शनि के प्रभावों से हर कोई बचना चाहता है। शनि के कुप्रभावों से बचने के लिए हर कोई कुछ उपाय करता है, ताकि शनि से होने वाली समस्याओं से बचा जा सके। व्यक्ति पर शनि की साढ़े साती और शनि ढैय्या का बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में अगर शनि के कुप्रभावों से खुद को बचाए रखना चाहते हैं, तो श्रावण का महीना इसके लिए बेहद खास है। सावन का मास भगवान शिव को समर्पित है। इस मास में की गई भोले की आराधना का फल बहुत जल्द मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव भगवान शिव के शिष्य हैं, ऐसे में शिव भक्तों पर शनि अपनी कुदृष्टि नहीं डालते और वे शनिदशा के दौरान भी शनि प्रकोप से बच जाते हैं। सावन मास में भगवान शिव का चालीसा करने मात्र से ही शिव जी प्रसन्न होते हैं और शनिदेव की बुरे प्रभावों से बचा जा सकता है।
श्रावण के प्रत्येक शनिवार को शनि संपत व्रत रखा जाता है। इस व्रत के फलस्वरूप शनिदेव का प्रकोप शांत होता है और जन्म कुंडली में शनिदेव द्वारा जनित दोषों का शमन होता है। श्रावण के प्रत्येक शनिवार को संपत शनिवार कहा जाता है यही वजह है कि इस व्रत को रखने से ना केवल उत्तम आरोग्य की प्राप्ति होती है बल्कि धन-संपत्ति की प्रबलता भी मिलती है। शनि देव वायु तत्व पर अपना आधिपत्य रखते हैं, इसलिए शनि देव की कृपा से वातावरण में वायु तत्व की भी वृद्धि हो जाती है और पारिस्थितिक संतुलन बनने से सभी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
शिव चालीसा (Shiv Chalisa)देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला।।
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।।
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो।।
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी।।
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी।।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे।।
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के।।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए।।
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समस्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए (To get rid of all problems)
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