह बात जाकर देवराज इंद्र को बता दी तब उन्हें बताया गया की सिर्फ एक झूठ जिसके कारण अश्वत्थामा के पिता द्रोण मृत्यु को प्राप्त हुए तुम्हे भी छल से ही कुछ देर नरक के दर्शन पड़े। अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो। वहां तुम्हारे भाई व अन्य वीर पहले ही पहुँच गए हैं। तब देवराज इंद्र के कहने पर युधिष्ठिर ने देवनदी गंगा में स्नान किया, स्नान करते ही उन्होंने मानव शरीर त्याग करके दिव्य शरीर धारण कर लिया। युधिष्ठिर ने वहाँ भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए, अर्जुन उनकी सेवा कर रहे थे और युधिष्ठिर को आया देख श्रीकृष्ण व अर्जुन ने उनका स्वागत किया। युधिष्ठिर ने देखा कि भीम पहले की तरह शरीर धारण किए वायु देवता के पास बैठे थे, कर्ण को सूर्य के समान स्वरूप धारण किए बैठे देखा। नकुल व सहदेव अश्विनी कुमारों के साथ बैठे थे तब देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि ये जो साक्षात भगवती लक्ष्मी दिखाई दे रही हैं। इनके अंश से ही द्रौपदी का जन्म हुआ था। इसके बाद इंद्र ने महाभारत युद्ध में मारे गए सभी वीरों के बारे में युधिष्ठिर को विस्तार पूर्वक बताया। इस प्रकार युधिष्ठिर अपने भाइयों व अन्य संबंधियों को वहां देखकर बहुत प्रसन्न हुए।