प्रजापति दक्ष की दो पुत्रियां कद्रू और विनता का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था। एक बार कश्यप ऋषि अति प्रसन्न थे, उन्होंने दोनों पत्नियों से वर मांगने को कहा तब कद्रू ने एक पराक्रमी सर्पों की मां बनने की प्रार्थना की और विनता ने केवल दो पुत्रों लेकिन दोनों पुत्र कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली और प्राक्रमी और सुन्दर हो। विनता ने दो तथा कद्रू ने 1000 अंडे दिए और समयनुसार 1000 सर्पों का जन्म हुआ। श्रीमद् भागवत् गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है, मैं नागों में अनंत शेषनाग हूं। पुराणों के अनुसार धरती शेषनांग के फणों के ऊपर ही है। पौरााणिक शास्त्राओं के अनुसार इस दिन नाग जाति के उत्पत्ति हुई। हाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। और ये असम, मणिपुर, नागालैंड तक फैले थे। इनके पूर्वज सर्प होने के कारण नागवंशी कहलाये। तिब्बती अभी तक अपनी भाषा को नाग भाषा कहते है। अनंत या शेष, वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला पुराणों में पांच नाग कुलों के बारे है, और सभी कश्चप वंशी थे। इन्हीं से नाग वंश चला। नाग पूजा की प्रक्रिया पुराण से संबंधित है। नाग पूजा पुरातन से आज तक चली आ रही।
शेषनाग (Sheshnag) : कद्रू के बेटों सबसे होनहार तथा प्राक्रमी शेषनाग थे, इनको अनंत नाम से भी जाना जाता है। शेषनाग को ज्ञात हुआ। उनकी माता और भाईयों ने मिलकर विनता के साथ धोका किया। तब उन्होंने अपनी मां और भाईयों को छोड़कर गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या के कारण ब्रहमा जी ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी भी धर्म से विचलित नही होगी। ब्रहमा जी ने कहा पृथ्वी निरन्तर रूप से हिलती डुलती रहती है इसलिए तुम इसे अपने फन पर धारण कर दो ताकि यह स्थिर रहे। इस तरह शेषनाग जी ने ब्रहमा जी बात मानकर पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर दिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते है। धर्म ग्रंथों के अनुसार लक्ष्मण तथा बलराम जी को शेष नगा का ही अवतार मानते है।
तक्षक नाग (Takshak Nag): महाभारत कथा के अनुसार श्रृगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक नाग ने राजा परिक्षित को काटा। जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी। अपने पिता की मृत्यु का बदला ने के लिए जनमेजय ने बहुत बड़ा सर्प यज्ञ किया। जिसमें सारे सर्प आकर गिरने लगे। यज्ञ में सभी ब्रहमणों ने तक्षक नाग के नाम की आहुति डालने लगे। इससे व्याकुल होकर तक्षक इन्द्र की शरण में गया और तब आस्तीक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। तब से वे शिव भगवान के गले में लिपटे रहते है। आस्तिक मुनि के आग्रह पर तक्षक के क्षमा मांगने पर उसे माप कर दिया तब वचन दिया गया, कि श्राावण मास की पंचमी को जो व्यक्ति सर्प और नाग की पूजा करेगा उसे सर्प व नाग दोष से हमेशा के लिए मुक्ति मलेगी।
धृतराष्ट्र नाग (Dhritarashtra Nag): इनको वासुकि का पुत्र माना जाता है महाभारत के युद्ध के बाद जब युधिष्ठर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। तब अर्जुन व उसके पुत्र बभ्रुुवाहन के बीच भंयकर युद्ध हुआ और बभ्रुुवाहन ने अर्जुन का वध कर दिया। बभ्रुुवाहन जब ज्ञात हुआ कि संजीवन मणि के द्वारा उनके पिता पुनः जीवित हो सकते है और वह उसी समय मणि की खोज में निकला । यह मणि शेषनाग के पास थी जिसकी रक्षा धृतराष्ट्र नाग करते थे और धृतराष्ट्र ने मणि देने से इंकार कर दिया जिसके कारण बभ्रुुवाहन और धृतराष्ट्र के बीच भंयकर युद्ध हुआ धृतराष्ट्र पराजित हुये । बभ्रुुवाहन को मणि की प्राप्ति हुई जिससे कारण अर्जुन को पुनः जीवित किया गया।