ब्रह्मा जी कहते है जो मनुष्य दुर्गा कवच और सप्तशती पाठ करता है उसे सुख की प्राप्ति होती है। भागवत पुराण के अनुसार माँ दुर्गा का अवतार सज्जन मनुष्यों की रक्षा के लिए हुआ है। ऋग्वेद के अनुसार माँ दुर्गा आद्धिशक्ति है। माँ दुर्गा ही समस्त संसार का संचालन करती है। नवरात्रों के समय श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का अत्यधिक महत्व होता है। दुर्गा सप्तशती को शतचण्डी, नवचण्डी या चण्डीपाठ कहते है। भगवान श्री राम जी ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले चण्डी पाठ किया था।
विभिन्न प्रकार की बिमारियां इन मंत्रों के प्रभाव से दूर होती है।
दुर्गा कवच
जो गुप्त मंत्र है इस संसार में सब शक्तियां है जिसके अधिकरा में।।
हर एक का जो करता है उपकार जिसके बोलने से होता है बड़ा चमत्कार।
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का जो हर काम करती है सवाली का।।
सुनो मारकण्डे मैं तुम्हें समझाता हूं मैं नव दुर्गा के नाम बतलाता हूं।
श्री दुर्गा कवच जो पढ़े जो मन चित लाये।
उस पर किसी भी प्रकार का कष्ठ न आये।।
कहो जय-जय महारानी की जय दुर्गा अष्ट भवानी की।
पहली शैलपुत्री कहलावे दूसरी ब्रहमचारणी मन भावे।।
तीसरी चन्द्रघटा शुभनाम चौथी कुष्माण्डा सुख धाम।
पांचवी देवी स्कन्धमाता छठी कात्यायनी विख्याता।।
सातवी काल रात्रि महामाया आठवीं महागौरी जगजाया।
नौवी सिद्धि दात्री जग जाने श्री दुर्गा के नाम बखाने।।
महा संकट में वन में रण में रोग न उपजे कोई निज तन में।
शक्ति कवच को सुने और सुनाये मनोकामना सिद्धि सभी नरपाये।
चामुण्डा है प्रेत पर वैष्ण्वी गरुड़ असवार।।
बैल चढ़ी मां माहेश्वरी हाथ लिये हथियार।
लक्ष्मी देवी कमल आसीना ब्रहमी हंस चढ़ी ले वीणा।
ईश्वरी सदा बैल असवारी भक्तन की करती है रखवाली ।।
शंख चक्र शक्ति त्रिशूल हल मसूल कर कमल के फूल ।
दैत्य नाश करने के कारण रूप अनेक कीये धारण ।।
कष्ट निवारण बलशाली मां दुष्ट संधारण महाकाली मां।।
दया करो मां बलशाली अपने दास के कष्ट मिटाओ।।
अपने दास की रक्षा क लिए सिंह चढ़ी मां आओ।
कहो जय-जय महारानी की जय दुर्गा अष्ट भवानी की।।
अग्नि से अग्नि देवता पूर्व दिशा में ऐन्द्री।
दक्षिण में वाराही मेरी नैऋत्य में खड़ग धारणी।।
वायु में मां मृगवाहिनी पश्चिम में देवी वारुणी।
उत्तर में मां कौमारी ईशान में मां शूलधारी।।
चामुण्डा हर दिशाओं में मां तुम मेरा हर कष्ट मिठाओ।।
अजिता खड़ी बायें मेरे अपराजिता दायें मेरे।
उद्योगिनी मां शिखा की मां उमा देवी सिर की ही।।
मालाधारी ललाट और भृकुटी मां यशवी की।
भृकुटी के मध्य त्रिनेत्रा और यम घण्टा दोनों नासिका।।
काली कापालों की कर्ण मूलों की माता शंकरी।
नासिका में अपना अंश माता सुगन्धा तुम धरो।।
इस संसार में माता मेरी रक्षा करो रक्षा करो।
ऊपर व नीचे होठों की मां अमृतकली की।।
जीभा की माता सरस्वती और दांतों की कौमारी सती।
इस कंठ की मां चण्डिका और चित्र घण्टा की।।
कामाक्षी मां ठोड़ी की और मां मंगला इस वाणी की।
ग्रीवा की भद्रकाली मां रक्षा करे धनु धारणी।।
मेरे दोनों हाथों के सब अंगो की रक्षा करे धनु जगतारणी।
शूलेश्वरी कूलेश्वरी महादेवी शोक विनाशनी।।
छाती स्तनों और कंधो की रक्षा करे जगवासिनी।
हृदय उदर और नाभि के कटि भाग और सब अंगों की।।
घुटनों जंघाओं की करे रक्षा करे मां विंध्य वासिनी।।
टखनों व पांव की करे रक्षा वो शिव दासिनी।
रक्त मांस और हड्डियोंसे से बना शरीर।।
आतों और पित वास में भरा अग्न और नीर।
बल बुद्धि अहंकार और प्राण अपान समान।।
सत रज तम के गुणों में फसी है यह जान।
धार अनेकों रूप ही रक्षा करियों आन।।
तेरी कृपा से ही मां हर एक का है कल्याण।
आयु यश और कीर्ति धन सम्पत्ति परिवार।।
ब्रहमाणी और लक्ष्मी पार्वती जगतार।
विद्या दे मां सरस्वती सब सुखों की मूल।।
दुष्टों से रक्षा करो मां हाथ लिये त्रिशूल।
भैरवी मेरी भार्या की रक्षा करो हमेशा।।
मान राज दरबार में देवें सदा नरेश।
यात्रा मे कोई दुख न मेरे सिर पर आये।।
कवच तुम्हारा हर जगह मेरी करे सहाये।
मां जग जननी कर दया इतना दो वरदान।।
लिखा तुम्हारा कवच यह पढ़े जो निश्चयमान।
मनवांछित फल पाए मंगल मोद बसाए।।
कवच तुम्हारा पढ़ते नवनिधि घर आये।
ब्रहमा जी बोले सुनो मारकण्डे यह दुर्गा कवच मैने सुनाया।।
आज तक था जो गुप्त भेद सारा जगत की भलाई के लिए मैंने बताया।
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित है मिट्टी की देह को इसे पहनाया।।
जिसने श्रद्धा से इसको सुना तो भी इच्छा अनुसार वरदान पाया।
जो भी मनुष्य अपने मंगल को चाहे हरदम यही कवच गाता चला जा।।
बियावान जंगल, दिशाओं में इस शक्ति की जय-जय मनाता चला जा।
जल थल अग्नि पवन में कवच पहन कर मुस्कराता चला जा।।
निडर हो विचर मन जहां तेरा चाहे अपने कदम आगे बढ़ाता चला जा।
तेरा मान धन-धाम इससे बढ़ेगा श्रद्धा से दुर्गा कवच जो गाये।।
यही मंत्र-तंत्र तेरा तेरे सिर से हर संकट हटाये।
यही कवच श्रद्धा व भक्ति से पढ़ कर जो चाहे मुंह मांगा वरदान पाये।
श्रद्धा से जपता रहे मां दुर्गा का नाम सुख भोगे संसार में अन्त मुक्ति सुखधाम।।
कृपा करो मातेश्वरी सेवक है नादान।
तेरे दर पर आ गिरा मां करो कल्याण।।
मारकण्डे ऋषि के अनुरोध पर ब्रहमा जी ने सृष्टि की भलाई के लिए दुर्गा कवच का महत्व बताया ।
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सातवीं - कालरात्रि: इनके नाम से ज्ञात होत है काल अर्थात् मृत्यु । माता के इस रूप की उपासना करने से मनुष्य को मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त होती है तथा मनुष्य के समस्त ग्रहों का प्रकोप दूर होता है।
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